जमशेदपुर में पढ़े हैं नेपाल के अंतरिम प्रधानमंत्री के दावेदार कुलमान, क्या है उनकी लोकप्रियता का राज
नेपाल की राजनीति में इन दिनों एक ऐसे शख्स का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे आगे चल रहा है जिसका जमशेदपुर से गहरा और अटूट नाता है। नेपाल को अंधेरे से निकालकर चौबीसों घंटे बिजली देने वाले उजाला मैन कुलमान घिसिंग को वहां की युवा पीढ़ी (जेन-जी) देश के अगले अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है।

घिसिंग ने 1990-94 में एनआइटी जमशेदपुर से ली थी बीटेक की डिग्री
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। नेपाल की राजनीति में इन दिनों एक ऐसे शख्स का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे आगे चल रहा है, जिसका जमशेदपुर से गहरा और अटूट नाता है।
नेपाल को अंधेरे से निकालकर चौबीसों घंटे बिजली देने वाले ''उजाला मैन'' कुलमान घिसिंग को वहां की युवा पीढ़ी (जेन-जी) देश के अगले अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है।
केपी शर्मा ओली सरकार के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन और उनके इस्तीफे के बाद देश की बागडोर संभालने के लिए कुलमान का नाम प्रमुखता से उभरा है।
यह जमशेदपुर और यहां स्थित देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) के लिए गर्व का विषय है, क्योंकि कुलमान इसी संस्थान के छात्र रहे हैं।
25 नवंबर 1970 को नेपाल के एक ग्रामीण इलाके रामेछाप में जन्मे घिसिंग ने अपनी शुरुआती पढ़ाई नेपाल में ही की। इसके बाद, भारत सरकार से मिली स्कालरशिप पर वे 1990 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जमशेदपुर आए।
उन्होंने यहां स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (आरआइटी) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की।
यह संस्थान 15 अगस्त 1960 को स्थापित हुआ था और 27 दिसंबर 2002 को इसे एनआइटी का दर्जा दिया गया। घिसिंग ने 1994 में नेपाल विद्युत प्राधिकरण (एनईए) में अपने करियर की शुरुआत की।
नेपाल के ''उजाला मैन''
कुलमान घिसिंग को नेपाल में ''उजाला मैन'' के नाम से जाना जाता है। 2016 में जब उन्होंने घाटे में चल रहे नेपाल विद्युत प्राधिकरण (एनईए) के प्रबंध निदेशक का पद संभाला, तब देश रोजाना 18 घंटे की भीषण बिजली कटौती (लोड-शेडिंग) से त्रस्त था।
पद संभालने के कुछ ही महीनों के भीतर घिसिंग ने अपनी कुशल प्रबंधन क्षमता, भ्रष्टाचार पर कड़े प्रहार और तकनीकी सुधारों के दम पर देश को लोड-शेडिंग से मुक्त कर दिया। उनके नेतृत्व में एनईए दशकों बाद पहली बार मुनाफे में आया, जिससे वे नेपाल के घर-घर में एक नायक के रूप में स्थापित हो गए।
क्यों बने प्रधानमंत्री पद के लिए पहली पसंद?
नेपाल में हालिया सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को लेकर जेन-जी समूह के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा।
प्रदर्शनकारियों की मांग है कि देश की बागडोर किसी पारंपरिक राजनेता के बजाय एक निष्पक्ष और सक्षम व्यक्ति को दी जाए। अपनी बेदाग छवि और एक कुशल प्रशासक के तौर पर अपनी साख के कारण कुलमान घिसिंग इस भूमिका के लिए युवाओं की स्वाभाविक पसंद बनकर उभरे हैं।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की और काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह जैसे अन्य नामों पर भी विचार किया गया, लेकिन अंततः जेन-जी आंदोलन ने घिसिंग के नाम पर मुहर लगा दी।
राजनीतिक साजिश का भी हुए शिकार
अपनी अपार लोकप्रियता के बावजूद घिसिंग को राजनीतिक गुटबाजी का सामना करना पड़ा। मार्च 2025 में, तत्कालीन ओली सरकार ने उनका कार्यकाल समाप्त होने से कुछ महीने पहले ही उन्हें एनईए के प्रबंध निदेशक पद से हटा दिया था।
इस फैसले की देशव्यापी आलोचना हुई और इसे राजनीतिक द्वेष से प्रेरित कदम माना गया। आज जब नेपाल एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, तो जनता की निगाहें एक बार फिर अपने उसी नायक पर टिकी हैं, जिसने देश को अंधेरे से निकाला था।
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