सरस्वती का महत्व वैदिक वाड्मय से लेकर अर्वाचीन वाड्मय तक वर्णित
वेदों में परम शक्ति स्वरूपा त्रिदेवियों का वर्णन उपलब्ध है ।

सनातन परंपरा में विद्यादात्री सरस्वती का महत्व वैदिक वाड्मय से लेकर अर्वाचीन वाड्मय तक वर्णित है। वैदिककाल से लेकर परिवर्तित साहित्य तक सरस्वती एक नदी एवं एक देवी के रूप में पूजित हैं। वेदों में परम शक्ति स्वरूपा त्रिदेवियों का वर्णन उपलब्ध है ।
अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां
वयी: प्रजा: सृजमानां सरूपा:।
अर्थात बहुत प्रजाओं को सृजन करनेवाली रजोगुण, सत्वगुण एवं तमोगुण विशिष्टा यथाक्रम महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं महाकाली का ग्रहण किया जाता है । दुर्गासप्तशती में श्रीमहालक्ष्यै नम:, श्रीमहासरस्वत्यै नम: एवं श्रीमहाकाल्यै नम: के साथ पाठ करने का विधान बताया गया है। ये तीनों देवी मिलकर महाशक्ति कहलाती हैं। कहीं-कहीं वह ब्रह्मा की पत्नी के रूप में कहीं कहीं विष्णु की पत्नी के रूप में आराधिता है। उनके लिए प्रमुख रूप में द्वादश नाम प्रसिद्ध हैं।
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती।
तृतीयं शारदादेवी चतुर्थं हंसवाहिनी।।
पंचमं जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा।
सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी।।
नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी।
एकादशं चंद्रकांतिद्र्वादशं भुवनेश्वरी।।
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विष्णु की पत्नी सरस्वती या ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती
पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रहमा की पुत्री सरस्वती का विवाह विष्णु से संपन्न हुआ था जो परा और अपरा विद्या की अधिष्ठात्री है। एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा की पांच पत्नियां थी - सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा एवं सरस्वती। पुष्कर यज्ञ में सावित्री अनुपस्थित होने से ब्रह्माजी ने वेदों की ज्ञाता गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था । श्रीमछ्वागवत पुराण के अनुसार ब्रह्माजी अपनी पुत्री सरस्वती से विवाह की कामना की थी, जिसके कारण उनका महत्व घट गया था।
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व्रतकथा
विश्व की सृष्टि के पश्चात ब्रह्माजी स्वयं पृथ्वी का अवलोकन करने निकल पड़े एवं अनुभव किया कि समस्त जीव जगत जड़ सा है। किसी की भी बोलने की शक्ति नहीं है। तब उन्होंने अपने कमण्डल से जल सींचन करने लगे। वह अभिमंत्रित जल एक वृक्ष पर गिरने से एक देवी की उत्पति हुई, उनके हाथ में वीणा थी। ब्रह्माजी उन्हें देखकर प्रसन्नता पूर्वक उनका नाम सरस्वती दिया, जो अपनी वीणा की तंत्री के झंकार से सारी मूकता दूर कर दी। हाथ में वीणा रहने के कारण उनका नाम वीणापाणि भी पड़ा। वह शुभ्र वस्त्र धारण करनेवाली सत्व गुण को उजागर करती है। यह देवी मनुष्य के अंदर सत्वगुण के उद्रेक के साथ शांति, मैत्री, करुणा, मुदिता, अक्रोध, क्षमा, सहनशीलता एवं परोपकार की भावना पैदा करती है।
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