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    जानें क्यों गहराता जा रहा है बालू संकट, क्या पूजा सिंघल की वजह से हजारों बालू उठाने वाली गाड़ियों पर लगी ब्रेक

    By Madhukar KumarEdited By:
    Updated: Sat, 11 Jun 2022 06:50 AM (IST)

    झारखंड पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव राजीव सिंह बताते हैं कि पूरे कोल्हान में 242 पेट्रोल पंप हैं। एक पेट्रोल से हर दिन करीब आठ हजार लीटर की बिक्री होती है जिसमें लगभग 25 प्रतिशत की कमी आ गई है।

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    बालू खनन बंद होने से चौतरफा हो रहा नुकसान।

    जमशेदपुर, जासं। बालू पर करीब एक माह से ग्रहण लगा हुआ है। खासकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जब से राज्य की पूर्व खनन सचिव पूजा सिंघल पर शिकंजा कसा है, खनन से जुड़े कारोबार पर संकट गहराता जा रहा है। बालू की कमी से निर्माण कार्य ठप हो गए हैं, जिसका असर डीजल की बिक्री पर भी पड़ा है। निर्माण से जुड़े वाहन मालिकों के मुताबिक बालू उठाव से लेकर निर्माण कार्य तक कोल्हान में लगभग 6000 छोटे-बड़े टेंपो, ट्रैक्टर, ट्रक, डंपर नहीं चल रहे हैं। ढलाई की मिक्सर मशीन से लेकर क्रशर मशीन तक में डीजल की खपत होती थी। सरकारी व निजी भवनों का काम अधूरा पड़ा है। नाली-सड़क तक का काम बंद है।

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    बालू खनन बंद होने से चौतरफा नुकसान

    झारखंड पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव राजीव सिंह बताते हैं कि पूरे कोल्हान में 242 पेट्रोल पंप हैं। एक पेट्रोल से हर दिन करीब आठ हजार लीटर की बिक्री होती है, जिसमें लगभग 25 प्रतिशत की कमी आ गई है। मौजूदा कीमत के हिसाब से लगभग साढ़े चार करोड़ रुपये का नुकसान डीजल की बिक्री से हर दिन हो रहा है। यह नुकसान सिर्फ पेट्रोल पंप मालिकों को नहीं है, इससे टैक्स के रूप में राज्य सरकार को जो वैट मिलता, वह भी नहीं जाएगा। सरकार को अविलंब इसका निदान करना होगा। कोल्हान पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के महासचिव कुणाल कर कहते हैं कि यदि निर्माण कार्य बंद हुआ, तो इसका नुकसान सभी क्षेत्र में दिखेगा। दो दिन पहले भाजपा नेता रमेश हांसदा ने वाहन मालिकों के साथ आदित्यपुर में धरना-प्रदर्शन किया था। हांसदा ने बताया कि बालू उठाव नहीं होने से कोल्हान में करीब दो लाख लोगों का रोजगार छिन गया है। यदि जल्दी इन्हें काम नहीं मिला, तो भुखमरी की नौबत आ जाएगी।

    अधिकतर वाहन मालिक हो जाएंगे बैंक डिफाल्टर

    वाहन मालिकों ने बताया कि कोल्हान में निर्माण कार्य से जुड़ी करीब छह हजार गाड़ियां चल रही थीं, वे बैंक डिफाल्टर हो जाएंगी। करीब एक चौथाई मालिकों ने हाल ही में डंपर-ट्रक लिए हैं, जबकि तीन चौथाई ने आधी से ज्यादा किस्त चुका दी है। जब उनकी गाड़ियां ही नहीं चलेंगी, तो बैंक ब्याज कहां से देंगे। हर वाहन पर ड्राइवर-खलासी समेत कम से कम छह मजदूर लगते हैं, उनका वेतन कहां से आएगा। सरकार ने जल्दी ही बालू-गिट्टी पर कोई नीति नहीं बनाई, तो इसका व्यापक असर पड़ेगा।