बाल मजदूरी पर बच्चों की बात सुनकर किसी का भी दिल पसीज जाए, पढ़िए बच्चों की जुबानी उनकी कहानी
श्रम विभाग की ओर से बाल श्रम निषेघ दिवस के उपलक्ष्य पर टास्क फोर्स का गठन किया है। जिसमें श्रम अधीक्षक के नेतृत्व में थानावार टीम गठित की गई है। इसमें चाइल्ड वेलफेयर कमेटी चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी व स्थानीय थाना की पुलिस को शामिल किया गया है।

जमशेदपुर, जासं। घर में मजबूरी इसलिए कदमा और सोनारी की 23 स्लम बस्तियों के 28 बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। 12 से 17 साल के अधिकतर बच्चे घर के आसपास के फ्लैटों में कार धोते हैं, जबकि कुछ लड़कियां अपना घर चलाने के लिए दूसरे के घरों में झाडू-पोछा व बर्तन धोने का काम करती है। इनका कहना है कि हम पढ़ना चाहते हैं, लेकिन आर्थिक विषमता हमारे जीवन का सबसे बड़ा रोड़ा है।आदर्श सेवा संस्थान द्वारा शनिवार को सोनारी स्थित संस्थान परिसर में चार दिवसीय बाल श्रम निषेध दिवस का समापन हुआ। इस दौरान बाल श्रम करने वाले 28 बच्चों ने बाल अभिव्यक्ति के तहत अपनी को कैनवास पर उतारा। इन 28 बच्चों को दो-दो बच्चों को संस्थान के एक अन्य सदस्य के साथ एक-एक टीम बनाई गई। जिसमें उन्हें कैनवास पर बाल अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने का मौका दिया। इस दौरान कई बच्चों ने आढहे-तिरछे लाइन से सहीं कार धोने, दूसरे के घर का काम करने, बड़ा होकर फौजी बनने, अपने परिवार और स्कूल जाने की पेटिंग बनाकर अपना दर्द सभी के साथ साझा किया।
कार्यक्रम के दौरान बच्चों की जुबानी
मेरे पिता बीमार रहते हैं। मां उनकी देखभाल करती है। मां ज्यादा घरों में काम नहीं करती है, इसलिए उनकी मदद के लिए मैं दूसरों के घरों में काम करने जाती हूं।
मैं अपने मां-पिता के साथ नहीं बल्कि दादी के साथ रहती हूं। मैं पढ़ना चाहती हूं लेकिन दादी सक्षम नहीं है इसलिए मैं दूसरों के घर काम पर जाकर स्कूल फीस जुटाती हूं।
मैं स्कूल जाना चाहता हूं, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वेल्डिंग का काम करता हूं।
मुझे स्कूल जाना और खेलना पसंद है लेकिन घर की स्थिति को देखते हुए कार धोने का काम करता हूं। मैं एक दिन में अधिकतम 17 कार धो सकता हूं। जितना अधिक कार धोता हूं मुझे उतने ज्यादा पैसे मिलते हैं।
बाल संगठन करती है बस्तियों में काम
आदर्श सेवा संस्थान बाल संगठन बनाकर कदमा-सोनारी की 23 व बर्मामाइंस की 15 बस्तियों में काम करती है। संस्थान की संस्थापक सदस्य प्रभा जायसवाल का कहना है कि हमारी राह में सबसे बड़ा रोडा बाल मजदूरी व बाल विवाह है। ऐसे में हम बाल संगठन के माध्यम से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों पर नजर रखते हैं। पता लगाते हैं कि सभी बच्चें स्कूल जा रहे हैं या नहीं। ड्राप आउट होने वाले बच्चों की जानकारी हमारी टीम लेती रहती है।हमारा प्रयास होगा कि सभी बच्चों को काम से हटाकर उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़े ताकि वे काम छोड़कर स्कूल जा सके।
प्रभा जायसवाल, निदेशक, चाइल्ड लाइन सह पूर्व चेयरमैन, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी
स्टेशन के आसपास की बस्तियों में चाइल्ड लाइन रखती है नजर
प्रभा जायसवाल ने बताया कि कई ऐसे बच्चे जो किसी बात को लेकर नाराज होकर या अपने स्वजनों की पिटाई से घर से भागकर दूसरे शहर चले गए। जहां वे बाल मजदूरी करते हैं। जब ये बच्चे लौटकर घर आते हैं तो इनके पास पैसा और हाथों में मोबाइल होता है। जिसे देखकर उनके साथी बच्चे आकर्षित होते हैं। एक बच्चे को ले जाने में पहले से काम करने वाले बच्चे को कमीशन मिलता है इसलिए बाल संगठन बाहर से आने वाले बच्चों पर नजर रखता है। घर से भागे हुए अधिकतर बच्चे उत्तर प्रदेश में चमड़ा उद्योग, चूड़ी उद्योग सहित गुजरात में पत्थर के खदानों व कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में काम करते हैं। कुछ बच्चे मुंबई में भी जाकर कई तरह के काम करते हैं।
सोमवार से चलेगा अभियान
श्रम विभाग की ओर से बाल श्रम निषेघ दिवस के उपलक्ष्य पर टास्क फोर्स का गठन किया है। जिसमें श्रम अधीक्षक के नेतृत्व में थानावार टीम गठित की गई है। इसमें चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी व स्थानीय थाना की पुलिस को शामिल किया गया है। श्रम विभाग ने शहरवासियों से अपील की है कि यदि उनके घर के आसपास कोई बच्चा बाल मजदूरी करता है तो वे इसकी शिकायत 1098 में कर सकते हैं।
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