पति के शिकार पर जाते ही मांग का सिंदूर धो देती हैं पत्नियां
सेंदरा यानी शिकार पर्व के दौरान शिकार पर जाने वाले शिकारियों की पत्नियां पति के शिकार पर जाते ही मांग का सिंदूर धो देती हैं।
भादो माझी, जमशेदपुर। सेंदरा यानी शिकार पर्व को लेकर आदिवासी समुदाय में एक अनोखी परंपरा है। इस पर्व को आदिवासी समुदाय युद्ध का दर्जा देता है। इसीलिए 'सेंदरा पर्व' के दौरान शिकार पर जाने वाले शिकारियों की पत्नियां पति के शिकार पर जाते ही मांग का सिंदूर धो देती हैं। शिकार पर्व की इस अनोखी परपरा को आदिवासी समाज में आज भी पूरी शिद्दत से माना जाता है।
सेंदरा के दौरान महिलाओं के सिंदूर धोने की यह परंपरा इस बार भी सेंदरा के दौरान निभाई जाएगी। दलमा वन में हर साल होने वाले सेंदरा यानी शिकार पर्व का नेतृत्व करने वाले दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम बताते हैं कि आदिवासी समुदाय में सेंदरा को युद्ध का दर्जा दिया जाता है और इस 'पारंपरिक युद्ध' में जो शामिल होता है, उसे योद्धा माना जाता है।
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हेम्ब्रम के मुताबिक जब भी कोई योद्धा किसी युद्ध मे शामिल होता है तो उसका परिवार मान कर चलता है कि वह (योद्धा) शहीद होने के लिए युद्ध मे जा रहा है, इसलिए आदिवासी महिलाएं अपने पतियों के इस पारंपरिक युद्ध, यानी सेंदरा में जाने पर अपना सिंदूर धो देती हैं। दलमा राजा बताते हैं कि सेंदरा में शामिल होने वाले इन योद्धा को स्थानीय भाषा में 'सेंदरा बीर' यानी शिकारी वीर कहा जाता है।
तेल-मसाला खाना भी बंद
दलमा में हर साल होने वाले सेदरा पर्व पर आदिवासी समुदाय के दो दिनो तक जंगल की तलहटी पर डेरा डालते हैं। इन दो दिनों तक जो शिकारी सेंदरा में हिस्सा लेने दलमा पहुंचते हैं, उनके घरों में तेल-मसाला तक बंद रहता है। सादा भोजन किया जाता है। दो दिनों बाद 'सेदरा बीर' के दलमा से शिकार कर वापस लौटने पर ही फिर से तेल मसाला खाया जाता है।
शस्त्र पूजा शुरू, हथियारों को दे रहे धार
दलमा वन में इस बार आठ मई को सेंदरा होना है। इसे लेकर मंगलवार को गिरा साकाम यानी निमंत्रण पत्र बांटे गए। स्थानीय भाषा में गिरा साकाम कहे जाने वाले यह निमंत्रण पत्र खजूर के पत्तों पर गांठ बांध कर भेजे जाते हैं। 14 अप्रैल से ही गांव-गांव में दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम व 'दलमा बुरु सेदरा समिति' की ओर से गिरा साकाम बांटे जा रहे हैं। गिरा साकाम बंटने के साथ ही गांव-गांव में आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपने पारंपरिक हथियार, मसलन-तीर धनुष, बरछा-भाला को धार देना शुरू कर दिया है। इसके बाद गांवों में शस्त्र पूजा की जा रही है।
ग्राम प्रधान भी चला रहे कैंपेन
इस बार सेंदरा को सफल बनाने के लिए ग्राम प्रधान स्तर पर भी तैयारी की जा रही है। माझी परगना महाल समेत आदिवासी समाज की पूरी स्वशासन व्यवस्था इस पर्व को सफल बनाने की तैयारी मे जुट गई है। तालसा माझी बाबा दुर्गा चरण मुर्मू के नेतृत्व में मंगलवार को मार्चागोड़ा गांव में इस बाबत बैठक की गई। बैठक में जहां आदिवासियों की युवा पीढ़ी को सेंदरा की परंपरा के बारे विस्तृत से बताया गया तो वहीं युवा पीढ़ी को अधिक से अधिक सेंदरा पर्व में पहुंचने के लिए जनसंपर्क किया गया। दुर्गा माझी कहते हैं-'परंपरा पूजा करने की है। सेंदरा पर दलमा वन में आदिवासी जुटेंगे और पारंपरिक पूजा कर बैठक भी करेंगे। इस बार युवाओं को अधिक से अधिक जोड़ने की कोशिश है।
होता जानवरों का शिकार, वन विभाग भी तैयार
हर साल सेंदरा पर हजारों शिकारी दलमा वन पहुंचते हैं और शिकार की परंपरा पूरी करते है। पिछले साल चार हिरण, चार जंगली सूअर समेत कई जंगली जानवर मारे गए थे। हालांकि दोलमा बुरु सेदरा समिति जानवरों के मारे जाने से इन्कार करता रहा है। इस बार वन विभाग के अधिकारियों ने पहले ही सेंदरा समिति के सदस्यों से मिलकर जानवरों का शिकार न करने की अपील की है। समिति ने भी विश्वास दिलाया है कि जानवर नहीं मारे जाएंगे, बस परंपरा पूरी की जाएगी। हालांकि हर साल की भांति इस बार भी पटमदा की ओर से ताबड़तोड़ शिकार होने की आशंका है।
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