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    प्रखंड के पहिये में प्रभार का पंक्चर

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    Updated: Sun, 11 Sep 2016 02:47 AM (IST)

    राकेश रंजन,जमशेदपुर : झारखंड राज्य के गठन के बाद जिला और प्रखंड की संख्या में लगातार इजाफ

    राकेश रंजन,जमशेदपुर : झारखंड राज्य के गठन के बाद जिला और प्रखंड की संख्या में लगातार इजाफा हुआ। इसके पीछे तर्क यह कि प्रशासनिक पेंचीदगियां कम होंगी और विकास को रफ्तार मिलेगी। इससे प्रशासन से जुड़े दैनंदिन के कार्यो के लिए आम लोगों को ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा। सरकारी दफ्तर और अफसर करीब होंगे तो लोगों की दुश्वारियां भी कम होंगी। लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। पूर्वी सिंहभूम जिले के गुड़ाबांदा प्रखंड को ही लें। यह इलाका अतिनक्सल प्रभावित है। यहां विकास को रफ्तार देकर नक्सलियों को कमजोर करने का मकसद बताकर गुड़ाबांदा नाम से प्रखंड का गठन हुआ। क्षेत्र के लोग फूले नहीं समा रहे थे। इस उम्मीद में कि सब ठीक हो जायेगा, आठ साल गुजर गये। अब लोग यह कहने में संकोच नहीं कर रहे कि प्रखंड बनने का कोई फायदा नहीं।

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    दरअसल, गुड़ाबांदा प्रखंड तो बना, लेकिन अफसर के नाम पर सिर्फ एक प्रखंड विकास पदाधिकारी, एक प्रखंड कृषि पदाधिकारी एवं एक पंचायती राज पदाधिकारी का पद सृजित किया गया। इसके अलावा एक एकाउंटेंट कम हेड क्लर्क, तीन क्लर्क, एक ड्राइवर, तीन नाइट गार्ड और तीन पियुन के पद सृजित किये गये। अन्य महत्वपूर्ण पदों के सृजन की जरूरत आठ सालों में महसूस नहीं की गई और खानापूरी के लिए प्रभार का विकल्प आजमाया गया। बीडीओ के अलावा अफसरों के सृजित दो पदों पर भी कभी किसी की पदस्थापना नहीं की गई। कहने को तो अन्य विभागों में प्रभारी पदाधिकारी दिये गये हैं, लेकिन प्रभार में चल रहे पदाधिकारी के पास काम के बोझ का बहाना है। ऐसे में स्थिति वहीं है जो प्रखंड बनने से पहले की है। सरकार का फोकस एरिया स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल विकास और जन वितरण प्रणाली बताया जाता है। इन क्षेत्रों में करोड़ों-अरबों की योजनाएं ली गई हैं। जब अफसर ही नहीं तो योजनाओं की सही निगरानी कैसे होगी और आम लोगों को लाभ कैसे मिलेगा, यह सवाल मुंह बाये खड़ा है। चौंकाऊ लग सकता है पर सोलहो आने सच है कि प्रखंड को स्वास्थ्य विभाग से जोड़ा ही नहीं गया है। सो डॉक्टर पूरी तरह नदारद हैं। प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, प्रख्ाड प्रसार पदाधिकारी के पदों के अलावा बीएलओ, पेयजल आपूर्ति, बिजली आदि विभाग के पदों को बहरागोड़ा और धालभूमगढ़ के पदाधिकारियों के प्रभार में दिया गया है। अंचलाधिकारी-सीओ- का काम भी प्रभार से चल रहा है। बहरागोड़ा के सीओ यहां के प्रभार में हैं। गुड़ाबांदा झारखंड का ऐसा प्रखंड है जहां के लोग दो विधायक चुनते हैं। घाटशिला और बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र के विधायक। यहां की चार पंचायतों की जनवितरण प्रणाली की निगरानी बहरागोड़ा और चार की धालभूमगढ़ से होती है।

    कुल मिलाकर प्रखंड बनाकर अफसरों का पद सृजन भूल जाने और प्रखंड के पहिये में प्रभार के पंक्चर से लोगों का दर्द बरकरार है। एक खास दर्द यह कि प्रखंड कार्यालय से थाना की दूरी 12 किलोमीटर है वहीं चार पंचयतों अंगारपाड़ा, मुढ़ाकाटी, बनमाकड़ी और बालीजुड़ी से थाना की दूरी 30 किलोमीटर है। ऐसे में सुरक्षा भी भगवान भरोसे है। जब लोगों ने कभी प्रभार पर चल रहे साहबों को देखा ही नहीं तो छोटे मुलाजिमों की कौन कहे।

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    सृजित पद-कार्यरत बल

    प्रखंड विकास पदाधिकारी 1-1

    प्रखंड कृषि पदाधिकारी 1-0

    प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी 1-0

    लेखापाल सह क्लर्क1-0

    चेनमैन1-0

    क्लर्क 3-3

    पियुन1-3

    चालक1-0

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    प्रभार में चल रहे पद

    अंचलाधिकारी,प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी,बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, पेयजल, बिजली आदि विभागों के पद। स्वास्थ्य विभाग को प्रखंड से नहीं जोड़ा गया है।

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    गुड़ाबांदा एक्शन प्लान के कार्यान्यवन पर सवाल

    सरकार ने नक्सल प्रभावित होने के कारण क्षेत्र के विकास के लिए गुड़ाबांदा एक्शन प्लान के नाम से भारी भरकम प्लान लिया है। अफसरों का टोटा होने की वजह से प्लान का कार्यान्वयन भी सवालों के घेरे में है।

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    आश्चर्य। घोर आश्चर्य। प्रखंड बना पर अफसरों के पद सृजित नहीं हुए। ऐसे में विकास की बात बेमानी हो जाती है। मैंने राज्य के मुख्य सचिव निधि खरे से बात की है। उन्होंने मामले को गंभीरता से लेने की बात कही है। विधानसभा के अगले सत्र में भी मामले को जोरदार तरीके से उठाऊंगा।

    -कुणाल षाड़ंगी, विधायक, बहरोगोड़ा।