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    Paralympic Games : दिव्यांग कैसे शारीरिक कमजोरी को बनाते हैं अपनी ताकत, आपको पता है कि नहीं

    By Jitendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 30 Aug 2021 06:32 PM (IST)

    Paralympic Sports टोक्यो में चल रहे पैरालिंपिक्स गेम्स में भारत की भविना ने टेबल टेनिस स्पर्धा में रजत जीत तहलका मचा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरा देश उनके जज्बे को सलाम कर रहा है। आपने कभी सोचा है कि पैरालिंपिक्स गेम्स कैसे खेला जाता है। पढ़िए पूरी जानकारी...

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    दिव्यांग कैसे शारीरिक कमजोरी को बनाते हैं अपनी ताकत

    जमशेदपुर, जासं। जब बात पैरालिंपिक या पैरा एथलीट की बात होती है, सबसे पहले दिमाग में दिव्यांगों की शारीरिक कमजोरी सामने आ जाती है। हम उन्हें कमजोर समझते हैं, लेकिन ये खिलाड़ी कैसे अपनी कमजोरी को ताकत में बदल लेते हैं, हर किसी को जानना चाहिए।

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    टोक्यो पैरालिंपिक की टेबल टेनिस स्पर्धा में भारत की भविनाबेन ने रजत जीता

    इसमें कई ऐसे दिव्यांग शामिल होते हैं, जिनकी शारीरिक अपंगता अलग-अलग वजहों से होती है। दुर्घटना या किसी गंभीर बीमारी इनके किसी अंग को कमजोर कर देती है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जन्म से लाचार होते हैं। किसी का मस्तिष्क ठीक से काम नहीं करता, तो किसी के हाथ या पैर। किसी की दृष्टि कमजोर होती है तो किसी के बोलने की क्षमता क्षीण हो जाती है। सवाल यह है कि इन सारी कमियों के बावजूद ये विभिन्न खेलों में अपने जज्बे से देखने वाले को कैसे हैरान कर देते हैं।

    जमशेदपुर में मूक-बधिरों की सेवा में लगे अविनाश दुगड़ बताते हैं कि आप इनकी बोलने-सुनने की क्षमता मत देखिए, इनका आइक्यू देखिए। ये चीजों या गतिविधियों को सामान्य लोगों से ज्यादा समझते हैं। भारत क्या, जमशेदपुर में कई ऐसे दिव्यांग खिलाड़ी हैं, जिन्होंने पैरालिंपिक में पूरे देश का नाम रोशन किया है।  

     

     टोक्यो में शुरू हो गई पैरालिंपिक

    कोरोना की स्थिति सामान्य होते ही खेलकूद का माहौल दुनिया भर में बनने लगा है। ओलिंपिक के बाद 25 अगस्त से जापान की राजधानी टोक्यो में पैरालिंपिक गेम्स शुरू हो गए हैं, जो पांच सितंबर तक चलेंगे। इसमें देश के 54 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। देश के दिव्यांग खिलाड़ियों ने 1972 में पहली बार पैरालिंपिक में भाग लिया था, वैसे अब तक अपने देश में 12 पदक ही आए हैं।

    इससे पहले 2016 के पैरालिंपिक में भारत ने दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता था, जो रियो में हुआ था। निश्चित रूप से इस बार पदक की संख्या बढ़ेगी। खासकर संदीप चौधरी (एफ़-64,जेवलिन थ्रो) और सुंदर सिंह गुर्जर (एफ़-46, जेवलिन थ्रो) विश्व के नामी खिलाड़ियों में शुमार हैं।

    जेवलिन थ्रो या भाला फेंक की कैसे होती ग्रेडिंग

    आप सोच रहे होंगे कि एफ-64 व एफ-46 क्या है। आपको बता दें कि यह दिव्यांग खिलाड़यों की शारीरिक क्षमता के मुताबिक तय किया जाता है। कौन एक हाथ से लाचार है या दोनों हाथ से। किसी का एक पैर कमजोर है या दोनों, ग्रेडिंग इसी आधार पर होती है।

    पैरालिंपिक में दिव्यांगता की 10 श्रेणी रखी गई है, जिसमें मांसपेशियों की कमजोरी, जोड़ों की निष्क्रियता, किसी अंग में कोई कमी, पैरों की लंबाई में अंतर, छोटा कद होना, मांसपेशियों में जकड़न या खिंचाव, शरीर की लोच या नियंत्रण में कमी, हाथ-पैर की अंगुलियों की धीमी गति, देखने की क्षमता और सीखने की क्षमता में कमी।

    दिव्यांगता के आधार पर बदलता है नंबर

    अब समझ लीजिए कि भाला फेंक या जेवलिन थ्रो, गोला फेंक या शॉटपुट, चकरी फेंक या डिसकस थ्रो, में भी विकलांगता के हिसाब से औसतन 31 श्रेणी बनाई गई है। इसके अलावा दौड़ने वाले ट्रैक गेम्स में 19 श्रेणी बनाई गई है। दिव्यांगता के आधार पर इनका नंबर बदलता है। यही नहीं, तीरंदाज़ी, बैडमिंटन, साइक्लिंग, निशानेबाज़ी, ताइक्वांडो, जूडो आदि के अलावा चार व्हीलचेयर के सहारे होने वाले खेल (बास्केटबॉल, रग्बी, टेनिस व फेंसिंग या तलवारबाजी) भी पैरालिंपिक में शामिल हैं। फील्ड गेम को एफ, व्हीलचेयर को डब्ल्यूसी, ट्रैक गेम्स को टी और खड़े होेकर खेलने वाले को एस कोड से पहचाना जाता है। इनके अलावा जिन खिलाड़ियों का कमर के नीचे का हिस्सा कमजोर होता है, उन्हें एल (लोअर लिंब) और ऊपरी हिस्सा कमजोर होने पर यू (अपर लिंब) कहा जाता है।

    भारत की दावेदारी की कितनी मजबूत

    जैसा कि पहले ही बताया गया है, इस बार पैरालिंपिक में भारत के 54 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं, जो नौ तरह के खेल में भाग लेंगे। इस बार जेवलिन थ्रो के पिछले स्वर्ण पदक विजेता देवेंद्र झाझरिया और हाईजंप चैंपियन मरियप्पन थांगवेलु से पदक की उम्मीद की जा सकती है। झाझरिया अभी भी वर्ल्ड रिकार्ड होल्डर हैं और मरियप्पन विश्व के नंबर दो खिलाडी। संदीप चौधरी भी जेवलिन थ्रो में पदक ला सकते हैं, तो इसी खेल में सुंदर सिंह गुर्जर और अजीत सिंह भी अपने देश का नाम रोशन कर सकते हैं।

    इनके अलावा प्रमोद भगत, पारुल परमार, पलक कोहली, कृष्णा नागर, तरुण ढिल्लों और सुहास एलवाई बैडमिंटन में दावेदारी पेश करेंगे। इनमें सुहास एलवाई अभी नोएडा के जिलाधिकारी हैं। तीरंदाज़ी में राकेश कुमार, श्याम सुंदर, ज्योति बालियान व हरविंदर सिंह से भी पदक की उम्मीद की जा रही है।

     

    शारीरिक क्षमता के मुताबिक किया जाता है चयन

    सामान्य खेलों की तरह पैरा गेम्स में भी एक न्यूनतम योग्यता मानदंड (एमईसी) होता है, जैसे शॉटपुट में 10 मीटर और जेवलिन थ्रो में 40 मीटर लक्ष्य निर्धारित होता है। आयोजन समिति तय करती है कि किस खिलाड़ी को पैरालिंपिक में मौका दिया जा सकता है। इसमें हर देश को खिलाड़ियों का नाम भेजने के लिए अधिकतम संख्या दी जाती है। पहले खिलाड़ी देश के अंदर अपना दमखम दिखाता है, तब जाकर उसे विश्वस्तरीय मुकाबले के लिए भेजा जाता है।

     

    भारत में पैरालिंपिक खिलाड़ी को प्रशिक्षित करने का बेहतर बजट

    पहले की तुलना में भारत में पैरालिंपिक खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए बेहतर बजट और बेहतर माहौल दिया जा रहा है। जहां भी सामान्य खिलाड़ियों के प्रशिक्षण केंद्र हैं, वहीं इन दिव्यांग खिलाड़ियों को भी अभ्यास कराया जाता है, बस इनके कोच अलग होते हैं।

    भारतीय पैरालिंपिक संघ की अध्यक्ष दीपा मलिक बताती हैं कि भारत सरकार ने इनके प्रशिक्षण, विदेश दौरे और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए 17 करोड़ रुपये का बजट दिया है। इससे खिलाड़ियों को फायदा भी हुआ है। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान हर चुनौती के बावजूद इन्हें संसाधन उपलब्ध कराए गए। अब कमी है तो बस अच्छे कोच की।