पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने वाला अख्तर का बड़ा झूठ पकड़ा गया, उसने जिस भाई को मृत बताया वह दिल्ली से जिंदा गिरफ्तार
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार अख्तर हुसैन का झूठ उजागर हुआ। उसने अपने तीनों भाइयों को मृत बताया था, पर उसका एक भाई दिल्ली में जिंदा मिला। आदिल के पास फर्जी पासपोर्ट भी मिले हैं। अख्तर वीपीएन का इस्तेमाल कर लोकेशन छिपाता था और फर्जी पहचान से खाड़ी देशों में जानकारी बेचता था।

अख्तर हुसैन ने अपने तीनों भाइयों को मृत बताया था, पर उसका एक भाई आदिल दिल्ली में जिंदा मिला।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार अख्तर हुसैन कितना बड़ा शातिर है, इसका अंदाजा उसके एक सनसनीखेज झूठ से लगाया जा सकता है।
पूछताछ के दौरान उसने जांच एजेंसियों को गुमराह करने के लिए अपने तीनों भाइयों को मृत बता दिया था, लेकिन उसका यह झूठ तब पकड़ा गया जब दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसके भाई आदिल हुसैन को दिल्ली के सीमापुरी इलाके से जिंदा गिरफ्तार कर लिया।
इस खुलासे ने जांचकर्ताओं को भी हैरान कर दिया है, जो अब इन दोनों भाइयों से आमने-सामने बैठाकर पूछताछ करने की तैयारी में हैं।
मुंबई क्राइम ब्रांच की गिरफ्त में आने के बाद अख्तर हुसैन ने पूछताछ में बताया था कि उसके तीनों भाई आसिफ, आरिफ और आदिल अब इस दुनिया में नहीं हैं।
उसने कहानी गढ़ी कि आसिफ की मौत सऊदी अरब में, आरिफ की प्रयागराज में और आदिल की जमशेदपुर में हो चुकी है। लेकिन जब मुंबई क्राइम ब्रांच ने जानकारी साझा की तो दिल्ली पुलिस ने आदिल को जिंदा ढूंढ निकाला और 26 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया।
अख्तर के भाई आदिल के पास से भी एक असली और दो फर्जी पासपोर्ट मिले
आदिल के पास से भी एक असली और दो फर्जी पासपोर्ट मिले हैं, जिससे साबित होता है कि वह भी इस नेटवर्क का एक अहम हिस्सा था और पाकिस्तान समेत कई देशों की यात्रा कर चुका था।
जांच में यह भी सामने आया है कि अख्तर हुसैन अपने विदेशी हैंडलरों से संपर्क साधने के लिए ''सुपर वीपीएन प्रो'' नामक मोबाइल एप का इस्तेमाल करता था। यह एप उसकी असली आइपी लोकेशन को छिपा देता था, जिससे उसे ट्रैक करना बेहद मुश्किल था।
वह आनलाइन रहते हुए भी अपनी लोकेशन किसी दूसरे देश की दिखाता था ताकि जांच एजेंसियों से बच सके। अख्तर का पूरा खेल सरकारी तंत्र की गंभीर खामियों पर टिका था। उसने मानगो के मोनाजिर खान की मदद से ''एलेक्जेंडर पामर'' के नाम पर जो पासपोर्ट बनवाया था, उस पर पता अधूरा था - ''रोड नंबर 6, ग्रेस कॉलेज के पास, जवाहर नगर''।
अख्तर फर्जी पहचान पर खाड़ी के पांच से अधिक देशों का भ्रमण किया
यह एक ईसाई बहुल इलाका है, ताकि नाम असली लगे। हैरानी की बात यह है कि अधूरे पते के बावजूद न तो पासपोर्ट कार्यालय ने और न ही स्थानीय पुलिस ने सत्यापन के दौरान कोई आपत्ति जताई, जिससे प्रशासनिक मिलीभगत या घोर लापरवाही का अंदेशा है।
अख्तर इसी फर्जी पहचान के दम पर खाड़ी के पांच से अधिक देशों में गया और वहां के दूतावासों में खुद को बार्क का वैज्ञानिक बताकर पत्रिकाओं और इंटरनेट से जुटाई गई परमाणु नक्शों की जानकारी बेचकर पैसे कमाता था।

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