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    महात्मा गांधी की मानस पुत्री बासंती राय ने बनाया था यह आश्रम, ऐतिहासिक लम्हाें का है गवाह

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Fri, 27 Sep 2019 12:23 PM (IST)

    1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली वीरागना बासंती राय के रणकौशल से मानभूम के तत्कालीन ब्रिटिश सेनापति माइकल लॉरेन भी भयभीत रहते थे।

    महात्मा गांधी की मानस पुत्री बासंती राय ने बनाया था यह आश्रम, ऐतिहासिक लम्हाें का है गवाह

    नीमडीह, सुधीर गोराई। झारखंड के सरायकेला-खरसावा जिले का नीमडीह प्रखंड स्वाधीनता आंदोलन के कई ऐतिहासिक लम्हों का गवाह है। यहां 20 एकड़ जमीन पर फैले वनों से आच्छादित ऐतिहासिक धरोहर 'लोकसेवायतन' आश्रम स्वतंत्रता संग्राम के वीर गाथा को बयान करती है। यह आश्रम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मानस पुत्री स्वतंत्रता सेनानी बासंती राय का निवास स्थन रहा है।

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    1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली वीरागना बासंती राय के रणकौशल से मानभूम के तत्कालीन ब्रिटिश सेनापति माइकल लॉरेन भी भयभीत रहते थे। सितंबर 1943 में अंग्रेजी फौज ने बासंती राय को गिरफ्तार कर मेदनीपुर जेल भेज दिया। छह महीने तक मुकदमा चलने के बाद मार्च 1944 में उन्हें बंगाल छोड़ने की शर्त पर रिहा किया गया। उस समय मानभूम जिला के दक्षिणी छोर में स्थित नीमडीह गाव वनों से आच्छादित था। घने जंगल का लाभ उठाकर बासंती राय ने नीमडीह गाव में 20 एकड़ जमीन पर लोकसेवायतन आश्रम बनाया।

    गुप्त रूप से होता था अनुशीलन समिति का संचालन

    उस समय क्रातिकारी संगठन 'अनुशीलन समिति' पर अंग्रेजी हुकूमत ने प्रतिबंध लगाया था। बासंती उस समिति की सक्रिय सदस्य थीं। आश्रम की स्थापना के बाद बासंती राय यहां से गुप्त रूप से बंगाल, ओडिशा आदि क्षेत्र में अनुशीलन समिति को संचालन करती थीं। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वाधीन होने के बाद 1948 में सरकार ने आश्रम को जनकल्याणकारी संस्था में बदल दिया। आश्रम के माध्यम से कृषकों को सिंचाई उपलब्ध कराने हेतु नीमडीह क्षेत्र में दर्जनों तालाब जनकल्याण के प्रमाण के रूप में आज भी विद्यमान है। 21 मार्च 2001 को बासंती राय ने इस दुनिया को अलविदा कहा लेकिन आज भी उनके देशभक्ति की सत्य कहानी लोगों के दिलो दिमाग में है। उनको निकट से जानने के लिए दूर-दराज से लोग लोकसेवायतन पहुंचते हैं।

    बुनियादी सुविधाओं का अभाव देख नाराज होते हैं पर्यटक

    लोकसेवायतन पहुंचने वाले सैलानी आश्रम में बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखकर नाराज होते हैं। सरकार की ओर से इस ऐतिहासिक आश्रम के विकास और इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर दूर-दराज के सैलानियों को आकर्षित किया जा सकता है। बासंती राय के पौत्र सह लोकसेवायतन के सचिव देबदीप राय ने बताया कि आश्रम में लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए छऊ नृत्य, झुमर संगीत, बॉउल गीत, लोकगीत आदि लोककला का प्रशिक्षण दिया जाता है।

    रेल व सड़क मार्ग से पहुंच सकते लोकसेवायतन

    लोकसेवायतन आश्रम रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जमशेदपुर-आसनसोल रेलखंड पर नीमडीह रेलवे स्टेशन से आश्रम पहुंचा जा सकता है। वहीं जमशेदपुर-धनबाद मुख्य सड़क पर जमशेदपुर से 45 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर से दायीं ओर से नीमडीह की ओर सड़क मार्ग से आश्रम पहुंचा जा सकता है। 

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