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    धुआं नहीं, पानी छोड़ेगा jamshedpur का स्टील प्लांट, NIT ने दिखाया प्रदूषणमुक्त रास्ता

    By Venkatesh raoEdited By: Sanjeev Kumar
    Updated: Wed, 19 Nov 2025 08:35 PM (IST)

    एनआईटी जमशेदपुर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे स्टील प्लांटों से अब काला धुआं नहीं, बल्कि पानी की भाप निकलेगी। यह तकनीक कोयले की जगह ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करेगी, जिसे कृषि अवशेषों से तैयार किया जाएगा। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा। यह शोध देश के टिकाऊ विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

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    एनआईटी जमशेदपुर में शोध पर प्रजेंटेशन देने के दौरान मौजूद शिक्षक व शोधार्थी।

    जासं, जमशेदपुर। कल्पना कीजिए, जमशेदपुर के उन विशाल स्टील प्लांटों की चिमनियों से अब काला जहरीला धुआं नहीं, बल्कि पानी की साफ-सुथरी भाप निकल रही है। यह दृश्य विज्ञान कथा नहीं, बल्कि उन नई संभावनाओं की नींव है, जिसे एनआईटी जमशेदपुर के शोधकर्ताओं ने वास्तविकता के करीब ला दिया है। 

    संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधार्थी हेलाल अहमद फरहान ने प्रोफेसर संजय के निर्देशन में ऐसा शोध विकसित किया है, जो भारत के स्टील उद्योग को प्रदूषणमुक्त और कार्बन-रहित बनाने की क्षमता रखता है।

    यह उपलब्धि इतनी महत्वपूर्ण है कि दिल्ली के प्रख्यात प्रोफेसर नवीन कुमार ने इस शोध की उत्कृष्टता देखते हुए शोधार्थी हेलाल को पीएचडी उपाधि देने की अनुशंसा कर दी है।

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    कोयले की जगह ग्रीन हाइड्रोजन, स्टील उद्योग में सबसे बड़ी क्रांति 

    वर्तमान में स्टील बनाने की पारंपरिक प्रक्रिया में भारी मात्रा में कोयला जलाया जाता है। कोयले के दहन से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर और अन्य विषैली गैसें पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रदूषित करती हैं। एनआईटी जमशेदपुर का शोध इसी प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव लाता है।

    नई तकनीक में कोयले की जगह ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग किया जाएगा। जब हाइड्रोजन लोहे के अयस्क से ऑक्सीजन को अलग करती है, तो उप-उत्पाद के रूप में केवल शुद्ध पानी (H₂O) बनता है, जो भाप के रूप में बाहर निकलता है। यानी, जहां आज धुआं निकलता है, वहां भविष्य में सिर्फ पानी की भाप होगी। 

    कचरा नहीं, खेतों से निकलेगी हाइड्रोजन, किसानों की आय भी बढ़ेगी 

    इस शोध की खासियत यह है कि ग्रीन हाइड्रोजन किसी महंगी या दुर्लभ तकनीक से नहीं, बल्कि भारतीय खेतों के कृषि अवशेषों से तैयार होगी। शोध में विकसित तकनीक के अनुसार पराली, गन्ने की खोई, धान का भूसा, और अन्य कृषि अपशिष्ट से पहले बायो-ऑयल तैयार किया जाएगा, और फिर इसी बायो-ऑयल से शुद्ध ग्रीन हाइड्रोजन निकाली जाएगी।

    किसानों के लिए नया आर्थिक लाभ 

    विभागाध्यक्ष डा. परमानंद कुमार ने कहा कि यह शोध किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। उन्होंने बताया क‍ि यह तकनीक कचरे से कंचन बनाने की कहावत को सच करती है। जिस तरह गन्ने से इथेनॉल ने किसानों की आमदनी बढ़ाई, उसी तरह पराली से हाइड्रोजन बनने से उनकी आय दोगुनी हो सकती है।

    भारत बनेगा ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर 

    भारत वर्तमान में लाखों टन कोयला आयात करता है, जिससे भारी विदेशी मुद्रा खर्च होती है। लेकिन यदि स्टील उद्योग में हाइड्रोजन का उपयोग शुरू हो जाए, तो कोयले की निर्भरता समाप्त होगी, देश का आयात खर्च घटेगा और भारत ऊर्जा के क्षेत्र में वास्तव में आत्मनिर्भर बन सकता है। 

    विकसित भारत 2047 की दिशा में बड़ी छलांग

    एनआईटी जमशेदपुर के निदेशक प्रो. गौतम सूत्रधार ने इस शोध को देश के भविष्य के लिए ऐतिहासिक करार दिया। उन्होंने कहा क‍ि यह केवल एक अकादमिक उपलब्धि नहीं, बल्कि यह उद्योग और पर्यावरण के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति का शंखनाद है। हमें अपने शोधकर्ताओं पर गर्व है।

    संस्थान के डीन एकेडमिक प्रो. एम.के. सिन्हा ने भी इस शोध को भारत के टिकाऊ विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण बताया। हेलाल के इस विषय पर तीन शोध-पत्र पहले ही प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं, जिससे वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय ने भी इस शोध को सराहा है। 

    यह शोध एनआईटी जमशेदपुर को ग्रीन टेक्नोलॉजी नवाचार के वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करता है। यह तकनीक भविष्य में भारत के स्टील उद्योग, पर्यावरण संरक्षण, किसानों की आय और ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाने में सक्षम होगी।