'चेरो' की विरासत, आर्चरी का निशाना: टाटा स्टील ने 400 साल के इतिहास को बनाया खेल का भविष्य
टाटा स्टील ने देश की पहली आर्चरी प्रीमियर लीग में अपनी टीम का नाम चेरो आर्चर्स रखा है। यह नाम झारखंड के गौरवशाली चेरो राजवंश को एक श्रद्धांजलि है जो अपनी वीरता और युद्ध कौशल के लिए जाना जाता था। चेरो नाम के ज़रिए टाटा स्टील झारखंड के समृद्ध इतिहास और आदिवासी विरासत को खेल के मंच पर फिर से जीवित करना चाहता है।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। इंडियन सुपर लीग (आइएसएल) में जमशेदपुर एफसी के साथ शहर को एक खेल पहचान देने के बाद, टाटा स्टील ने अब देश की पहली आर्चरी प्रीमियर लीग (एपीएल) में अपनी टीम ''चेरो आर्चर्स'' के साथ कदम रखा है।
इस बार कंपनी ने टीम के नाम को शहर की सीमाओं से निकालकर झारखंड के गौरवशाली इतिहास से जोड़ा है। यह नामकरण केवल एक ब्रांडिंग रणनीति नहीं, बल्कि झारखंड की समृद्ध आदिवासी विरासत और चेरो राजवंश की अदम्य भावना को एक श्रद्धांजलि है।
आखिर क्यों चुना गया ''चेरो'' नाम?
''चेरो आर्चर्स'' नाम झारखंड की उस वीर भूमि को नमन है, जिस पर सदियों तक चेरो राजवंश ने शासन किया। यह नाम ऐतिहासिक चेरो वंश की जुझारू और समर्पित भावना को दर्शाता है।
चेरो शासक अपनी स्वतंत्रता, शौर्य और संघर्ष के लिए जाने जाते थे, जिन्होंने बाहरी आक्रांताओं, विशेषकर मुगलों से जमकर लोहा लिया। टीम का प्रतीक चिन्ह भी इस्पात सी मजबूती, पारंपरिक आदिवासी कला और भविष्य की जीत के दृष्टिकोण को एक साथ पिरोता है।
चेरो राजवंश और युद्ध कौशल का नाता
चेरो राजवंश के युग में तीर-धनुष युद्ध का एक प्रमुख अस्त्र हुआ करता था। पलामू के घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में चेरो शासकों ने अपनी सत्ता स्थापित की और उसे बनाए रखने के लिए एक मजबूत सेना पर निर्भर रहे।
कहा जाता है कि जब भगवंत राय ने चेरो साम्राज्य की नींव रखी, तो उनकी सेना में हजारों योद्धा शामिल थे। मुगलों के खजानों को लूटना और उनके कारवां पर हमला करना उनकी युद्ध रणनीति का हिस्सा था, जिसमें तीरंदाजी जैसे कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी।
क्या है चेरो राजवंश का गौरवशाली इतिहास?
झारखंड के इतिहास में चेरो राजवंश का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। 12वीं-13वीं शताब्दी में पाल वंश के पतन के बाद चेरो एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे।
पलामू में इस वंश की स्थापना का श्रेय भगवंत राय को दिया जाता है, जिन्होंने 1613 ईस्वी के आसपास रक्सेल राजपूतों को पराजित कर चेरो सत्ता की नींव रखी थी। इस राजवंश ने करीब 300 से 400 वर्षों तक न केवल झारखंड बल्कि बिहार के भी कई हिस्सों पर शासन किया।
इस वंश के सबसे प्रतापी शासक मेदिनी राय (1658-1674) हुए, जिनके काल को पलामू का स्वर्ण युग माना जाता है। उनका राज्य दूर-दूर तक फैला था और उनकी प्रजा की खुशहाली आज भी लोकोक्तियों में जीवित है- "धन-धन राजा मेदनिया, घर-घर बाजे मथानिया"।
हालांकि, मुगलों से लगातार संघर्ष और आंतरिक कलह के कारण धीरे-धीरे यह राजवंश कमजोर होता गया और अंततः ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। टाटा स्टील ने ''चेरो आर्चर्स'' के माध्यम से इसी भूली-बिसरी वीरता को फिर से राष्ट्रीय पटल पर लाने का एक सराहनीय प्रयास किया है, जो तीरंदाजी के खेल को एक नई पहचान और प्रेरणा देगा।
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