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    Tata Steel Adventure Foundation के मोहन रावत ने एवरेस्ट शिखर पर लहराया तिरंगा, अब हर जगह हो रही वाहवाही

    Updated: Tue, 20 May 2025 08:18 AM (IST)

    मोहन रावत ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर भारत का मान बढ़ाया है। कभी मैगी बेचने वाले मोहन ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। 10 अप्रैल को भारत से रवाना होकर उन्होंने 14 मई को अंतिम समिट पुश शुरू किया और एवरेस्ट फतह किया। उनकी इस उपलब्धि पर टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में खुशी का माहौल है और हर तरफ उनकी वाहवाही हो रही है।

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    माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा के साथ मोहन रावत

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। उत्तरकाशी के अगोड़ा गांव से निकला एक साधारण बालक, जिसने कभी डोडीटाल के पथ पर मैगी बेची, आज विश्व की सर्वोच्च शिखर पर भारत का गौरव स्थापित कर चुका है।

    जब सर्द हवाओं की धार तलवार सी चीरती हो और हिमानी घाटियों की नीरवता में केवल संकल्प की आहट गूंजती हो, ऐसे ही क्षणों में जन्म लेते हैं वे पथिक, जो असंभव शब्द को अपने पांवों तले रौंद डालते हैं।

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    टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) के वरिष्ठ प्रशिक्षक मोहन रावत ने रविवार की भोर में 5:20 बजे (नेपाल समय) माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर यह सिद्ध कर दिया कि जब इरादे पर्वत से भी ऊंचे हों, तो आकाश भी झुकने को विवश हो जाता है।

    उत्तरकाशी के अगोड़ा गांव से निकलकर वैश्विक पर्वतारोहण के इस स्वर्णिम क्षण तक की यात्रा किसी किंवदंती से कम नहीं।

    10 अप्रैल को भारत से रवाना हुए थे मोहन

    10 अप्रैल को भारत से रवाना हुए मोहन ने प्रारंभिक परमिट संबंधी विलंबों के बावजूद तीन मई को एवरेस्ट बेस कैंप और पूर्व में मौसम की अनुकूलता के तहत दो मई को माउंट लोबुचे ईस्ट (20,075 फीट) की सफल चढ़ाई पूरी की।

    14 मई को उन्होंने अंतिम समिट पुश प्रारंभ किया, खतरनाक खुम्बू आइसफाल पार करते हुए रविवार को एवरेस्ट फतह की। इस अभियान में उनके साथ अनुभवी शेरपा लाख्पा शेरपा थे और नेपाल स्थित ‘एशियन ट्रेकिंग’ का सहयोग प्राप्त था।

    टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट और टीएसएएफ के चेयरमैन डीबी सुंदरा रामम ने इस सफलता को टीएसएएफ की साहसिक विरासत का गौरवशाली विस्तार बताया।

    मोहन की यह चढ़ाई मात्र एक भौगोलिक विजय नहीं, बल्कि जीवन की उस उत्कंठ यात्रा का प्रतीक है, जहां एक राफ्टिंग गाइड से एवरेस्ट विजेता तक का फासला केवल आत्मबल, अनुशासन और दृढ़ निश्चय से तय होता है।

    मैगी की छोटी सी दुकान से निकलकर ट्रांस-हिमालयन अभियान और मिशन गंगे तक का उनका सफर, भारतीय साहसिक परंपरा में मील का पत्थर है।

    टीएसएएफ से दो दशक पुराने जुड़ाव के दौरान मोहन ने चामसर, लुंगसर कांगड़ी, भागीरथी II, स्टोक कांगड़ी, माउंट रुदुगैरा, जो जोंगो जैसी दुर्गम चोटियों पर विजय प्राप्त की है।

    एवरेस्ट के लिए उन्होंने लेह में शीतकालीन प्रशिक्षण, ट्रिपल पास चैलेंज (दारवा-बाली-बोरासू पास) जैसे अभियानों से खुद को मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार किया। मोहन की यह विजय हिमालय से कहती है, जो पर्वतों से प्रेम करता है, वही उनसे पार पा सकता है।

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