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    एमजीएम : जीएनएम हास्टल में हर कंपन के साथ मुंह को आ जाता है कलेजा

    Updated: Tue, 28 Oct 2025 08:40 PM (IST)

    जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में जर्जर इमारतें गिराई जा रही हैं, लेकिन जीएनएम नर्सिंग स्कूल की छात्राएं अभी भी पुराने भवन में रहने को मजबूर हैं। निर्माण कार्य के कारण हो रहे कंपन से छात्राएं डरी हुई हैं। प्राचार्या ने अधीक्षक को पत्र लिखकर छात्राओं की सुरक्षा पर चिंता जताई है और उन्हें सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करने का आग्रह किया है। अधीक्षक ने नर्स क्वार्टर में अस्थायी रूप से रखने का सुझाव दिया है।

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    फाइल फोटो।

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। साकची स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) अस्पताल परिसर में ज्यादातर पुरानी इमारतें जर्जर होने के कारण जमींदोज की जा चुकी हैं। कुछ माह पहले एक पुरानी इमारत गिरने से पांच मरीजों की मौत भी हो चुकी है। इसके बावजूद अब भी जीएनएम नर्सिंग स्कूल की छात्राएं पुराने भवन में ही रह रही हैं। अस्पताल के नए भवन का निर्माण कार्य इस समय तेजी से चल रहा है। भारी मशीनों और ड्रिलिंग के कारण पूरे क्षेत्र में लगातार कंपन महसूस की जा रही है। इसका सीधा असर जीएनएम हास्टल पर पड़ रहा है, जहां 90 से अधिक छात्राएं रह रही हैं। छात्राओं का कहना है कि कई बार दीवारों और फर्श में कंपन इतनी तेज होती है कि उन्हें डर लगने लगता है कि कहीं भवन गिर न जाए।

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     जीएनएम स्कूल की प्राचार्या ने अधीक्षक को लिखा पत्र :
    इस स्थिति को देखते हुए जीएनएम स्कूल की प्राचार्या ने अधीक्षक डा. आरके मंधान को पत्र लिखकर छात्राओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने आग्रह किया है कि निर्माण कार्य पूरा होने तक छात्राओं को किसी सुरक्षित स्थान पर अस्थायी रूप से शिफ्ट किया जाए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। आलम यह है कि जान जोखिम में डालकर जीएनएम की छात्राएं हास्टल में रहने को विवश हैं।
     
    नर्स क्वार्टर में अस्थायी रूप से छात्राओं को रखने का सुझाव :
    मामले की गंभीरता को समझते हुए अधीक्षक ने प्रिंसिपल को पत्र भेजा है, जिसमें नर्स क्वार्टर खाली कर वहां अस्थायी रूप से छात्राओं को रखने का सुझाव दिया गया है। साथ ही, निर्माण एजेंसी को चेतावनी दी गई है कि ड्रिलिंग के दौरान कंपन की तीव्रता कम की जाए। छात्राओं का कहना है कि हर कंपन के साथ दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं कि कभी भी कुछ भी हो सकता है। सवाल यही है कि जर्जर इमारतों के बीच ये छात्राएं कब तक जोखिम में रहेंगी?