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    Tata Steel: शहरी कचरे से बना चारकोल, इस्पात के उत्पादन में कम होगा 50 हजार टन कार्बन उत्सर्जन

    Updated: Thu, 19 Jun 2025 05:32 PM (IST)

    टाटा स्टील ने कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। कंपनी ने जमशेदपुर और ओडिशा के संयंत्रों में शहरी कचरा और बांस से बने बायोचार का उपयोग कोयले की जगह करना शुरू कर दिया है। इस पहल से सालाना लगभग 50 हजार टन कार्बन उत्सर्जन कम होगा। टाटा स्टील इस तकनीक को अपनाने वाली देश की पहली कंपनी बन गई है।

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    टाटा स्टील का ब्लास्ट फर्नेस (जागरण फोटो)

    निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर। कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में टाटा स्टील ने एक बड़ी छलांग लगाई है। जमशेदपुर और ओडिशा स्थित अपने संयंत्रों में कंपनी ने शहरी कचरा और बांस के बायोमास से तैयार बायोचार यानी एक तरह का चारकोल, इस्पात निर्माण के लिए कोयले की जगह इस्तेमाल करना शुरू किया है।

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    इस पहल से हर साल करीब 50 हजार टन कार्बन उत्सर्जन घटेगा। साथ ही वर्तमान समय में इन संयंत्रों में 30 हजार टन जीवाश्म ईंधन की खपत भी कम हो गई है। इस तकनीक को अपना कर टाटा स्टील देश की पहली कंपनी बन गई है जो इस्पात उत्पादन में वैकल्पिक ईंधन के रूप में बायोचार का इस्तेमाल कर रही है।

    देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनियों में शुमार टाटा स्टील लंबे समय से ग्रीन स्टील की दिशा में काम कर रही है। कंपनी ने वर्ष 2045 तक इस्पात के उत्पादन में नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है। इस दिशा में आरएंडडी टीम ने जनवरी 2023 से जमशेदपुर स्थित ब्लास्ट फर्नेस में बायोचार का सफल परीक्षण शुरू किया। 3,000 घन मीटर और 9,000 टन प्रतिदिन क्षमता वाले फर्नेस में यह प्रयोग सफल रहा।

    ओडिशा के प्लांटों में भी मिली सफलता

    टाटा स्टील के जमशेदपुर के अलावा ओडिशा में कटक जिले के अथागढ़ में फेरो क्रोम प्लांट है। इसके अलावा कलिंगनगर में स्थित संयंत्र में भी कंपनी बायोचार और बायोमास का उपयोग कर रही है।

    कंपनी ने अब तक लगभग 30 हजार टन जीवाश्म ईंधन को बायोचार से बदला है। इससे संयंत्र में होने वाले कार्बन उत्सर्जन में 50 हजार टन से अधिक की सालाना कमी दर्ज की गई है जोकि कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।

    कैसे बनता है यह बायो चारकोल

    बायो चारकोल बनाने के लिए शहरी कचरे और बांस के अवशेषों को पहले अलग किया जाता है। फिर उन्हें 500 डिग्री सेल्सियस तापमान पर थर्मोकैटेलिटिक गैसीकरण प्रक्रिया से गुजारा जाता है। इस प्रक्रिया से सिनगैस और बायो चारकोल तैयार होता है। इसी बायो चारकोल को बायोचार कहा जाता है जिसे ब्लास्ट फर्नेस में इंजेक्शन तकनीक के जरिए डाला जाता है, जो कोयले का विकल्प बनता है।

    कार्बन उत्सर्जन में भारी गिरावट

    इस नई तकनीक से प्रति टन इस्पात निर्माण में करीब तीन टन कार्बन उत्सर्जन की कमी हुई है। वहीं फेरो एलाय मिनरल्स रिसर्च टीम ने एक वैकल्पिक विधि भी विकसित की है, जो सल्फर को रिडक्टेंट के रूप में इस्तेमाल करती है। इससे कुल मिलाकर इस्पात के उत्पादन के दौरान 40 प्रतिशत तक कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है।

    टाटा स्टील ने कोयले जैसे कार्बन उत्सर्जक ईंधन के बदले बायोचार का इस्तेमाल शुरू किया है और हमें इसमें सफलता भी मिली है। यह पहल इस्पात निर्माण के क्षेत्र में वैकल्पिक ईंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। - राजीव मंगल, वाइस प्रेसिडेंट, सेफ्टी, हेल्थ एंड सस्टेनबिलिटी, टाटा स्टील