Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    झारखंड सहित देश-दुनिया में बदहाल हैं आदिवासी, पहचान और अस्तित्व की रक्षा करने का है आखिरी मौका: सलखान मुर्मु

    By Jagran NewsEdited By: Yashodhan Sharma
    Updated: Fri, 04 Aug 2023 08:01 PM (IST)

    Jamshedpur झारखंड में आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मयूरभंज (ओडिशा) के पूर्व सांसद सालखन मुर्मु ने कहा कि नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा। आदिवासियों के संरक्षण-संवर्धन की बातें होगी जबकि वास्तव में झारखंड सहित देश-दुनिया में आदिवासी बदहाल हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 9 अगस्त 1994 से विश्व आदिवासी दिवस मनाना प्रारंभ किया है।

    Hero Image
    झारखंड सहित देश-दुनिया में बदहाल हैं आदिवासी, पहचान और अस्तित्व की रक्षा करने का है आखिरी मौका

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। झारखंड में आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मयूरभंज (ओडिशा) के पूर्व सांसद सालखन मुर्मु ने कहा कि नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा। आदिवासियों के संरक्षण-संवर्धन की बातें होगी, जबकि वास्तव में झारखंड सहित देश-दुनिया में आदिवासी बदहाल हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    संयुक्त राष्ट्र ने 9 अगस्त 1994 से विश्व आदिवासी दिवस मनाना प्रारंभ किया है। चूंकि 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में सर्वप्रथम यूएन ने आदिवासियों के मानवीय अधिकारों पर चर्चा की थी।

    आदिवासी भाषाओं को खतरा

    इसी क्रम में 13 सितंबर 2007 को यूएन ने आदिवासी अधिकार घोषणा-पत्र भी जारी किया। दुनिया की लगभग 7000 भाषाओं में से 40 प्रतिशत भाषाएं विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं, जिसमें सर्वाधिक आदिवासी भाषाएं हैं।

    अतः उनके संरक्षण के लिए यूएन ने आदिवासी भाषा दशक (2022 से 2032) भी घोषित किया है। अब 9 अगस्त को दुनिया के लगभग 90 देशों के 47 करोड़ आदिवासी या इंडिजिनस पीपुल जन्मदिन या बर्थडे की तरह इसे मना रहे हैं। मरते- मरते भी थोड़ी खुशी मना लेना है। क्या पता पुनर्जन्म हो जाए।

    सालखन कहते हैं कि दुनियाभर के आदिवासी नशापान, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, राजनीतिक कुपोषण और आपसी समन्वय की कमी से टूटते, बिखरते, लड़ते- लड़ते मर रहे हैं।

    देश में आदिवासी (एसटी) के आरक्षण कोटे से 47 आदिवासी सांसद और 553 आदिवासी विधायक हैं। मगर देश में कोई आदिवासी नेतृत्व और आदिवासी आवाज नहीं है।

    संविधान प्रदत्त अनेक अधिकार हैं, मगर किसी राजनीतिक दल और सरकारों ने अब तक इसे महत्व नहीं दिया है। अब तो देश की राष्ट्रपति और मणिपुर की राज्यपाल भी आदिवासी महिलाएं हैं, मगर मणिपुर में आदिवासी महिलाएं खुलेआम दरिंदगी का शिकार हो रही हैं।

    मणिपुर हिंसा का उठाया फायदा

    राजनीतिक फायदे और आदिवासी आरक्षण लूटने के लिए अब देशभर के आदिवासी क्षेत्रों में मणिपुर की आग फैल सकती है। चूंकि अब अनेक समृद्ध और अधिसंख्यक जातियों को राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीतिक लाभ के लिए असली आदिवासियों (संताल, मुंडा, उरांव, गोंड, भील आदि) को बलि का बकरा बना कर उनका नरसंहार करने को व्यग्र हैं।

    अभी कुर्मी-महतो को एसटी बनाने के सवाल पर जेएमएम, टीएमसी, बीजेडी और कांग्रेस ने खुलेआम समर्थन दे दिया है। तब असली आदिवासियों की हालत कुकी-नागा आदिवासियों की तरह होना निश्चित जैसा है।

    जातीय संघर्ष के इस नरसंहार को कुछ सिरफिरे हिंदू-ईसाई का चोला पहना रहे हैं, जो न्याय और मानवता की दृष्टिकोण से बिल्कुल अनुचित है।

    नई जातियों को SC सूची से रखें दूर

    अच्छा होगा नई जातियों को एसटी सूची में शामिल करने के दरवाजे को अभी अगले 30 वर्षों तक बंद कर देना चाहिए। इस बीच पहले से एसटी सूची में शामिल आदिवासियों की दशा-दिशा की समीक्षा और भविष्य में उनकी सुरक्षा और समृद्धि के लिए एक मजबूत रोड मैप बनाया जा सके।

    दूसरी तरफ विकास की अंधी दौड़ ने दुनिया भर में प्रकृति- पर्यावरण को भी नहीं छोड़ा तो आदिवासी किस खेत की मूली हैं।

    अतः 2023 का विश्व आदिवासी दिवस भारत और झारखंड के आदिवासियों के लिए केवल नाचने-गाने का अवसर ना होकर अपनी अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी की रक्षार्थ एकजुट होकर,दिल थाम कर शपथ और संकल्प लेने का आखिरी मौके जैसा है।

    आदिवासियों के लिए ही बना था झारखंड

    बंगाली (उपराष्ट्रीयता) के लिए बंगाल, ओड़िया के लिए उड़ीसा (ओडिशा), बिहारी के लिए बिहार तो उसी तर्ज पर बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर 2000 को आदिवासी (उपराष्ट्रीयता) के लिए झारखंड बना था, मगर शहीदों का सपना "अबुआ दिशुम अबुआ राज" आज भी लुटता- मिटता तड़प रहा है।

    झारखंड में छोटे-बड़े अनेक राजनीतिक दल हैं, अनेक आदिवासी जन संगठन हैं, अनेक आदिवासी डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील, अफसर आदि हैं, मगर क्या वे आदिवासी हासा, भाषा, जाति (एसटी), धर्म (सरना), रोजगार, इज्जत, आबादी, चास-बास आदि बचाने की बात करते हैं, शायद नहीं। बल्कि झारखंड सब के द्वारा लुटाने- मिटाने का अड्डा बन चुका है।

    पक्ष- विपक्ष सब एक जैसे हैं। सब जीत रहे हैं, मगर आदिवासी समाज हार रहा है। अतएव आदिवासी समाज को अविलंब राजनीतिक, सामाजिक,धार्मिक, सांगठनिक एवं निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर एकजुट होकर आदिवासी एजेंडा पर काम करना होगा।

    सही दिशा में बढ़ाने होंगे कदम

    साथ ही नशापान,अंधविश्वास, डायन कुप्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद-बिक्री और आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में जनतांत्रिक और संवैधानिक सक्रियता को बहाल करने आदि के समाज-सुधार की क्रांति का अलख भी जगाना होगा।

    सही दिशा में एकजुट होकर कदम बढ़ाने से आदिवासी समाज जरूर कामयाब होगा। अतः विश्व आदिवासी दिवस- 9 अगस्त 2023 को समग्रता की दिशा में एक निर्णायक पहल करने की जरूरत है।