Kalbelia नृत्य से बदली सपेरा समुदाय की तकदीर, बेटियों को मिला नया जीवन, जानिए पद्मश्री Gulabo sapera की संघर्ष की कहानी
कालबेलिया नृत्य ने सपेरा समुदाय की किस्मत बदल दी है, जिससे बेटियों को एक नया जीवन मिला है। पद्मश्री गुलाबो सपेरा की संघर्ष की कहानी प्रेरणादायक है। उन ...और पढ़ें

बिष्टुपुुर स्थित एक होटल में आयोजित जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मौजूद अतिंथिे।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर । जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल के मंच पर रविवार को पद्मश्री से सम्मानित कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबो सपेरा ने जब अपनी जीवन यात्रा साझा की, तो श्रोता भावुक हो उठे। उन्होंने बताया कि जन्म के समय ही सपेरा समाज की कुरीति के चलते उन्हें मृत मानकर जमीन में गाड़ दिया गया था।
माता-पिता का दिल नहीं माना और पिता ने गड्ढा दोबारा खोदकर उन्हें बाहर निकाला। तब पता चला कि उनकी सांसें चल रही हैं। स्थानीय उपचार के बाद वे जीवित बच गईं, लेकिन इस ‘अपराध’ की सजा उनके पूरे परिवार को मिली।
जब समाज ने उनके परिवार का बहिष्कार कर दिया
गुलाबो सपेरा ने बताया कि समाज ने उनके परिवार का बहिष्कार कर दिया और उन्हें गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। तीन वर्ष की उम्र से ही उन्होंने कालबेलिया नृत्य को अपना सहारा बना लिया।
उन्होंने कहा कि आज वे जहां भी हैं, उसमें उनके माता-पिता और भाइयों का अहम योगदान रहा है। जिस नृत्य के कारण कभी उनका परिवार समाज से बाहर कर दिया गया था, उसी नृत्य ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई।
नृत्य ने दिलाई वैश्विक पहचान
गुलाबो सपेरा ने कहा कि कालबेलिया नृत्य के माध्यम से उन्हें न केवल सम्मान मिला, बल्कि 2016 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्मश्री से भी नवाजा गया।
उन्होंने बताया कि सफलता मिलने के बाद वही समाज, जिसने कभी उन्हें और उनके परिवार को ठुकराया था, आज उन्हें स्वीकार कर चुका है। इतना ही नहीं, समाज ने उन्हें अपना पंच भी बना दिया।
सपेरा समाज में जागरूकता अभियान चलाया
उन्होंने कहा कि उनका सबसे बड़ा उद्देश्य यही रहा कि भविष्य में किसी बच्ची को उनकी तरह पीड़ा न झेलनी पड़े। इसी सोच के साथ उन्होंने सपेरा समाज में जागरूकता अभियान चलाया और बालिका हत्या की प्रथा को रोकने के लिए लगातार प्रयास किए।
आज हालात बदल चुके हैं। अब सपेरा समुदाय में बच्चियों को मारा नहीं जाता और कई परिवारों में तीन से चार बेटियां हैं। समाज में शिक्षा का स्तर भी बढ़ रहा है और बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ रहे हैं।
1985 में वे पहली बार अमेरिका नृत्य प्रस्तुत करने गई थीं
गुलाबो सपेरा ने बताया कि वर्ष 1985 में वे पहली बार अमेरिका नृत्य प्रस्तुत करने गई थीं। इसके बाद अब तक वे 165 देशों में कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति दे चुकी हैं।
राजस्थान के पुष्कर में उन्होंने अपना एक नृत्य विद्यालय भी स्थापित किया है, जहां फ्रांस, डेनमार्क, चिली, ब्राजील समेत कई देशों से विदेशी बच्चे कालबेलिया नृत्य सीखने आते हैं।
जमशेदपुर से पुराना नाता
उन्होंने बताया कि देश के सपेरा समाज के हजारों बच्चों ने भी उनके स्कूल से नृत्य की शिक्षा ली है। उनका पूरा परिवार भी कालबेलिया नृत्य में पारंगत है और इस कला को आगे बढ़ा रहा है।
गुलाबो सपेरा ने बताया कि वे पहले भी जमशेदपुर आ चुकी हैं। करीब 20 वर्ष पूर्व वे एक विवाह समारोह में नृत्य प्रस्तुति देने के लिए शहर आई थीं। जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लेकर उन्हें एक बार फिर यहां आकर खुशी महसूस हो रही है।

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