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    Shibu Soren Death: आदिवासियों के मसीहा के रूप में जाने जाते थे शिबू सोरेन, जमशेदपुर में ही रखी थी JMM की नींव

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 10:50 AM (IST)

    झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन जिन्हें दिशोम गुरु के नाम से जाना जाता है उनका 81 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अलग राज्य की मांग को मजबूत किया। शिबू सोरेन का जमशेदपुर से बहुत ही गहरा नाता था।

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    शिबू सोरने का जमशेदपुर से था गहरा नाता। (फोटो जागरण)

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और झारखंड आंदोलन के दिग्गज नेता शिबू सोरेन का दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया।

    81 वर्षीय शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' के नाम से जाना जाता है, लंबे समय से ब्रेन स्ट्रोक और किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। उनके निधन से झारखंड में शोक की लहर है और विशेष रूप से जमशेदपुर, जहां उनका आंदोलन गहरा प्रभाव छोड़ गया। वहां भी उनको श्रद्धांजलि दी जा रही है।

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    शिबू सोरेन और झारखंड आंदोलन

    शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जिले के नामरा गांव में हुआ था। उनके पिता, सोबरन सोरेन, एक शिक्षक थे, जिनकी 1957 में सूदखोरों और शराब माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाने के कारण हत्या कर दी गई।

    इस घटना ने युवा शिबू को आदिवासी हितों और शोषण के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रेरित किया। 1970 में उन्होंने 'धान काटो आंदोलन' शुरू किया, जिसके तहत आदिवासियों की जमीन हड़पने वाले जमींदारों की फसलों को सामूहिक रूप से काटा गया। इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासियों के मसीहा के रूप में स्थापित किया।

    1972 में, शिबू सोरेन ने बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की। यह संगठन अलग झारखंड राज्य की मांग को निर्णायक रूप देने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

    1987 में झामुमो की विशाल जनसभा में सोरेन ने झारखंड के लिए निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया। 1989 में उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देकर अलग राज्य के लिए अल्टीमेटम दिया, जिसने आंदोलन को और तेज किया। उनकी मेहनत 15 नवंबर 2000 को फलीभूत हुई, जब झारखंड एक अलग राज्य बना।

    जमशेदपुर और शिबू सोरेन का कनेक्शन

    जमशेदपुर, झारखंड का औद्योगिक केंद्र, शिबू सोरेन और झारखंड आंदोलन का महत्वपूर्ण गढ़ रहा। 1970 के दशक में, सोरेन ने जमशेदपुर के आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की। उनके नेतृत्व में झामुमो ने संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाई। 2015 में जमशेदपुर में हुए झामुमो के अधिवेशन में हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया, जो शिबू सोरेन के नेतृत्व का विस्तार था।

    गोल्फ ग्राउंड में रखी गई थी झामुमो की नींव

    जमशेदपुर के गोल्फ ग्राउंड में 4 फरवरी 1972 को झामुमो की नींव रखी गई थी, जहां शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और एके राय ने अलग झारखंड के लिए आंदोलन की रूपरेखा तैयार की। इस ऐतिहासिक रैली ने झारखंड आंदोलन को नई दिशा दी और जमशेदपुर को आंदोलन का प्रतीक बनाया।

    झारखंड आंदोलन का केंद्र बना जमशेदपुर

    झारखंड राज्य के गठन में शिबू सोरेन का योगदान अतुलनीय है, और इस आंदोलन में जमशेदपुर की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सोनत संताल समाज की स्थापना के बाद, शिबू सोरेन ने आदिवासियों को एकजुट करने और उनके अधिकारों के लिए लड़ने का काम शुरू किया। इस लड़ाई में उन्हें निर्मल महतो जैसे युवा और ऊर्जावान नेताओं का सहयोग मिला, जो बाद में उनके करीबी साथी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख चेहरे बने।

    जमशेदपुर, एक औद्योगिक शहर होने के कारण, झारखंड आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। यहां बड़ी संख्या में आदिवासी और मूल निवासी मजदूर काम करते थे, जो शोषण और उपेक्षा का शिकार थे। शिबू सोरेन और निर्मल महतो ने इन्हीं मजदूरों को संगठि त किया और उनके बीच राजनीतिक चेतना जगाई।

    झामुमो के संस्थापक अध्यक्ष बने शिबू सोरेन

    झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन, जिसने झारखंड आंदोलन को एक नया आयाम दिया, उसमें भी जमशेदपुर की बड़ी भूमिका थी। 1973 में गठित इस पार्टी का उद्देश्य झारखंड राज्य की स्थापना था। शिबू सोरेन अध्यक्ष थे, और निर्मल महतो महासचिव बने। दोनों ने मिलकर पूरे क्षेत्र में आंदोलन को गति दी। इस दौरान, जमशेदपुर में कई रैलियां और सभाएं हुईं, जिन्होंने आंदोलन को जनसमर्थन दिलाया।

    शिबू सोरेन और जमशेदपुर

    शिबू सोरेन का जमशेदपुर के साथ एक गहरा संबंध था। उन्होंने कई बार यहां आकर सभाएं कीं और लोगों को झारखंड आंदोलन से जोड़ा। उनके भाषणों में झारखंड की पहचान, भाषा और संस्कृति पर जोर दिया जाता था, जो जमशेदपुर के आदिवासियों और मूल निवासियों को प्रभावित करता था।

    यह माना जाता है कि निर्मल महतो के नेतृत्व में, जमशेदपुर में झामुमो की ताकत बढ़ी। निर्मल महतो की 1987 में हत्या ने जमशेदपुर में झारखंड आंदोलन को एक बड़ा झटका दिया। इस घटना ने पूरे राज्य में आक्रोश पैदा किया और आंदोलन को और भी तेज कर दिया। निर्मल महतो की शहादत को झारखंड आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।

    निर्मल महतो परिवार से था गहरा नाता

    झारखंड आंदोलन में निर्मल महतो का योगदान भी अविस्मरणीय है। जमशेदपुर के एक प्रखर नेता, निर्मल महतो ने 1986 में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) की स्थापना की और झारखंड आंदोलन को युवाओं के बीच ले गए। 1984 में वे झामुमो के अध्यक्ष बने, लेकिन 1987 में उनकी हत्या ने आंदोलन को झटका दिया। निर्मल महतो की जयंती पर शिबू सोरेन हमेशा जमशेदपुर आते रहे।

    शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर

    शिबू सोरेन ने 1980 में दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और आठ बार सांसद रहे। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में भी कार्य किया। हालांकि, उनके करियर में विवाद भी रहे, जैसे 1975 के चिरूडीह कांड और 1994 में उनके निजी सचिव की हत्या का मामला।

    2025 में, स्वास्थ्य कारणों से शिबू सोरेन ने झामुमो की कमान अपने बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सौंप दी। उनके निधन पर आजसू प्रमुख सुदेश महतो, सांसद विद्युत वरण महतो और अन्य नेताओं ने शोक व्यक्त किया।

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