टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा ने साझा किए अनुभव, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें
रतन टाटा का कहना है कि जमशेदपुर आने से पहले मैंने अपनी दादी के साथ यादगार पल बिताए। यह मेरे जीवन का यादगार समय था। मैं अपनी दादी से खूब बातें करता था।
जमशेदपुर, जासं। Tata Trust Chairman Ratan Tata shared experiences टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा ने फेसबुक पेज हयूमन्स ऑफ बॉम्बे में अपने अनुभव की दूसरी कड़ी को साझा किया है। इसमें उन्होंने अपनी दादी के साथ बिताए पल, जमशेदपुर आने के बाद अपने प्रारंभिक जीवन और समूह का चेयरमैन बनने की पूरी कहानी की विस्तार से चर्चा की है। रतन टाटा ने पेसबुक पर अपने जीवन के अनुभवों की पहली कड़ी में व्यक्तिगत जीवन, शादी नही होने जैसे बातों को साझा किया था।
टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर बहुत कुछ सीखा
रतन टाटा कहते हैैं कि उन्होंने लंबे समय तक जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर समय बिताकर खुद को साबित करने का प्रयास किया था। इस दौरान अपनी दादी से जो सीखा था, उसी से प्रेरित कहते हुए चेयरमैन बनने के बाद होनेवाली आलोचना के समय सम्मानजनक तरीके से मौन रहा। चेयरमैन बनने के बाद जब मैं जेआरडी के साथ उनके ऑफिस मेंं गया तो उन्होंने अपने सेक्रेट्री को बुलाकर कहा कि उन्हें अब बाहर जाना है। लेकिन मैंने कहा, नहीं जे, आप कहीं मत जाओ। यह आपका कार्यालय है। आप जबतक चाहो यहां रहो। उन्होंने कहा कि तो तुम कहां बैठोगे? मैंने कहा कि जहां आज मैं बैठता हूं। मेरा ऑफिस नीचे है और वह ठीक है, मैं वहीं बैठूूंगा। मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने उन्हें अपने साथ वहां ले जा सका। वे मेरे सबसे बड़े गुरु थे। जब तक वे जीवित रहे, मैं उनके ऑफिस में जाता था और कहता था कि जे, काश यह दस साल पहले हुआ होता। हम दोनों के बीच बहुत अच्छे संबंध थे। वे मेरे पिता की तरह थे। वो मेरे भाई से बढ़कर थे।
इंटर्नशिप के लिए भेजा गया टाटा मोटर्स
रतन टाटा का कहना है कि जमशेदपुर आने से पहले मैंने अपनी दादी के साथ यादगार पल बिताए। यह मेरे जीवन का यादगार समय था। मैं अपनी दादी से खूब बातें करता था। अपने कुत्ते के साथ उनकी कार का दौड़कर पीछा करता था। लेकिन उनके निधन से कुछ समय पहले मुझे जमशेदपुर स्थित टाटा मोटर्स में इंटर्नशिप के लिए भेज दिया गया। मुझे यहां एक विभाग से दूसरे विभाग भेजा गया, जिससे मेरा समय बर्बाद हुआ। मुझे नहीं बताया कि मुझे करना क्या है।
टाटा स्टील आने के बाद नौकरी के प्रति दिलचस्पी बढ़ी
रतन टाटा बताते हैं कि टाटा स्टील में मुझे विशिष्ट काम मिला था। तभी नौकरी के प्रति मेरी दिलचस्पी बढ़ी। यहां पर अपने साथ काम करने वाले कर्मचारियों की दुर्दशा को समझा। उस दौर में हमने कर्मचारियों की संख्या को 75 हजार से घटाकर 40 हजार किया। यह आसान नहीं था क्योंकि कर्मचारियों के डीएनए में टाटा स्टील बसा था। लेकिन हमने कर्मचारियों और उनकी भावनाओं का आदर करते हुए उनके शेष सेवाकाल तक उनके वर्तमान वेतन का भुगतान किया।
चेयरमैन बनने पर हुई खूब आलोचना, लेकिन मैं रहा मौन
रतन टाटा बताते है कि वो 1991 का दौर था। जब जेआरडी टाटा ने टाटा समूह के अध्यक्ष का अपना पद छोड़ा। जब तक जेआरडी चेयरमैन रहे अमूमन किसी ने उनकी आलोचना नहीं की। लेकिन कुछ शातिर लोगों ने उनका पद पाने के लिए आलोचनाएं शुरू कर दी। इसी दौरान भाई-भतीजावाद के आरोपों के बीच जब मुझे चेयरमैन बनाया गया, तब मेरी खूब आलोचना हुई। बताया गया कि जेआरडी टाटा ने गलत निर्णय ले लिया है। वह समय मेरे लिए संघर्ष का था।
आर्किटेक्ट का शौक रहा कायम
जमशेदपुर में छह वर्ष बीताने के बावजूद आर्किटेक्ट का मेरा शौक कायम रहा। मुझे अपना और अपनी मां का घर सजाने में मजा आता था। लेकिन मेरा जीवन व्यवसाय के लिए समर्पित था। इसके बावजूद मैंने अपनी नौकरी पर फोकस किया।
- जमशेदपुर में खूब सीखा, टाटा मोटर्स में एक विभाग से दूसरे विभाग में भेजा जाता रहा
- जेआरडी गुरु की तरह, टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर खुद को साबित करने का किया प्रयास