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    Vat Savitri Vrat 2021: पहली बार कर रही वट सावित्री व्रत तो जान लें यह नियम व पूजा की विधि

    By Jitendra SinghEdited By:
    Updated: Wed, 09 Jun 2021 09:40 AM (IST)

    हिंदू धर्म के अनुसार वट सावित्री पूजन का अलग महत्व है। यह व्रत पति की दीर्घायु होने के लिए किया जाता है। आज ही के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति का प्राण वापस लिया था। यमराज ने चना के रूप में प्राण वापस किया था।

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    पहली बार कर रही वट सावित्री व्रत तो जान लें यह नियम व पूजा की विधि।

    जमशेदपुर। आज बुधवार को जमशेदपुर सहित झारखंड, बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में वट सावित्री पूजन मनाया जा रहा है। कोरोना काल के बावजूद न सिर्फ मंदिरों में सुबह से ही महिला भक्तों की भीड़ लगी हुई है, बल्कि वट वृक्ष की भी धूमधाम से पूजा की जा रही है। इस बार वट सावित्री पूजन के दिन सूर्यग्रण के साथ-साथ शनि जयंती भी है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए करती है।

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    पंडित देवानंद पांडेय के अनुसार, इस व्रत को जेठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन अपने मृत पति को पुनः जीवन प्रदान करने के लिए सावित्री ने यमराज से प्रार्थना की थी।इस प्रार्थना से प्रभावित होकर यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए थे। इसी के साथ यमराज ने सावित्री को तीन वरदान भी दिए। इन्हीं वरदान के सहारे सावित्री ने अपनी पति को जीवित करवा दिया था। ऐसी मान्यता है कि सत्यवान के प्राण यमराज ने चने के रूप में वापस किए थे। सावित्री ने इस चने को अपने पति के मुंह में रख दिया, जिससे सत्यवान जीवित हो गए। यही कारण है कि इस पर्व में चना का विशेष महत्व है।

    वट सावित्री पूजन की सामग्री - बांस की लकड़ी का पंखा, अगरबत्ती, लाल व पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़, चढ़ावे के लिए पकवान, हल्दी, अक्षत, सोलह श्रृंगार, कलावा, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिंदूर, लाल रंग का वस्त्र आदि।

    कब है मुहूर्त - पंडित देवानंद पांडेय के अनुसार, इस बार अमावस्या की तिथि का प्रारंभ नौ जून को 2021 को दोपहर 1.57 में हो गया है और इसकी समाप्ति 10 जून यानी बुधवार को 04.22 बजे होगा। उदया तिथि में यह व्रत दस जून को ही है।

    पूजा की विधि - वट सावित्री पूजा के दिन नहाकर संपूर्ण श्रृंगार करें। इसके बाद एक बांस व पीतल की कोटरी में पूरा सामान रख पूजा करें। भगवान सूर्य को लाल पुष्प के साथ तांबे के बर्तन में अघ्र्य दें। घर के पास या मंदिर के वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें। वट वृक्ष को पंखा झेलें। बांस के पात्र का दान करें।