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    जमशेदपुर की 'दुर्गा' ने थामा 53 बेसहारा जिंदगियों का हाथ, 'संपूर्ण आश्रय' से दे रहीं ममता की छांव

    By Ch Rao Edited By: Rajat Mourya
    Updated: Tue, 23 Sep 2025 05:52 PM (IST)

    जमशेदपुर में सुष्मिता सरकार नामक एक महिला बुजुर्गों और बेसहारा लोगों के लिए आशा की किरण बनकर आई हैं। 2021 में एक बुजुर्ग व्यक्ति की दुर्दशा से प्रेरित होकर उन्होंने अपना जीवन ऐसे लोगों की मदद करने के लिए समर्पित कर दिया। अब तक उन्होंने 53 से अधिक बुजुर्गों को आश्रय और सहायता प्रदान की है और संपूर्ण आश्रय नामक एक संस्था भी स्थापित की है।

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    बिखरी सांसों को पिरोकर बना रहीं जीवन की नई माला

    वेंकटेश्वर राव, जमशेदपुर। शारदीय नवरात्र की पावन बेला में जब चहुंओर शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आराधना हो रही है, तब हमारे बीच ही कुछ ऐसी भी देवियां हैं, जो निस्स्वार्थ सेवा और करुणा से मानवता का पथ आलोकित कर समाजसेवा कर रही है। ये वो देवियां हैं जो पाषाण की प्रतिमाओं में नहीं, बल्कि व्यथित और पीड़ित इंसानों में ईश्वर का रूप देखती हैं।

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    मानगो की सुष्मिता सरकार ऐसी ही एक करुणा की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने उन कंधों को संबल दिया है, जिन्हें अपनों के बोझ ने ही झुका दिया और उन सूनी आंखों में अपनत्व का दीया जलाया है, जो किसी के इंतजार में पथरा गई थीं।

    एक रुदन ने बदल दी जीवन की दिशा

    हर महान यात्रा के पीछे एक मार्मिक कहानी होती है। सुष्मिता के इस सेवा-पथ का आरंभ भी एक ऐसी ही घटना से हुआ, जिसने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया। वर्ष 2021 की एक तपती दोपहरी थी। बाराद्वारी इलाके में एक बुजुर्ग की सिसकियों ने उनका रास्ता रोक लिया।

    जब पास जाकर पूछा तो पता चला कि वे टाटा स्टील के खेल विभाग से सेवानिवृत्त एक सम्मानित अधिकारी थे, जिन्हें आज दो वक्त की रोटी और सिर पर छत के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा था। उनकी आंखों से झरते आंसू और सिसकियों में घुटी व्यथा ने सुष्मिता के हृदय पर गहरा आघात किया।

    उन्होंने उसी क्षण प्रण लिया कि वे अपनी जिंदगी ऐसे ही बेसहारा और अकेलेपन का दंश झेल रहे वरिष्ठ नागरिकों के लिए समर्पित कर देंगी। अपनी गाड़ी से उन्हें बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एक आश्रय गृह तक पहुंचाकर सुष्मिता को जो आत्मिक शांति मिली, उसने इस सेवा-यज्ञ की पहली आहुति डाली।

    इस तरह कार्य करती है सुष्मिता

    शहर या शहर से बाहर कहीं भी बुजुर्गों एवं बेसहारा वृद्ध लोगों की सूचना मिलने पर सुष्मिता वहां जाती हैं। वे उनसे सारी जानकारी पूछती हैं और यह भी जानने की कोशिश करती हैं कि क्यों उन्हें दर-दर भटकना पड़ रहा है। परिवार के बारे में भी पूछताछ करती हैं।

    इसके बाद जब वे वृद्धाश्रम या शेल्टर होम में रहने की इच्छा जताते हैं, तभी वह शेल्टर होम या वृद्धाश्रम से दूरभाष पर संपर्क करती हैं। उनकी कोशिश रहती है कि जो जिस क्षेत्र के बेसहारा लोग हैं, उन्हें नजदीक के शेल्टर होम में ही रखवाएं।

    सेवा-यज्ञ में दी 53 जिंदगियों को संजीवनी

    उस एक घटना के बाद सुष्मिता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिछले आठ वर्षों से उनकी यह अनवरत सेवा-यात्रा जारी है। वे अब तक 53 ऐसे बुजुर्गों को नया जीवन दे चुकी हैं, जिन्हें उनके अपने ही पराया कर चुके थे। झारखंड की सीमाओं को लांघकर उन्होंने बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा तक के विभिन्न शेल्टर होम और वृद्धाश्रमों में इन वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना खोजा।

    उनके इस मिशन को और अधिक शक्ति देने के लिए वर्ष 2023 में 'संपूर्ण आश्रय' संस्था ने आकार लिया। आज उनकी आठ सदस्यों की समर्पित टीम इन बुजुर्गों के जीवन में खुशियों के रंग भर रही है।

    आपसी सहयोग ही संबल, नहीं कोई विशेष फंडिंग

    इस निस्स्वार्थ सेवा कार्य की सबसे बड़ी विशेषता इसका आत्मनिर्भर होना है। इस नेक कार्य के लिए कोई विशेष फंडिंग या सरकारी सहायता नहीं है। टीम के सदस्य आपसी सहयोग से ही इस सेवा-यज्ञ को अनवरत जारी रखे हुए हैं। हर त्योहार की खुशी हो या जन्मदिन का उत्सव, यह टीम अपने संसाधनों से ही उसे इन बुजुर्गों के साथ मनाकर उन्हें यह एहसास दिलाती है कि वे अकेले नहीं हैं।

    सुष्मिता मानती हैं कि बुजुर्गों को केवल भोजन और आश्रय नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक सहारे की भी उतनी ही जरूरत है। इसलिए वे संगीत, कविता और मीठे संवादों से उनके मन के घावों पर मरहम लगाती हैं।

    एक छत, एक परिवार, यही है अब अंतिम सपना

    विनोबा भावे विश्वविद्यालय से स्नातक सुष्मिता सरकार का अब बस एक ही सपना है, जमशेदपुर की धरती पर एक ऐसा 'अपना घर' बनाना, जहां ये सभी बुजुर्ग एक परिवार की तरह, एक छत के नीचे रह सकें। उनके पति बिहार की एक निजी कंपनी में कार्य करते हैं, और परिवार के सहयोग से ही वे इस सेवा कार्य को आगे बढ़ा पा रही हैं।

    वे भावुक होकर बताती हैं कि विभिन्न राज्यों में रह रहे वे सभी बुजुर्ग आज भी उन्हें फोन करके कहते हैं, 'बेटी, अब हमें अपने पास, अपने शहर जमशेदपुर में ही बुला लो।'

    अपनों से मिली इस पुकार को साकार करने के लिए सुष्मिता पूरी निष्ठा और दृढ़ संकल्प के साथ जुटी हुई हैं। वे उस दिन के इंतजार में हैं, जब वे इन सभी वरिष्ठ नागरिकों के सपनों का महल अपनी आंखों के सामने खड़ा कर सकें और उनके मुरझाए चेहरों पर एक स्थायी मुस्कान लौटा सके।