Jharkhand News : सारंडा जंगल में जख्मी जानवरों की अब तड़पकर नहीं जाएगी जान
Saranda Forest सारंडा जंगल में अब जख्मी हालत में समय पर इलाज की सुविधा नहीं मिलने की वजह से वन्य जीवों की जान नहीं जायेगी। वन्य जीवों को सुरक्षा देने के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वैन सारंडा वन प्रमंडल की टीम को मुहैया करा दी गयी है।

चाईबासा : सारंडा जंगल में अब जख्मी हालत में समय पर इलाज की सुविधा नहीं मिलने की वजह से वन्य जीवों की जान नहीं जायेगी। वन्य जीवों को सुरक्षा देने के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वैन सारंडा वन प्रमंडल की टीम को मुहैया करा दी गयी है। वाहन की उपलब्धता के बाद अब जंगली जानवरों के घायल होने पर सारंडा वन प्रमंडल में मोबाइल वाइल्डलाइफ क्विक रिस्पांस टीम के द्वारा जल्द से जल्द उन्हे समुचित ईलाज मुहैया कराया जा सकेगा।
अत्याधुनिक संसाधनों से लैस होगा एनिमल रेस्क्यू व्हीकल
सारंडा वन प्रमंडल के डीएफओ चंद्रमौली प्रसाद सिन्हा ने बताया कि टाटा स्टील लांग प्रोडक्ट लिमिटेड की ओर से एनिमल रेस्क्यू वेहिक्ल दी गई है जो अत्याधुनिक संसाधनों से लैस होगी। इसमें 2 बड़े आकार के पिंजरे, जाली, टॉर्च, डार्ट गन, रस्सी,फर्स्ट एड किट व अन्य संसाधन उपलब्ध होंगे। त्वरित प्रतिक्रिया दल को सारंडा के जंक्शन प्वाइंट में तैनात किया जाएगा जहां से किसी भी जगह में जानवरों की घायल होने की सूचना प्राप्त होने पर जल्द से जल्द उस स्थान में पहुंचने की कोशिश करेंगे।
उसके बैकअप टीम में रेंज की टीम भी स्थल पर जल्द से जल्द से आएगी। प्रत्येक रेंज में एक नोडल अधिकारी बनाया जाएगा जो सूचना प्राप्त होने पर जल्द से जल्द संसाधनों के साथ टीम को भेजेंगे। उक्त वाहन को शुक्रवार को सारंडा वन प्रमंडल को सौंप दिया गया है। इस अवसर पर सारंडा वन प्रमंडल पदाधिकारी चंद्रमौली प्रसाद सिन्हा, सलंग्न पदाधिकारी प्रजेश कांता जेना व सारंडा वन प्रमंडल के कर्मचारीगण एवं टाटा स्टील लांग प्रोडक्ट लिमिटेड के राहुल किशोर, सीनियर डिविजनल हेड एवं देवाशीष दास , डिविजनल मैनेजर आदि मौजूद थे।
सारंडा जंगल (Saranda forest) झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले की पहाड़ियों पर फैला हुआ एक घना वन है। यह कभी सराइकेला के राजपरिवार का निजि शिकार-क्षेत्र हुआ करता था। सारंडा जंगल लगभग 820 वर्ग किमी पर विस्तरित है। वन के बीचो-बीच लगभग 550 मीटर (1,800 फुट) पर बसा थलकोबाद नामक ग्राम है, जो चक्रधरपुर से 89 किमी और जमशेदपुर से 160 किमी दूर स्थित है।
सारंडा को इको टूरिज्म के लिए विकसित करने की दिशा में काम कर रही सारंडा वन प्रमंडल की टीम के अनुसार बहुत कम लोग ही जानते हैं कि सारंडा पहले कभी डाकुओं का भी शरणस्थली हुआ करता था। इसके सबूत सारंडा में आज भी देखने को मिलते हैं। जानकारों की मानें तो सारंडा का डाकुलता गुफ़ा उसी का उदाहरण है। डाकुलता गुफ़ा मनोहरपुर पंचायत के चिरिया गांव से सात किलोमीटर की दूरी पर है। वृहद आकर के इस गुफा में अब भालू एवं चमगादड़ों का निवास स्थान है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहाड़ी पर बनी गुफा में डाकू पुलिस से छिपने के लिए आते थे और कई दिनों तक गुफा में रहते थे । इस कारण इस गुफा का नाम डाकूलता गुफा है और लोग भी इस इलाके में नहीं आते थे ।
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