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    Jamshedpur News: अंगना की काव्य गोष्ठी में डाक्टर संध्या सिन्हा ने बांधा समां

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Sun, 06 Jun 2021 11:59 AM (IST)

    Poetry seminar जमशेदपुर से प्रकाशित महिलाओं की पत्रिका अंगना के बैनर तले राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। कोरोना के इस संक्रमित काल में अपनी संवेदना को साझा करने के लिए आभासी माध्यम से साहित्यकारों ने काव्यगोष्ठी संचालित किया।

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    कवि व श्रोता प्रेम की बारीकियों में डूब-उतर रहे ।

    जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर से प्रकाशित महिलाओं की पत्रिका 'अंगना' के बैनर तले शनिवार को राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। कोरोना के इस संक्रमित काल में अपनी संवेदना को साझा करने के लिए आभासी माध्यम से साहित्यकारों ने काव्यगोष्ठी संचालित किया। कार्यक्रम की शुरुआत विंध्यवासिनी तिवारी ने कृष्ण भजन के साथ की।

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    'ओ कान्हा तेरी मधुर मुरलिया,

    ओ श्याम तेरी सांवली सुरतिया’।

    इसके बाद कटिहार (बिहार) से गजल के सशक्त हस्ताक्षर युवा गजलकार ठाकुर राष्ट्रभूषण तैश ने अपनी गजल से समां बांध दिया। वर्तमान को रेखांकित करते हुए तैश ने कहा- ‘सुबह तक शाम की उदासी है, मुझमें आवाम की उदासी है’।

    घाटशिला से डा. रजनी रंजन ने अपने गीत के माध्यम से कोरोना योद्धाओं को याद करते हुए कहा- ‘कोरोना के वीर तुम्हें सौ-सौ बार प्रणाम करूं, जीवन पूर्ण समर्पित तेरा, वीर तुम्हारे चरण गहूूं’

    ममता सिंह ने उदासियों के इस दौर में प्रेम को रोशनी का रहनुमा बता कर अपनी कविता से सबका ध्यान आकर्षित किया ‘प्रेम शीतल हवा है, प्रेम से ही मानवीय उम्मीदें जवां हैं’।

    कवि व श्रोता प्रेम की बारीकियों में डूब-उतर रहे थे कि अगले कवि के रूप में दिल्ली से दिल की धड़कनों को ‘नव लय ताल के संग, प्रेम की बाति जलाएं’ सुप्रसिद्घ कवि कुंदन सिंह काव्यांश ने तरन्नुम से सबके मन को मोह लिया।

    ‘बादल से झांका रह-रह के, लेकिन परदा खूब हुआ

    रात हमारे आंगन में भी, चांद का जलवा खूब हुआ’।

    कुंदन के गजल की मिठास से सरोबार यह गोष्ठी वाह-वाह की अद्भुत लड़ी लिए डा. संध्या सिन्हा की गजल से पूरी तरह जवां होते हुए दिखी ‘रोज लगती है बोली मेरे ख्वाब की, आप क़ीमत तो अपनी बता दीजिए’।

    गोष्ठी में अतिथि कवि के रूप मे श्यामल सुमन की प्रस्तुति सोने पे सुहागा साबित हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री प्रतिभा प्रसाद कुमकुम ने की। अपने अध्यक्षीय उदबोधन के साथ उन्होंने अपनी समय संदर्भित कविता-परिंदा को प्रस्तुत किया।

    ‘एक परिंदा उड़ता फिरता, नित नूतन है गीत सुनाता’।

    कार्यक्रम का संचालन डा. संध्या सिन्हा ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने मे शैलेंद्र अस्थाना, ज्योत्सना अस्थाना, सिंगापुर से विनोद मिश्र, निशीथ जी, बरुण प्रभात, कृष्णा मणिश्री आदि की भूमिका उल्लेखनीय रही।