Jamshedpur: कोयला ब्लॉक रद होने पर टाटा स्टील ने मांगा 757 करोड़ का मुआवजा, जानें क्या है पूरा मामला
टाटा स्टील ने ओडिशा में रद कोयला खदान आवंटन के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में 757.1 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाले के आरोपों के कारण खदान का आवंटन रद कर दिया था। टाटा स्टील अब नए खदान मालिक से विकास व्यय के लिए मुआवजे की मांग कर रही है। मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। टाटा स्टील ने ओडिशा के रद किए गए कोयला खदान आवंटन को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में 757.1 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की है।
यह खदान पहले भूषण स्टील को 2006 में मिली थी, जिसे 2018 में टाटा स्टील ने अधिग्रहित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाले के आरोपों के चलते खदान का आवंटन रद कर दिया था। अब टाटा स्टील को नए खदान मालिक से विकास खर्च का मुआवजा चाहिए।
कोयला खदान का मामला क्या है?
2006 में भूषण स्टील (अब टाटा स्टील बीएसएल) को ओडिशा की न्यू परतपारा कोयला खदान दी गई थी। कंपनी ने इस खदान को विकसित करने में काफी पैसा लगाया। लेकिन 2014 में कोयला घोटाले के आरोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस खदान का आवंटन रद कर दिया।
इसके बाद खदान का कुछ हिस्सा नीलामी के जरिए नए मालिक को दे दिया गया। नियमों के मुताबिक, पुराने मालिक को नए मालिक से खदान के विकास में खर्च की गई राशि का मुआवजा मिलना चाहिए। टाटा स्टील अब इसी मुआवजे की मांग कर रही है।
टाटा स्टील क्यों गए कोर्ट?
टाटा स्टील ने पहले भी दिल्ली हाई कोर्ट में मुआवजे के लिए याचिका दायर की थी। लेकिन नियमों में बदलाव और अन्य कारणों से कंपनी ने पुरानी याचिका वापस ले ली।
कोर्ट ने उन्हें भविष्य में नई याचिका दायर करने की इजाजत दी थी। अब टाटा स्टील ने 757.1 करोड़ रुपये और ब्याज की मांग के साथ नई याचिका दायर की है। अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी।
भूषण स्टील का टाटा स्टील में विलय
2018 में टाटा स्टील ने अपनी सहायक कंपनी बामनीपाल स्टील के जरिए भूषण स्टील को 35 हजार 200 करोड़ रुपये में खरीदा। यह सौदा दिवालिया प्रक्रिया के तहत हुआ, जिसमें टाटा स्टील ने भूषण स्टील के वित्तीय लेनदारों को 35 हजार 200 करोड़ रुपये और परिचालन लेनदारों को 12 सौ करोड़ रुपये का भुगतान किया।
नवंबर 2021 में भूषण स्टील का टाटा स्टील में विलय हो गया। अब टाटा स्टील इस खदान से जुड़े पुराने अधिकारों और मुआवजे की मांग कर रही है।
कानून क्या कहता है?
2015 में बने कोल माइंस (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट के तहत, अगर किसी खदान का आवंटन रद होता है, तो पुराने मालिक को नए मालिक से खदान के विकास में खर्च की गई राशि का मुआवजा मिलना चाहिए।
टाटा स्टील का दावा है कि उसने खदान के विकास में काफी निवेश किया था, जिसका मुआवजा उसे अब तक नहीं मिला। कंपनी ने कोर्ट से इस राशि के साथ ब्याज की भी मांग की है।
आगे क्या होगा?
दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को करेगा। टाटा स्टील को उम्मीद है कि कोर्ट उनके पक्ष में फैसला देगा और उन्हें मुआवजा मिलेगा।
यह मामला न केवल टाटा स्टील के लिए, बल्कि कोयला खदान आवंटन से जुड़े अन्य मामलों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि पुराने निवेशकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी प्रक्रिया कितनी जटिल हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में कोयला घोटाले के चलते 204 कोयला खदानों का आवंटन रद किया था। न्यू परतपारा खदान भी इन्हीं में से एक थी।
टाटा स्टील की याचिका और मुआवजे की मांग इस मामले से जुड़ी है। कंपनी का कहना है कि उसने खदान के विकास में भारी निवेश किया था, और उसे कानून के तहत मुआवजा मिलना चाहिए।
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