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    Teacher's Day Special : इन्हें कीजिए सलाम, जिन्होंने सरकारी स्कूलों की बदल दी तस्वीर

    By Jitendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 05 Sep 2022 06:10 AM (IST)

    Teachers Day Special शिक्षक दिवस पर इन सरकारी टीचरों को सलाम कीजिए जिन्होंने नए तरीकों से बच्चों को राह दिखाई। शिक्षक आज सरकारी स्कूलों में नवाचार का प्रयोग कर रहे हैं। इस प्रयोग ने विद्यार्थियों को नई राह दिखाई है...

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    Teacher's Day Special : इन्हें कीजिए सलाम, जिन्होंने सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल रहे ये शिक्षक

    जमशेदपुर : सरकारी स्कूल के बच्चों को एक शैक्षिक वातावरण कैसे मिले, कैसे बच्चों में सरल तरीके से अपने विषयों को समझाया जाय। इस पर कई शिक्षक कार्य कर रहे हैं। कुछ सफल भी हो रहे हैं। ऐसे सफल शिक्षकों ने अपने स्कूल की तस्वीर बदलने के साथ-साथ बच्चों एवं गांव की आदतों में भी बदलाव किया है।

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    अपनी संस्कृति एवं राष्ट्रीयता की भावना को प्रदर्शित करते हुए देश के विकास में बच्चो के योगदान का मार्गदर्शन कर रहे हैं। सरकार की सभी योजनाओं के बारे में बच्चों को अवगत करा रहे हैं। शिक्षक दिवस के दिन आज हम कुछ ऐसे शिक्षकों की नवाचर शिक्षा पर बात करेंगे।

    कहानी के पात्रों के माध्यम से बच्चों को सरल रूप से पढ़ा रही हिंदी

    पूर्वी सिंहभूम जिला के पटमदा प्रखंड स्थित उत्क्रमित उच्च विद्यालय गोबरघुसी की हिंदी शिक्षिका हरप्रीत कौर बच्चों को सरल माध्यम में खासकर पात्र के माध्यम से हिंदी पढ़ा रही है। हिंदी को सरल तरीके से पढ़ाने का फल भी उन्हें तथा स्कूल को मिल रहा है। बच्चे अब क्षेत्रीय भाषा को छोड़ स्कूल में कम से कम हिंदी बोलने लगे हैं। इस शिक्षिका की नियुक्ति इस स्कूल में वर्ष 2019 में हुई थी। उस समय बच्चे स्कूल में हिंदी की कक्षाएं तो करते थे, लेकिन स्कूल परिसर में हिंदी नहीं बोलते थे।

    पढ़ने में भी कोई रूचि नहीं दिखाते थे। बस कक्षाएं करते थे। धीरे-धीरे बच्चों की मनोवृत्ति को भांपते हुए हिंदी के किताबों में पात्र के माध्यम से विषय का पढ़ाना प्रारंभ किया। बच्चे किताब की कहानी व नाटक के आधार पर अपना नाम रखते हैं और अपनी भूमिका को हिंदी के बताते हैं। यह तरीका काम कर गया। अब बच्चे हंसी मजाक से भी हिंदी पढ़ते हैं तथा मैट्रिक की परीक्षा हिंदी में बच्चों को अच्छे नंबर भी आए। यह शिक्षिका बच्चों से क्षेत्रीय भाषा सीखती है तो बच्चे शिक्षक से हिंदी। बच्चों के निबंध, श्रुति लेख व भाषण प्रतियोगिता भी कक्षाओं में आयोजित होती रहती है।

    पटमदा व बोड़ाम के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षिका हरप्रीत कौर गरीबों को समय-समय पर वस्त्र वितरण करती है। इसके लिए वे कपड़ों का संग्रह घर के अलावा आस-पास के लोगों तथा संस्थाओं से करती है तथा उसे ले जाकर उस क्षेत्र के गरीबों के बीच बांटती है।

    शिक्षिका के प्रयास से बच्चे स्कूल में बोलने लगे संस्कृत

    गुरुनानाक हाईस्कूल साकची की संस्कृत की शिक्षिका डा आशा चौबे स्कूल में संस्कृत विषय को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के प्रयोग कर रही है ताकि बच्चों की रुचि इसमें बने रही। डा. आशा का मानना है कि संस्कृत से संस्कृति व बच्चों का चारित्रिक विकास हो सकता है। आज समाज में जो भी कुछ हो रहा है वह संस्कृत की ज्ञान के बिना ोहो रहा है। जिसने दिल से संस्कृत पढ़ी है उसने संस्कृति को जान लिया है और वह कोई बुरा काम कर ही नही सकता। सिर्फ पढ़ने के लिए संस्कृत को नहीं पढ़ना है। संस्कृत बहुत बड़ी विरासत है। इससे ही हम संस्कृति, परंपरा व अनुशासन सीखते हैं। वह गणित व संस्कृत को समान मानती है। दोनों सूत्र के माध्यम से ही पढ़ाई होती है।

    यह शिक्षिका इन सब बातों को बच्चों के बीच लगातार बताती है। स्कूल की कक्षा में बच्चों को संस्कृत बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है और वे यह अब करने लगे हैं। वह बाल संसद के माध्यम से संस्कृत को पढ़ाती है। बच्चे श्लोक भी कंठस्थ कर रहे हैं। अगर किसी को बेंच पर खड़ा करना भी है तो उसे संस्कृत में ही बोला जाता है। बोर्ड के समक्ष आकर बच्चों को किसी एक विषय पर संस्कृत पर लिखने के लिए कहा जाता है। संस्कृत में भाषण बोलने के लिए भी प्रेरित किया जाता है।

    धीरे-धीरे छात्र अब भाषण भी बोलने लगे हैं। दैनिक इस्तेमाल में आने वाली सामग्रियों का संस्कृत में ही उच्चारण हो रहा है। शिक्षिका का कहना है कि संस्कृत विषय को पढ़ाने का यह तरीका बहुत भा रहा है। डा. आशा चौबे ने संस्कृत साहित्य से पीएचडी की है तथा उसने इस विद्यालय में 2013 में योगदान दिया है। इससे पहले वह केरला समाजम माडल स्कूल में हिंदी की शिक्षिका थी।

    शिक्षिका डा. आशा चौबे के संस्कृत प्रेम के कारण अपने स्कूल की कक्षाओं के बाद अन्य स्कूलों में भी आवश्यकतानुसार संस्कृत की कक्षाएं लेती है। शहर के आस-पास के सरकारी स्कूलों के छात्रों को बच्चों की संस्कृत की शिक्षा दे रही है। संस्कृत के शिक्षक कई उच्च विद्यालयों में नहीं है। इस कारण इन स्कूलों के बच्चों का भी वे मार्गदर्शन करती है।

    कभी विद्यालय में नामांकन नहीं लेते थे, आज नामांकन को करनी पड़ती है पैरवी

    सुदूर गांवों में स्थित विद्यालय केवल बच्चों की शिक्षा ही नहीं बल्कि समूचे समुदाय के विकास के केंद्रबिंदु भी होते है। वही विद्यालय के शिक्षक केवल बच्चों को ही नहीं बल्कि समूचे समुदाय के लिए रोल माडल होते है, जो अपने अनोखे कार्यो से इलाके को नई राह दिखलाते है। पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड के गालूडीह थाना क्षेत्र के उत्क्रमित मध्य विद्यालय धातकिडीह के प्रधानाध्यापक साजिद अहमद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

    ग्राम प्रधान लक्ष्मीकांत मुर्मू एवं सिंगराय मुर्मू बताते है कि पिछले चार पांच सालों में विद्यालय का पूरी तरह से कायाकल्प हो गया है। अब यहां बच्चों को नियमित तौर पर काफी बेहतर शिक्षा मिल रही है, वही विद्यालय में समय-समय पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम बच्चों व गांव के ग्रामीणों में नई ऊर्जा भरते रहते है। विद्यालय का माहौल अब पहले से ज्यादा बेहतर हो गया है, वही स्कूल में मिल रही गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से गांव का मान सम्मान भी बढ़ रहा है।

    प्रधानाध्यापक साजिद अहमद की वर्ष 2016 में विद्यालय में नियुक्ति हुई थी। तब उन्होंने साथी शिक्षकों के साथ मिलकर विद्यालय की व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए कई अहम प्रयास व नवाचार शुरू किए। इसका असर यह रहा कि विद्यालय को इस वर्ष घाटशिला प्रखंड में पांच सितारा रैंकिंग प्रदान की गई है। विद्यालय में चलाए जा रहे जोड़ी बनाओ, पगड़ी पहनाओ, पहले आओ, सम्मान पाओ, नवाचारों की बदौलत विद्यालय में 85 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे उपस्थित रहते है।

    वही विद्यालय में नियमित रूप से चलाए जा रहे पैडबैंक, साबुन बैंक, स्वास्थ्य शिविर व साफ-सफाई को बढ़ावा देने वाले कई अभियानों की बदौलत बच्चों एवं समुदाय में स्वच्छ्ता के प्रति बड़े पैमाने पर जागरूकता फैली है। विद्यालय में बच्चों की सक्रियता से संचालित किचन गार्डन व बगीचे से विद्यालय की हरियाली अब देखते ही बनती है। वही बच्चों के पठन पाठन को बढ़ावा देने के लिए पुस्तकालय और विज्ञान प्रयोगशाला की भी बेहतर व्यवस्था प्रधानाध्यापक के द्वारा की गई है।

    दो बार कोविड पाजिटिव होने के बावजूद नहीं हारी हिम्मत

    कोविड 19 के समय मे भी साजिद अहमद बच्चों की शिक्षा को लेकर काफी सक्रिय थे। विद्यालय के ज्यादातर बच्चों के पास स्मार्टफोन व इंटरनेट सुविधा नहीं होने के कारण आनलाइन शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते थे। इस स्थिति में उन्होंने मुहल्ला क्लास पहल शुरू कर बच्चों को शिक्षा दी।

    कोविड 19 के दौरान प्रशासन के दिशानिर्देशों में कार्यो में सम्पादित करने के दौरान वह दो बार कोविड पाजिटिव भी हो गए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके विशेष कार्यों को देखते हुए अनुमंडल व जिला स्तर पर अनुमंडल पदाधिकारी एवं उपायुक्त के द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था। इसके अलावा साजिद अहमद सामाजिक कार्यों में भी बेहद सक्रिय है।

    लुपुंगडीह स्कूल हुआ सुसज्जित, प्रोजेक्टर से पढ़ने लगे आदिम जनजाति के बच्चे

    पूर्वी सिंहभूम जिला के जमशेदपुर शहर से सटे लुपुंगडीह जैसे ग्रामीण क्षेत्र का स्कूल शिक्षा विभाग में चर्चा का विषय बना हुआ है। प्राथमिक विद्यालय लुपुंगडीह को शैक्षणिक विकास की पटरी पर लाने के लिए यहां के प्रधानाध्यापक राजेंद्र कुमार कर्ण को शिक्षा विभाग इस बार जिला स्तरीय शिक्षक पुरस्कार दे रहा है। इस शिक्षक ने वर्ष 2016 में लुपुंगडीह प्राथमिक विद्यालय में योगदान दिया था। उस समय विद्यालय में मात्र 22 बच्चे, जर्जर दो कमरे थे। चारदीवारी नहीं थी। बिजली नहीं थी।

    शिक्षक ने सबसे पहले वहां के आदिम जनजाति के सबर बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया जो स्कूल जाना नहीं चाहते थे। काफी प्रयास छुटे हुए बच्चों को स्कूल लाने में कामयाब हुआ। आज बच्चों की संख्या 52 पहुंची। सबर बच्चे प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बगल के मध्य विद्यालय में पढ़ने जाते हैं। छात्राओं का सीधे कस्तूरबा में दाखिला करवा दिया जाता है। शिक्षक ने लीक से हटकर स्कूल के विकास व आधारभूत संरचना को लेकर टाटा कमिंस से संपर्क किया।

    इसके परिणामस्वरूप आज विद्यालय में पांच कमरे, कंक्रीट पीलर से चारदीवारी, अत्याधुनिक रेन वाटर हार्वेस्टिंग बना है। विद्यालय में लेटैस्ट प्रोजेक्टर से बच्चों को पढ़ाया जाता है, फिल्मे दिखाई जाती है। वर्ग कक्ष को चाईल्ड फ्रेंडली, पर्यावरण आधारित बनाया एवं सजाया गया है। आधुनिक किचेन, किंडर गार्डन, किचेन गार्डन, औषधीय, गार्डन एवं शौचालय प्रस्तावित है। विद्यालय का लुक एक माडल आधुनिक स्तर का दिया जा रहा है।

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