Lok Sabha Election 2024: झारखंड की इस सीट पर बोलती थी इन बाहुबलियों की तूती, बेहद दागदार है यहां का सियासी इतिहास
सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की रहनुमाई करने का पुराना इतिहास रहा है और क्षेत्र के संसदीय चुनाव में पहली बार अपराध की दुनिया के दागदार चेहरों को नमूदार होते हुए नब्बे के दशक में देखा गया था। जब चाईबासा झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रत्याशी कृष्णा मार्डी एवं कांग्रेस प्रत्याशी विजय सिंह सोय के समर्थकों के बीच खूनी संघर्ष का गवाह बना था।

दिनेश शर्मा, चक्रधरपुर। Singhbhum Parliamentary Cconstituency: दागदार चेहरों के सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की रहनुमाई करने का पुराना इतिहास रहा है। क्षेत्र के संसदीय चुनाव में पहली बार अपराध की दुनिया के दागदार चेहरों को नमूदार होते हुए नब्बे के दशक में देखा गया।
जब चाईबासा झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रत्याशी कृष्णा मार्डी एवं कांग्रेस प्रत्याशी विजय सिंह सोय के समर्थकों के मध्य खूनी संघर्ष का गवाह बना था। इस दौरान प्रत्याशियों एवं उनके समर्थकों को अपराध की दुनिया से अपने रिश्तों को सार्वजनिक करने में तनिक भी झिझक नहीं हुई।
हालांकि इससे काफी पूर्व से ही विभिन्न राजनीतिक दलों की छत्रछाया तमाम दागदार चेहरों ने हासिल कर रखी थी। लेकिन, सिंहभूम के चुनावी मैदान में दागदार चेहरों के उतरने की सम्भवत: यह शुरूआत थी।
1991 में कृष्णा मार्डी व विजय सिंह हुए थे गिरफ्तार
1991 के लोस चुनाव में हिंसक संघर्ष के पश्चात कृष्णा मार्डी व विजय सिंह सोय अपने दर्जनों समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिए गए थे। यह चुनाव इन दोनों ने सींखचों के पीछे से ही लड़ा था। जिसमें झामुमो प्रत्याशी कृष्णा मार्डी ने विजय सिंह सोय को 46,180 मतों से पराजित कर दिया था।
1991 लोकसभा चुनाव के पश्चात दागदार चेहरों को प्रत्याशी बनाए जाने की विभिन्न राजनीतिक दलों में होड़ सी लग गई। इस दौरान कई बाहुबलियों ने खद्दर धारणा कर जनसेवा का संकल्प लेते हुए राजनीति में पदार्पण किया। लक्ष्मण गिलुवा ने भी 1995 का विधानसभा चुनाव जेल से ही लड़कर जीता था।
पूर्व सांसद एवं कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय सिंह थे सोय हत्याकांड में शामिल
1999 में सांसद बनने के चंद माह पश्चात ही पूर्व सांसद एवं कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय सिंह सोय हत्याकांड में लक्ष्मण गिलुवा लगभग तेरह माह की जेल यात्रा कर चुके हैं। 1999 के लोकसभा चुनाव के वक्त भी वे एक मामले में जेल में ही थे। अब यह बात पुरानी हो चुकी है कि राजनीतिज्ञों एवं अपराधियों में सांठगांठ रहती है।
अब तो अपराधियों को अपने दल में शामिल कर राजनीतिज्ञ स्वयं को कृत-कृत्य समझते हैं। क्षेत्र के तमाम हिस्ट्रीशीटरों ने न केवल अलग-अलग राजनीतिक दलों की सदस्यता हासिल कर रखी है, बल्कि अपने अपराधों की फाइल के वजन के अनुपात में संगठन में ओहदा भी हासिल किया है।
सिंहभूम की राजनीतिक धरा
1991 के लोकसभा चुनाव के बाद से संसदीय क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों में बाहुबलियों का प्रभाव लगातार बढ़ा है। इन बाहुबलियों ने इस दौरान चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के इरादे से बाहुबल के इस्तेमाल से कभी गुरेज नहीं किया।
फिलवक्त लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू होते ही चर्चित बाहुबलियों के साथ-साथ छुटभैये, दादा टाइप लोगों की भी सरगर्मी तेज हो गई है। अब देखना यह है कि राजनीति के अपराधीकरण की यह गाथा सिंहभूम की धरा पर कौन सा मोड़ लेती है।
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