टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर का नाम पता है आपको, नहीं तो जान लीजिए
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने में महती भूमिका निभाने वाले इंफोसिस के पूर्व चेयरमैन नारायण मूर्ति व सुधा मूर्ति को भला कौन नहीं जानता। लेकिन आपको पता है कि सुधा मूर्ति की एक पत्र ने जेआरडी टाटा को टाटा मोटर्स के नियम में बदलाव करने पड़े थे।

जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर : इंफोसिस के सह संस्थापक नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति की सादगी से भला कौन परिचित नहीं है। लेकिन इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति टाटा मोटर्स के एक नियम को लेकर बिजनेस टायकून जेआरडी टाटा से भिड़ गई थी। जेआरडी को गलती का अहसास हुआ और उन्हें नियम बदलने का निर्देश दिया। नियम बदले जाने के बाद सुधा मूर्ति टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर बन गई।
टाटा मोटर्स को पहले टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी (टेल्को) के नाम से जाना जाता था। वह बतौर डेवलपमेंट इंजीनियर के तौर पर टाटा मोटर्स के जमशेदपुर प्लांट में काम किया। लेकिन किसे पता था कि साधारण सी दिखने वाली यह महिला अपने पति नारायण मूर्ति के साथ मिलकर भारत के इंफोर्मेशन व टेक्नोलॉजी सेक्टर में नई क्रांति ला देगी।
कभी टाटा मोटर्स में महिलाओं को नहीं मिलता था रोजगार
टेल्को में उनकी नियुक्ति अपने आप में एक दिलचस्प कहानी है। एक समय था जब भारत की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता कंपनी टेल्को में महिलाओं को रोजगार नहीं मिलता था। हालांकि, मूर्ति ने इसे बदल दिया और कंपनी में पहली महिला इंजीनियर बनीं। कर्नाटक की छोटे से गांव शिगगांव की रहने वाली सुधा न सिर्फ अपने गांव की पहली महिला इंजीनियर बल्कि टाटा मोटर्स की भी पहली महिला इंजीनियर बनी।
Only for Male विज्ञापन देख भड़क गई थी सुधा मूर्ति
वर्ष 1974 की बात है। सुधा मूर्ति को अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिली। वह अमेरिका जाने की तैयारी में जुट गई। तभी एक दिन अखबार में टेल्को (टाटा मोटर्स) में नौकरी का विज्ञापन देखा। लेकिन विज्ञापन में उल्लेख किया गया था कि केवल पुरुष ही आवेदन कर सकते हैं। इस बात को लेकर सुधा मूर्ति को काफी गुस्सा आया कि टाटा मोटर्स जैसी कंपनी भी लैंगिक भेदभाव करती है। वह बिना देर किए कंपनी को पत्र लिखने का फैसला किया।
जेआरडी टाटा को पत्र लिख जताया ऐतराज
चूंकि सुधा उस व्यक्ति को नहीं जानती थी कि पत्र में किसे संबोधित करना है। उन्होंने फैसला कि जेआरडी टाटा को ही पत्र लिख दूं। उन्होंने कलम उठाया और लिख डाला लेटर। पत्र में सुधा ने 'सिर्फ पुरुषों के लिए' शब्द को उद्धृत करते हुए लिखा कि महिलाएं पुरुषों से बेहतर काम करती हैं और अगर उन्हें मौका नहीं दिया गया, तो वे खुद को साबित नहीं कर पाएंगी।
जेआरडी को गलती का हुआ अहसास, टाटा मोटर्स ने नियम में किया बदलाव
जेआरडी अपने ऑफिस में आने वाले सभी पत्रों को ध्यान से पढ़ते थे। उन्होंने सुधा मूर्ति का पत्र देखा और अपनी कंपनी की गलती का अहसास हुआ। उन्होंने न सिर्फ 'पुरुष कर्मचारी' नीति को बदल दिया और महिला आवेदकों के लिए भी साक्षात्कार और परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया।" नतीजतन, सुधा को एक विशेष साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और तुरंत काम पर रखा गया। मूर्ति बाद में वरिष्ठ पुणे के वालचंद ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट की नौकरी की।
कर्नाटक के सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर के लिए लड़ी लड़ाई
सुधा मूर्ति एक इंजीनियर के साथ-साथ एक शिक्षक तथा कन्नड़, मराठी और अंग्रेजी लेखक भी हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस में अपना प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत की। मूर्ति को उनके सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है और उनका सम्मान किया जाता है।
उन्होंने कई अनाथालयों की स्थापना की। कर्नाटक के सभी सरकारी स्कूलों को कंप्यूटर और पुस्तकालय प्रदान करने के आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में 'द मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया' की भी स्थापना की।
देश भर में 60 हजार पुस्तकालय व स्कूल खोल चुकी हैं सुधा मूर्ति
जो लोग नहीं जानते हैं, उनके लिए सुधा मूर्ति ने भारत में 60 हजार पुस्तकालय, नए स्कूल और 16 हजार से अधिक वॉशरूम खोलने में मदद की है। मूर्ति कई लोगों के लिए प्रेरणा रही हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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