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Tata Nuclear Plant : देश को न्यूक्लियर पावर बनाने में भी है टाटा का है अहम रोल, जाने इसके पीछे का पूरा इतिहास

Tata Nuclear Plant हाल ही में कर्ज में डूबे एयर इंडिया को 18000 करोड़ में खरीदकर संजीवनी बूटी देने वाले टाटा समूह की चर्चा चहुंओर हो रही है। लेकिन क्या आपको पता है कि टाटा ग्रुप ने देश में पहली न्यूक्लियर प्लांट स्थापना करने में मदद की थी।

By Jitendra SinghEdited By: Published: Wed, 13 Oct 2021 06:45 AM (IST)Updated: Wed, 13 Oct 2021 05:30 PM (IST)
Tata Nuclear Plant : देश को न्यूक्लियर पावर बनाने में भी है टाटा का है अहम रोल, जाने इसके पीछे का पूरा इतिहास
देश को न्यूक्लियर पावर बनाने में भी है टाटा का है अहम रोल, जाने इसके पीछे का पूरा इतिहास

जमशेदपुर : टाटा समूह ने पिछले दिनों ही एयर इंडिया का 100 प्रतिशत अधिग्रहण किया है लेकिन क्या आपको पता है कि भारत को न्यूक्लियर पावर बनाने में टाटा समूह, खासकर समूह के पूर्व चेयरमैन जेआरडी टाटा उर्फ जेह का विशेष योगदान है। यदि जेआरडी टाटा नहीं होते या उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया होता है तो भारत को न्युक्लियर पावर बनाने वाले वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा विदेश चले गए होते और भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनने में और भी कई वर्ष लग जाते। आइए जानते हैं इसके पीछे का इतिहास...

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जेआरडी टाटा और डा. भाभा की हुई थी मुलाकात

यह बात आजादी से पहले वर्ष 1945 की थी। उस दौर में जेआरडी टाटा और डा. होमी जहांगीर भाभा की एक मुलाकात हुई। तब डा. भाभा एक इंजीनियर के रूप में अपना कैरियर शुरू कर रहे थे लेकिन देश में शोध के क्षेत्र में सुविधाओं की कमी से वे काफी दुखी थी।

डा. भाभा ने इसकी जानकारी जेआरडी टाटा को दी। तब जेआरडी ने डा. भाभा को एक सुझाव दिया, जिसके बाद देश में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना हुई। जिसने भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाया और डा. भाभा संस्थान के पहले निदेशक बने। यदि ऐसा नहीं होता तो डा. भाभा शोध के लिए विदेश चले गए होते लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए इसलिए जेआरडी टाटा के सुझाव पर अमल किया।

जेआरडी के सुझाव पर टाटा समूह के चेयरमैन को लिखा पत्र

भारत में शोध के क्षेत्र में विश्वस्तरीय संस्थान खुले। इसके लिए जेआरडी टाटा के सुझाव पर डा. भाभा ने टाटा समूह के तत्कालीन चेयरमैन सर दोराबजी सकलतवाला को एक पत्र लिखा और शोध के संस्थान खोलने के लिए वित्तीय सहायता दी जाने की अपील की। इस पत्र का जेआरडी टाटा ने भी समर्थन किया। इसके बाद तत्कालीन चेयरमैन सकलतवाला ने डा. भाभा द्वारा मांगी गई पूरी रकम उन्हें संस्थान खोलने में मदद की और भारत को शोध संस्थान के रूप में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की ओर से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी। संस्थान के निर्माण पर डा. भाभा पहले निदेशक बने लेकिन वर्ष 1966 में एक विमान दुर्घटना में उनकी असमय मौत हो गई।

संस्थान ने दिया भारत को पहला डिजिटल कंम्प्यूटर

आपको बता दें कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना के बाद बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट के कॉस्मिक रे विभाग को इसमें मिला दिया था। जिसके बाद भारत को वर्ष 1957 में पहला डिजिटल कम्प्यूटर मिला। इसके अलावा पृथ्वी से दूर स्थित ग्रहों को पता लगाने के लिए इस संस्थान का अहम योगदान है। भारत में परमाणु विज्ञान के सारे शुरूआती शोधकार्य और प्रयोग इसी संस्थान में किए गए थे।


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