संघर्ष से सृजन तक: जमशेदपुर Literature Festival में प्रेरणा की त्रिवेणी
जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल में राहगीर, भज्जू श्याम और डॉ. दामोदर खड़से ने अपने संघर्षों और सृजन की कहानियां साझा कीं। राहगीर ने बताया कि कैसे गिटार ने ...और पढ़ें

बिष्टुपुर स्थित होटल रमाडा में आयोजित प्रेसवार्ता में जानकारी देते अतिथि।
इस मंच पर देश के चर्चित लोकगायक राहगीर, पद्मश्री से सम्मानित गोंड कलाकार भज्जू श्याम और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक डॉ. दामोदर खड़से ने अपने अनुभव साझा किए। तीनों की यात्राएं अलग थीं, लेकिन उनका साझा सूत्र था- संघर्ष, संवेदनशीलता और सृजन के प्रति अटूट विश्वास।
और किस तरह गिटार ने बदल दी जीवन की दिशा
पांच वर्षों तक संघर्षों से भरा रहा जीवन
लोगों का प्यार सबसे बड़ी कहानी
पेंटिंग से बदली गांव की पहचान : पद्मश्री भज्जू श्याम
भोपाल से आए पद्मश्री सम्मानित गोंड कलाकार भज्जू श्याम पहली बार जमशेदपुर पहुंचे। उन्होंने कहा कि गोंड पेंटिंग केवल चित्रकला नहीं, बल्कि कहानियों की दृश्य भाषा है। पाटनगढ़ गांव से निकलकर उन्होंने अपनी कला के माध्यम से पूरी दुनिया को अपनी संस्कृति से परिचित कराया।
भज्जू श्याम ने बताया कि वे अब तक 16 किताबें लिख चुके हैं। लंदन यात्रा के दौरान मिले अनुभवों को भी उन्होंने अपनी पेंटिंग में उतारा। उनका मानना है कि अगर नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़कर सीखेगी, तभी पारंपरिक कलाएं जीवित रह पाएंगी।
सिस्टम, समाज और संघर्ष की कथा : डॉ. खड़से
साहित्य अकादमी सम्मानित लेखक डॉ. दामोदर खड़से ने कहा कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाना भी है। उन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘काला सूरज’ का जिक्र किया, जो पत्रकारों के जीवन पर आधारित है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे आदर्शों से भरा युवा पत्रकार सिस्टम की जटिलताओं में टूटने लगता है।
उनका उपन्यास ‘भगदड़’ गांव से शहर आने वाले व्यक्ति के संघर्ष को दर्शाता है, जबकि हालिया कृति ‘बादल रात’ महिलाओं की प्रगति, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की कहानी कहती है। डॉ. खड़से के अनुसार, साहित्य वही सार्थक है जो समाज की सच्चाइयों से संवाद करे।

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