गले में हो रही कांटे जैसी चुभन... तो हो जाइए सावधान! डॉक्टर ने बताया- इस प्रॉब्लम के 40% बढ़े मरीज
जमशेदपुर में मौसम बदलने के साथ गले की खराश की समस्या बढ़ रही है। अस्पतालों में मरीजों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। डॉक्टर इसे गंभीरता से लेने की सलाह देते हैं क्योंकि यह टॉन्सिल या बैक्टीरियल इंफेक्शन का कारण बन सकती है। बचाव के लिए गुनगुना पानी पीने गरारे करने और ठंडी चीजों से परहेज करने की सलाह दी गई है।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। साकची के रहने वाले 32 वर्षीय रवि कुमार पिछले एक हफ्ते से गले में कांटे जैसी चुभन और दर्द से परेशान थे। शुरुआत में उन्होंने अदरक-शहद और नमक वाले पानी के गरारे जैसे घरेलू नुस्खे अपनाए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। धीरे-धीरे निगलने में तकलीफ बढ़ी और आवाज बैठने लगी तो उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा।
डिमना चौक स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे रवि कुमार का कहना है कि पहले लगा मामूली खराश है, लेकिन जब दर्द बढ़ा और खाना निगलना मुश्किल हो गया तो समझ आया कि इसे नजरअंदाज करना गलती होगी।
रवि कुमार जैसे कई मरीज इन दिनों अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। मौसम बदलने के साथ ही गले की खराश और चुभन की शिकायत तेजी से बढ़ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि इस समय ईएनटी ओपीडी में आने वाले हर तीसरे मरीज को गले से जुड़ी दिक्कत है। अगर इस परेशानी को हल्के में लिया गया तो यह टॉन्सिल और बैक्टीरियल इंफेक्शन का कारण बन सकती है।
एमजीएम के ईएनटी ओपीडी में रोजाना 150 से अधिक मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं। इनमें 50 से 60 मरीज गले की खराश की शिकायत लेकर आ रहे हैं। यानी करीब 40 प्रतिशत मरीज केवल गले की समस्या से पीड़ित हैं।
मरीजों की बढ़ी संख्या
शहर के अन्य क्लीनिकों और प्राइवेट अस्पतालों में भी यही स्थिति देखने को मिल रही है। गले में कांटे जैसी चुभन, निगलने में दर्द, सूजन और आवाज बैठने जैसी समस्याएं आम तौर पर सामने आ रही हैं। कई मरीजों को लगातार खांसी और हल्का बुखार भी हो रहा है। एमजीएम अस्पताल के ईएनटी रोग विशेषज्ञ डा. रोहित झा कहते हैं कि
गले की खराश को लोग अक्सर हल्के में ले लेते हैं, लेकिन अगर यह दो-तीन दिन से ज्यादा बनी रहे तो इसे नजरअंदाज न करें। यह वायरल इंफेक्शन, टॉन्सिल या स्टेप थ्रोट का लक्षण हो सकता है। बच्चों और बुजुर्गों में इसका खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती है। उन्होंने आगे बताया कि धूल-धुएं, मौसम का अचानक बदलना और ठंडी-खट्टी चीजें खाने से यह समस्या तेजी से फैल रही है।
हर साल बढ़ जाते मरीज
डॉ. रोहित झा ने बताया कि बदलते मौसम में हर साल इस तरह के मरीजों की संख्या में इजाफा होती है। आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 35 से 40 प्रतिशत लोग गले की समस्या से प्रभावित होते हैं। इनमें से ज्यादातर मामले वायरल इंफेक्शन और एलर्जी से जुड़े होते हैं। वहीं, बैक्टीरियल इंफेक्शन वाले मरीजों को एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत पड़ती है।
बचाव के उपाय
- गुनगुना पानी ज्यादा पिएं और नमक वाले पानी से दिन में दो बार गरारे करें।
- धूल-धुएं और प्रदूषण से दूरी बनाएं।
- खट्टे और ठंडे पेय पदार्थों से फिलहाल परहेज करें।
- मसालेदार और तैलीय भोजन से भी बचें।
- लक्षण बढ़ने या बुखार आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
गले की खराश मामूली समस्या लग सकती है, लेकिन समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह गंभीर बीमारी में बदल सकती है। बदलते मौसम में सतर्क रहें और लक्षण दिखते ही इलाज करवाएं। - डॉ. रोहित झा, ईएनटी रोग विशेषज्ञ, एमजीएम
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