Hul diwasः क्या आप जानते हैं सिदो, कानू , चांद, भैरव, फूलो और झानो सगे भाई-बहन थे, हूल विद्रोह का इतिहास बता रहे सूर्य सिंह बेसरा
Hul diwas 1857 को हुआ सिपाही विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि थी लेकिन इसके ठीक दो वर्ष वर्ष पूर्व 1855 को ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध महान संथाल विद्रोह हुआ था। संथाल विद्रोह को संताली भाषा में ‘संताल हूल’ कहते हैं।

जमशेदपुर, जासं। भारतीय इतिहासकारों के अनुसार 1857 को हुआ सिपाही विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि थी, लेकिन इसके ठीक दो वर्ष वर्ष पूर्व 1855 को ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध महान संथाल विद्रोह हुआ था। संथाल विद्रोह को संताली भाषा में ‘संताल हूल’ कहते हैं। संथाल परगना का पूर्ववर्ती नाम ‘दामिनी को’ था यह नाम ब्रिटिश शासकों ने दिया था। ‘दामिनी को’ क्षेत्र पहले बीहड़ जंगल था। अंग्रेज शासक जंगल की कटाई कर खेती लायक जमीन बनाने के लिए आसपास के क्षेत्र के संताल आदिवासियों को मजदूरी करने के लिए प्रलोभन देकर लाए थे।
आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ व घाटशिला के पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा बताते हैं कि इतिहासकारों के मुताबिक काफी संख्या में संताल या संथाल जनजाति के लोग हजारीबाग, सिंहभूम मानभूम और बीरभूम क्षेत्र से जाकर वहां जीविकाेपार्जन के लिए बसने लगे थे। संथाल आदिवासियों ने पहले अंग्रेजी हुकूमत के आदेशानुसार जंगल-झाड़ साफ किया और खेती लायक जमीन बनाई। उस जमीन पर जब संथालों ने खेती करनी शुरू की तो ‘दिकू महाजन’ लगान वसूलने लगे। इसके साथ ही ब्रिटिश पुलिस संथालों पर अत्याचार व शोषण करने लगे। जब संथालों पर ब्रिटिश ओं का हुकूमत शोषण जुल्म अन्याय अत्याचार की अति हो गई, तब संथालों को विद्रोह के लिए विवश होना पड़ा। उस समय दुमका स्थित बरहेट प्रखंड के अंतर्गत भोगनाडीह गांव में चुन्नू मुर्मू की छह संतान, जिनमें चार लड़के और दो लड़कियां थीं। चार भाइयों और चार बहनों जिनका नाम सिदो मुर्मू, कान्हू मुरमू, चांद मुर्मू, भैरव मुर्मू, फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू था। इन सगे भाई-बहनों ने संथाल समाज के लोगों को जागृत किया। संगठित किया और ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह के लिए ललकारा। 1855 में 30 जून काे भोगनाडीह गांव स्थित एक विशाल मैदान में संथाल जनजाति के लोग एकत्र हुए थे, जिसका नेतृत्व सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू कर रहे थे। उस दिन दोनों भाइयों ने ब्रिटिश शासकों को ललकारा और संथाल हूल के लिए ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। उसी दिन यह संकल्प लिया गया कि हमारी मेहनत की कमाई खेती-बाड़ी जल-जंगल-जमीन हमारा है। अंग्रेजों की गुलामी अब हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। इस उद्घोष के साथ उसी दिन से संथाल विद्रोह की शुरुआत हुई।
10,000 संथाल हुए थे शहीद
भोगनाडीह गांव में 30 जून को करीब 30,000 संथाल जुटे थे। इतिहासकारों का मानना है कि 30 जून 1855 से 1856 तक करीब एक साल तक महायुद्ध हुआ था। उस लड़ाई में अंग्रेज सिपाहियों के हाथों करीब 10,000 संथाल शहीद हुए थे। कहा जाता है कि सिदो मुर्मू और कानू मुर्मू को अलग-अलग जगह फांसी दी गई थी, जबकि चांद मुर्मू, भैरव मुर्मू और दोनों की बहन फूलो मुर्मू व झानो मुर्मू लड़ाई में शहीद हुई थीं। भारतीय इतिहासकारों ने भले ही 1857 में सिपाही विद्रोह को ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि माना है, लेकिन वास्तव में अगर इतिहास की तह तक जाया जाए तो पता चलेगा कि संताल विद्रोह ही वास्तव में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की मूल पृष्ठभूमि थी। संथाल विद्रोह के परिणाम स्वरूप ‘दामिन-ई-को’ का नाम संथाल परगना में परिणत हुआ। संथाल आदिवासियों की कुर्बानी त्याग और बलिदान बेकार नहीं गई, उनके विद्रोह से संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम- 1949 बना। इसके तहत आदिवासियों की जल जंगल जमीन आज भी सुरक्षित है।
देश-विदेश में मनाया जाता हूल दिवस
यह सर्वविदित है कि संथाल हूल यानी महान संथाल विद्रोह के स्मरण में उनके यहां द्वार में संथाल परगना स्थित दुमका में ‘सिदो मुर्मू-कानू मुर्मू विश्वविद्यालय’ स्थापित किया गया है। 30 जून को ‘संथाल हूल’ के नाम से ना सिर्फ झारखंड, बल्कि ओडिशा, बंगाल, बिहार, असम के अलावा देश-विदेश में भी हूल दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने सिदो मुर्मू-कानू मुर्मू के नाम से डाक टिकट भी जारी किया है। झारखंड सरकार ने 30 जून को हूल दिवस के नाम से सरकारी छुट्टी भी स्वीकृत की है। आज की तारीख में संथाल विद्रोह यानी संथाल हूल के इतिहास के पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है। इतनी बड़ी कुर्बानी, इतनी बड़ी लड़ाई का इतिहास आज 166 वर्षगांठ ‘हूल महा’ के रूप में मनाया जाता है, लेकिन आज उन संथालों का अस्तित्व क्या है? उनकी पहचान क्या है? संथाल आदिवासियों का अस्तित्व जल जंगल जमीन से जुड़ा है और उनकी पहचान आज घोर संकट में है। संथाल जनजातियों की मातृभाषा संताली है। भारत सरकार ने 22 दिसंबर 2003 को संताली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्वीकृति प्रदान की है, लेकिन बंगाल को छोड़कर देश के किसी अन्य राज्य में संताली भाषा को अमलीजामा आज तक नहीं पहनाया गया है। भारत का संविधान अनुच्छेद- 350 (क) में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्यता कही गई है, लेकिन झारखंड राज्य में कहां है?
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