JN Tata : 130 साल पहले जेएन टाटा ने देश में ऐसे शुरू की थी Ed-Tech क्रांति, आज भी प्रासंगिक
JN Tata भले ही आज बायजू व अनएकेडमी जैसी कंपनियां शिक्षा के क्षेत्र में व्यवसायिक क्रांति ला रही हो लेकिन 130 साल पहले जेएन टाटा ने देश में देश में तक ...और पढ़ें

जमशेदपुर : आज के युग में हमारे पास बात करने के लिए मोबाइल, कहीं भी आने-जाने के लिए वाहन, यात्रा करने के लिए ट्रेन से लेकर हवाई जहाज तक है लेकिन सोचे 1892 के उस दौर में जब इतना विकास नहीं हुआ था, उस समय में टाटा समूह के संस्थापक जेएन टाटा ने न सिर्फ अपनी दूरदर्शिता से नए भारत का सपना देखा बल्कि उसे साकार करने के लिए आवश्यक पहल भी की। तो आइए जानते हैं कि उन्होंने किस तरह से इसके लिए पहल की
दूरदर्शी थे जेएन टाटा
जेएन टाटा का जन्म 1839 में गुजरात के नवसारी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा करने के बाद उन्होंने इंग्लैंड, अमेरिका सहित कई देशों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने यह देखा कि दक्ष मैनपावर, पर्याप्त ईंधन और जरूरी संसाधन की मदद से किसी भी कंपनी को शुरू किया जा सकता है बल्कि देश का भविष्य भी बदला जा सकता है। इसके लिए उन्होंने कर्मचारियों को दक्ष करने के लिए प्रौद्योगिकी संस्थान की नींव रखने की पहल की। इसके लिए उन्होंने लार्ड कर्जन से लेकर स्वामी विवेकानंद से अपील की।
चिकित्सा के क्षेत्र में की पहल
जेएन टाटा के समय में भारत में शिशु मृत्यु दर 60 प्रतिशत तक थी। इससे देश की भावी पीढ़ी को खतरा था। साथ ही यह देश के लिए एक गंभीर समस्या थी। जेएन टाटा ने इसे समझा और बिना बेहतर व आधुनिक चिकित्सा के यह संभव नहीं था। ऐसे में जमशेद जी टाटा ने यह महसूस किया कि यदि घर की महिलाएं कम बीमार होंगी तो वे पुरुष डाक्टर के पास जाने से बचेंगी। इसके लिए उन्होंने मिड वाइफरी, महिलाओं और बच्चों को होने वाली बीमारियों का अध्ययन करने के लिए फ्रेनी कामा को छात्रवृत्ति के लिए सम्मानित किया।

कृष्णा बाई केलावकर
फिर उन्होंने पारसी महिलाओं के लिए आरक्षित कोटा को नजरदांज करते हुए कृष्णा बाई केलावकर द्वारा प्रायोजित एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। जिसके तहत महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति प्रशिक्षित किया गया। जेएन टाटा व कृष्णा बाई केलावकर ने मिलकर आधुनिक राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जेएन टाटा की पहल पर फगर्यूसन कॉलेज में उनका दाखिला कराया। इसके बाद उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने जातिगत व्यवस्था को समाज से हटाने, महिला शिक्षा को प्रोत्साहित करने और बाल विवाह को समाप्त करने की दिशा में भी पहल की और यह सब जेएन टाटा की पहल से ही हो पाया।
कृष्णा ने मरीजों का शुरू किया इलाज
बेहतर तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के बाद कृष्णाबाई केलावकर ने अल्बर्ट एंडवर्ड मेमोरियल हास्पिटल में विमेंन एंड चिल्ड्रेन विभाग में अपनी मुस्कान से रोगियों का इलाज करना शुरू किया और इसके लिए उन्हें काफी प्रशंसा भी मिली। केलावकर के निधन के बाद 1969 में केलावकर मेडिकल सेंटर स्थापित किया गया जो भारत में शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए काम करती है और संस्था की पहल पर आज देश की शिशु मृत्यु दर पांच प्रतिशत से भी कम है। जसे जेएन टाटा के स्कॉलरशिप के बिना संभव नहीं था।
दूरदृष्टि के कारण देश हुआ समृद्ध
जेएन टाटा जानते थे कि यह देश तभी आगे बढ़ सकता है जब यहां के बच्चों के पास उच्च तकनीकी शिक्षा हो। इसके लिए उन्होंने प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना करने की सोची। साथ ही पनबिजली व थर्मल पावर प्लांट के निर्माण के लिए भी पहल की। हालांकि ये दोनो संस्थान उनके जीवन काल में शुरू नहीं हो पाया लेकिन उनके बेटे सर दोराबजी टाटा ने अपने पिता के सपने को पूरा कर समृद्ध भारत का निर्माण कर पिता की दूरदृष्टि को सहीं साबित किया।
इसके अलावा उन्होंने भारत में औद्योगिक क्रांति की भी नींव रखी। उनकी सोच की बदौलत ही झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के साकची में वर्ष 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की नींव रखी गई और 12 फरवरी 1912 में देश में पहला इंगोट स्टील का उत्पादन हुआ।

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