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    EVs की राह आसान, बेकार बैटरियों से 95% लिथियम निकालकर चीन की निर्भरता खत्म करेगा NML

    Updated: Sat, 13 Dec 2025 10:39 AM (IST)

    सीएसआइआर-एनएमएल जमशेदपुर ने बेकार हो चुकी एलएफपी बैटरियों से 90 से 95 प्रतिशत तक लिथियम रिकवर करने में सफलता पाई है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों और मोबाइल ...और पढ़ें

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    एनएमएन की खोज से इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चीन पर निर्भरता कम होगी।

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। ''वेस्ट टू वेल्थ'' यानी कचरे से कंचन बनाने की दिशा में सीएसआइआर-एनएमएल (राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला) जमशेदपुर ने ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की है। प्रयोगशाला ने बेकार हो चुकी एलएफपी बैटरियों से 90 से 95 प्रतिशत तक लिथियम रिकवर करने में सफलता पाई है।

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    यह उपलब्धि भारत के नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन के लिए एक मील का पत्थर है, क्योंकि इससे इलेक्ट्रिक वाहनों और मोबाइल फोन की बैटरियों के लिए चीन जैसे देशों पर भारत की निर्भरता खत्म होगी।

    विज्ञान का कमाल: आसान भाषा में समझें तकनीक

    एनएमएल ने जिस तकनीक का सफल प्रयोग किया है, विज्ञान की भाषा में उसे हाइड्रोमेटलर्जिकल प्रोसेस कहते हैं। आम लोगों के समझने के लिए यह एक ऐसी गीली प्रक्रिया है, जिसमें आग की भट्ठी में बैटरियों को पिघलाने के बजाय विशेष रसायनों (लिक्विड) के जरिए धोकर और प्रोसेस कर धातुएं अलग की जाती हैं। एनएमएल का यह पायलट प्रोजेक्ट साबित करता है कि अब खदानों से मिट्टी खोदने के बजाय शहर के कचरे से ही सोना, लिथियम और कोबाल्ट जैसी कीमती धातुएं निकाली जा सकती हैं। इसे तकनीकी दुनिया में अर्बन माइनिंग या शहरी खनन का नाम दिया गया है।

    2035 तक तीन करोड़ इलेक्ट्रिक गाड़ियां और चुनौती

    भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार विस्फोटक गति से बढ़ रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2035 तक भारतीय सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 20 लाख से बढ़कर तीन करोड़ हो जाएगी। इन गाड़ियों की जान लिथियम-आयन बैटरी होती है। अब तक भारत इन बैटरियों के कच्चे माल (रेयर अर्थ और लिथियम) के लिए आयात पर निर्भर था, जिसकी सप्लाई चेन अक्सर चीन नियंत्रित करता है। एनएमएल की यह तकनीक भारत को इस भू-राजनीतिक दबाव से मुक्त करेगी।

    पारंपरिक खनन के मुकाबले एनएमएल की यह रीसाइकिलिंग तकनीक पर्यावरण की रक्षक है। अमेरिकी एजेंसी ईपीए के आंकड़ों के अनुसार, जमीन से अयस्क निकालने की तुलना में रीसाइकिलिंग प्रक्रिया में 80 प्रतिशत कम पानी खर्च होता है। साथ ही, मोनाजाइट जैसी खदानों से निकलने वाले रेडियोएक्टिव (विकिरण) कचरे का खतरा भी इसमें नहीं है। यह तकनीक भारत सरकार के उस लक्ष्य को पूरा करती है, जिसके तहत 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा हासिल करनी है।

    चीन से मुकाबला और भारत की तैयारी

    वर्तमान में चीन ई-कचरे से 95-98 प्रतिशत तक धातुएं रिकवर कर लेता है, जबकि भारत के पायलट प्रोजेक्ट्स का औसत 85-92 प्रतिशत है। लेकिन एनएमएल जमशेदपुर ने लिथियम रिकवरी में 95 प्रतिशत का आंकड़ा छूकर यह दिखा दिया है कि भारतीय वैज्ञानिक किसी से कम नहीं हैं। भारत सरकार ने इस तरह के इनोवेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1500 करोड़ रुपये (180 मिलियन डालर) आवंटित किए हैं।

    रोजगार के नए अवसर

    इस तकनीक के कमर्शियल होते ही रोजगार की बहार आएगी। सरकार का लक्ष्य 2030 तक रीसाइकिलिंग सेक्टर में 50,000 स्किल्ड तकनीशियन तैयार करना है। जहां आइआइटी मद्रास सर्किट बोर्ड से सोना निकाल रहा है और सी-मेट हैदराबाद चुंबक बनाने पर काम कर रहा है, वहीं एनएमएल जमशेदपुर ने बैटरी रीसाइकिलिंग में नेतृत्व संभालकर जमशेदपुर का नाम वैश्विक पटल पर रोशन किया है।