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    Ramdas Soren: लोगों के सुख-दुख में रहते थे साथ, रामदास अपने इन कामों से जनता के दिल पर करते थे राज

    Updated: Sun, 17 Aug 2025 11:17 AM (IST)

    घाटशिला में रामदास सोरेन के निधन से शोक की लहर है। वे हमेशा लोगों के सुख-दुख में साथ खड़े रहे और घाटशिला के विकास के लिए प्रयास करते रहे। ग्राम प्रधान से मंत्री तक का सफर उन्होंने संघर्षों से तय किया। मजदूरों के लिए उनका समर्पण और जनता से जुड़ाव उन्हें खास बनाता था। उनके निधन से झारखंड में मायूसी है और लोग उन्हें याद कर रहे हैं।

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    घाटशिला में लोगों के सुख-दुख में हमेशा रहे साथ करते थे रामदास सोरेन। फाइल फोटो

    मंतोष मंडल, घाटशिला। घाटशिला में लोगों के सुख-दुख में रामदास खड़े रहते थे, इसीलिए वह जनता के दिलों में बसे रहते थे। उन्हें खोने से हर मन में उदासी का एहसास दिखा। अब दोबारा ना मिलेगा वह रामदास। वे हमेशा घाटशिला के उन्नति व प्रगति का प्रयास करते रहे। ग्राम प्रधान से लेकर प्रदेश के मंत्री तक का सफर कोई यूं ही नहीं तय कर लेता। इसके पीछे संघर्षों का लंबा इतिहास छीपा होता, सेवा की भावना होती है।

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    2014 में चुनाव हारने के दूसरे ही दिन घाटशिला आकर जनता के बीच आकर सेवा करने का जज्बा होता। मजदूरों के लिए रात के 12 बजे टेंट में धरने पर बैठकर मजदूरों का हौंसला बढ़ाते थे। टेंट में बासी भात व चटनी खाकर संघर्ष करने का फैसला होता था। ऐसे तमाम छोटी बड़ी चीजें रामदास को दूसरे राजनेताओं से अलग रखता। संघर्षों के ऐसे ही गाथाओं ने जो विश्वास जनमानस के बीच बनाया उसी ने रामदास सोरेन को इस मुकाम तक भी पहुंचाया।

    रामदास के निधन से झारखंड दुखी है। घोड़ाबांधा से लेकर घाटशिला तक हर मन मायूस है। सबको मालूम था उनके रामदास बेहद ही नाजुक दौर से गुजर रहे। स्वास्थ्य के हालात बेहतर नहीं है, फिर भी विश्वास को कभी किसी ने कमजोर होने नहीं दिया।

    उम्मीदें थी की वे जरूर मौत को मात देकर जिदंगी के सफर में दोबारा लौट आएगा। ऐसे में आजादी की देर रात्रि इंटरनेट मीडिया पर रामदास के निधन की खबरें आई तो कोई सहज विश्वास ही नहीं कर पाया। सबके मन में ये था की 2 अगस्त को जिस प्रकार उनके निधन की भ्रामक खबरें आई उसी प्रकार ये खबर भी भ्रामक है।

    लेकिन इस बार विश्वास करना पड़ा क्योंकि ये दुखद संदेश खुद रामदास सोरेन के इंटरनेट पेज पर उनके पुत्र ने दिया। इस एक लाइन अत्यंत ही दुख के साथ यह बता रहा हूं की मेरे पिताजी रामदास सोरेन जी अब हमारे बीच नहीं रहे। ये घबर उन्हें चाहने वाले व समर्थकों को झकझोर कर दिया।

    घोड़ाबांधा से लेकर घाटशिला तक मायूसी छा गई। शनिवार घोड़ाबांधा में सूर्य तो दिखा लेकिन लोगों में उर्जा का संचार नहीं, रामदास के घर पर जनता का अब वह दरबार नहीं। अब जनता के यादों में स्मृति शेष बनकर रामदास रह गए।

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