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    श्रीलेदर्स में कायम रखा स्वतंत्रता सेनानी सा जज्बा

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 22 Apr 2017 02:47 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : स्वतंत्रता सेनानी सुरेशचंद्र डे ने जो जज्बा भारत को आजाद कराने मे

    श्रीलेदर्स में कायम रखा स्वतंत्रता सेनानी सा जज्बा

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर :

    स्वतंत्रता सेनानी सुरेशचंद्र डे ने जो जज्बा भारत को आजाद कराने में दिखाया था, वही उन्होंने चर्मशिल्प उद्योग में भी दिखाया।

    ये बातें श्रीलेदर्स के मालिक शेखर डे ने शुक्रवार को कहीं। बिष्टुपुर स्थित कमानी सेंटर में शुक्रवार को श्रीलेदर्स के संस्थापक सुरेशचंद्र डे की 106वीं जयंती पर उन्होंने कहा कि सुरेशचंद्र डे ने 1952 में जमशेदपुर में श्रीलेदर्स की स्थापना की थी। जो साहस, जो इरादा, जो अनुशासन उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में दिखाया था, व्यवसाय में भी उन्हीं गुणों को शामिल किया।

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    कार्यक्रम की शुरुआत श्रीलेदर्स के मालिक शेखर डे ने सुरेशचंद्र डे के चित्र पर दीप प्रज्जवलन व श्रद्धासुमन अर्पण से की, जिसमें मास्टर सूर्य सेन व नेताजी सुभाषचंद्र बोस व स्वामी विवेकानंद को भी नमन किया।

    शेखर डे ने बताया कि उनके पिता स्व. सुरेशचंद्र डे का जन्म 21 अप्रैल 1911 को चिट्टग्राम (चट्टगांव) में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है। उनके दादा स्व. गोपीमोहन डे वहां कपड़े का व्यवसाय करते थे। उसी समय 'इंडियन रिपब्लिकन आर्मी' का गठन हुआ था, जिसके नेता मास्टर सूर्य सेन थे। संयोगवश सूर्य सेन उसी स्कूल में शिक्षक थे, जहां सुरेशचंद्र डे पढ़ते थे। अपने शिक्षक से प्रभावित होकर सुरेशचंद्र डे इंडियन रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हुए। 12 अप्रैल 1930 को चटगांव शस्त्रागार लूटकांड में मास्टर सूर्य सेन के सैनिकों में सुरेशचंद्र डे भी शामिल थे। मास्टर दा (सूर्य सेन) के नेतृत्व में चटगांव में पहली बार तिरंगा फहराया गया और आजाद घोषित किया गया। करीब छह दिन तक चटगांव ब्रिटिश शासन से मुक्त था। उन्हें जब पता चला कि इस खबर से ब्रिटिश सरकार बौखला गई है और यहां बड़ी फौज आ रही है तो मास्टर दा ने अंग्रेजों से आमने-सामने लड़ने का संकल्प लिया। सभी साथी जलालाबाद पहाड़ पर चले गए। कोलकाता की आर्मी ने उस पहाड़ को चारों ओर से घेर लिया। घमासान युद्ध हुआ, जिसमें 13 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए और कई घायल हुए। सुरेशचंद्र डे को भी दायें हाथ में गोली थी। रात के अंधेरे में सभी क्रांतिकारी पहाड़ से निकल गए। दल से छूट जाने के कारण सुरेशचंद्र डे इधर-उधर छिपे रहे, लेकिन उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वह पांच वर्ष तक चटगांव और हिजली (खड़गपुर के पास) जेल में रहे। गवाही के अभाव में उन्हें हिजली जेल से रिहा गया, जहां से छूटने के बाद वे जमशेदपुर आ गए थे। उनके आदर्श व बताए गए रास्तों पर श्रीलेदर्स आज भी चल रहा है। आज इसका विस्तार भारत सहित कई देशों में फैला है।

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    दिन भर बंटा चना-शर्बत

    श्रीलेदर्स की संस्थापक जयंती पर प्रतिवर्ष की भांति बिष्टुपुर मेन रोड पर मसालेदार चना व शर्बत का वितरण किया गया, जो सुबह करीब आठ बजे से शाम तक चला। इससे पूर्व कमानी सेंटर में कार्यक्रम हुआ, जिसमें बतौर अतिथि रामकृष्ण मिशन स्कूल के प्राचार्य डॉ. रंजीत चौधरी, भास्कर मित्रा व द्विजेंद्र सरकार भी उपस्थित थे। वक्ताओं ने उनके जीवन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन श्रीलेदर्स के वरीय प्रबंधक तुषार सरकार ने किया।

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