जमशेदपुर के साइबर ठगों ने 12 अमेरिकियों को बनाया शिकार, विदेश मंत्रालय तक हड़कंप
जमशेदपुर से संचालित एक साइबर ठगी गिरोह ने 12 अमेरिकी नागरिकों को ठगा। विदेश मंत्रालय और झारखंड पुलिस जांच में जुटे हैं। ठग तकनीकी सहायता या सरकारी अधिकारी बनकर लोगों को फंसाते थे। गिरोह जमशेदपुर के कई इलाकों से संचालित हो रहा था और पुलिस को अन्य देशों के लोगों को भी शिकार बनाने का संदेह है। एजेंसियां वैश्विक स्तर पर सहयोग कर रही हैं।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। जमशेदपुर शहर से संचालित हो रहे एक बड़े साइबर ठगी गिरोह ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी है। इस गिरोह ने कथित तौर पर 12 अमेरिकी नागरिकों को अपना शिकार बनाकर लाखों रुपये की ठगी की है। इस गंभीर खुलासे के बाद भारत सरकार का विदेश मंत्रालय सक्रिय हो गया है और कई भारतीय एजेंसियां, झारखंड पुलिस के साथ मिलकर इस पूरे मामले की गहन जांच में जुट गई हैं।
शहर के विभिन्न इलाकों से आपरेट हो रहे इस गिरोह को जड़ से उखाड़ने के लिए पुलिस ने अपनी कार्रवाई तेज कर दी है और कई संदिग्धों की तलाश में बड़े पैमाने पर छापेमारी की जा रही है, जिससे जल्द ही इस रैकेट के सरगनाओं की गिरफ्तारी की उम्मीद है।
अमेरिका से भारत तक पहुंची शिकायतें
इन अमेरिकी पीड़ितों ने सबसे पहले अपने देश के संबंधित अधिकारियों के पास अपनी शिकायतें दर्ज कराई थीं। मामले की गंभीरता को देखते हुए, अमेरिकी अधिकारियों ने इन शिकायतों को भारत के विदेश मंत्रालय को भेजा, जिसके बाद नई दिल्ली से लेकर झारखंड तक जांच का जाल बिछ गया।
तब से, झारखंड पुलिस के साथ समन्वय में कई केंद्रीय जांच एजेंसियां इस अंतरराष्ट्रीय धोखाधड़ी सिंडिकेट की पूरी तरह से जांच कर रही हैं।
शहर के इन इलाकों से चल रहा था खेल
प्रारंभिक जांच से पता चला है कि इन ठगों ने पीड़ितों को निशाना बनाने के लिए जमशेदपुर स्थित भारतीय फोन नंबरों का इस्तेमाल किया था। खुफिया इनपुट के आधार पर कार्रवाई करते हुए, सिटी एसपी कुमार शिवशीष ने तत्काल सभी डीएसपी और थाना प्रभारियों को अलर्ट जारी कर शहर भर में कड़ी निगरानी रखने का निर्देश दिया है।
पुलिस का मानना है कि यह अंतरराष्ट्रीय साइबर ठगी रैकेट साकची, मानगो, टेल्को, गोविंदपुर और बारीडीह जैसे शहरी क्षेत्रों से संचालित किया जा रहा था। इस सिलसिले में अब तक कई संदिग्धों की पहचान कर ली गई है और उन्हें पकड़ने के लिए इन इलाकों में लगातार दबिश दी जा रही है।
ठगी का तरीका : तकनीकी सहायता और सरकारी अधिकारी का भेष
जांचकर्ताओं के शुरुआती निष्कर्षों से पता चलता है कि यह गिरोह एक सुनियोजित तरीके से काम कर रहा था। ठग खुद को तकनीकी सहायता कार्यकारी (जैसे कि किसी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी का प्रतिनिधि) या सरकारी अधिकारी (जैसे टैक्स विभाग या सोशल सिक्योरिटी का अधिकारी) बताकर भोले-भाले विदेशी नागरिकों का विश्वास जीतते थे।
वे पीड़ितों को फर्जी बैंकिंग संबंधी समस्याओं, कंप्यूटर में वायरस की झूठी चेतावनी, तकनीकी खराबी, या सरकारी लाभ के झांसे में फंसाकर उनसे गोपनीय जानकारी जैसे बैंक खाते का विवरण या क्रेडिट कार्ड नंबर हासिल करते थे।
कई बार वे पीड़ितों से किसी खास सॉफ्टवेयर को डाउनलोड करने या रिमोट एक्सेस देने को भी कहते थे, जिसके बाद उनके खातों से पैसे निकाल लिए जाते थे। सूत्रों के अनुसार, यह सिंडिकेट एक प्रोफेशनल काल-सेंटर की तरह काम करता था, जहां अंग्रेजी बोलने वाले कर्मचारी विशेष रूप से विदेशी नागरिकों को निशाना बनाते थे।
पुलिस को संदेह, अन्य देशों के लोगों को भी बनाया शिकार
पुलिस को संदेह है कि इस गिरोह की गतिविधियां केवल संयुक्त राज्य अमेरिका तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अन्य देशों के नागरिकों को भी इसका शिकार बनाया गया हो सकता है। पुलिस अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि इस पूरे रैकेट के सरगनाओं और उनके सहयोगियों की जल्द से जल्द पहचान कर उन्हें कानून के कटघरे में लाया जाएगा।
इस अंतरराष्ट्रीय साइबर ठगी के जाल को पूरी तरह से तोड़ने के लिए भारतीय एजेंसियां वैश्विक स्तर पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग की मांग कर रही हैं ताकि ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके।
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