Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    बिना साबुन के कैसे सुंदर दिखती थी पुराने जमाने की रानियां, जेएन टाटा ने शुरू किया था साबुन का बिजनेस

    By Jitendra SinghEdited By:
    Updated: Fri, 06 Aug 2021 01:24 PM (IST)

    क्या आपको पता है भारत में साबुन का आयात 1890 में पहली बार हुआ। अब आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा तो फिर पुराने जमाने की रानियां इतनी सुंदर कैसे दिखती है। वही राज तो बताने हम आए हैं। यहां पढ़िए...

    Hero Image
    फिल्म जोधा अकबर में रितिक रोशन व ऐश्वर्या राय

    जमशेदपुर, जासं। क्या कभी आपको यह ख्याल आता है कि आज हमलोग बिना साबुन-सर्फ के नहीं रह सकते, तो आज से कई वर्ष पहले राजा-महाराजा या आम लोग अपने कपड़े कैसे साफ करते होंगे। आज की पीढ़ी के लिए यह हैरान करने वाली बात है, जबकि 1950-60 में जन्मे लोग इसका जवाब आसानी से दे सकते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नई पीढी़ को शायद पता नहीं होगा कि कपड़े धोने का साबुन ब्रिटेन से 1890 में आयात शुरू हुआ था। इंग्लैंड के लीवर ब्रदर्स ने पहली बार भारत में आधुनिक कपड़े के साबुन का कारोबार शुरू किया था। इसके कुछ वर्ष बाद, जब इसका एक बाजार बन गया तो 1897 में उन्होंने मेरठ में साबुन की फैक्ट्री खोल दी। इस कंपनी का नाम था नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी। जब यह कारोबार बढ़ने लगा तो जमशेदजी टाटा इस कारोबार में आए। टाटा ऑयल कंपनी के नाम से 1917 में फैक्ट्री लगी।

    बाल धोने वाले रीठा से कपड़ा होता था साफ

    आज अधिकतर लोग बाल धोने के लिए जिस रीठा का इस्तेमाल करते थे, उससे कभी कपड़े साफ किए जाते थे। यह एक पेड़ में फलता है। आज रीठा से हर्बल शैम्पू बनाए जाते हैं। संभ्रांत ही नहीं आम महिला-पुरुष भी बाल धोने के लिए रीठा का इस्तेमाल करते हैं। हेयर डाई में भी रीठे का इस्तेमाल किया जाता है। उस दौरान रीठे के इस विशेष गुण से राजा-महाराजा सम्मोहित होकर रीठा का बगीचा तक लगाने लगे, ताकि इसे मंगाने या खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़े। साबुन-सर्फ की फैक्ट्री लगने के काफी वर्षों बाद तक रीठा से ही संभ्रांत घरों के लोग कपड़े साफ करने के लिए इस्तेमाल करते थे। धीरे-धीरे इसकी खासियत देखकर बाल धोने में भी इसका उपयोग होने लगा। ऊनी व रेशमी कपड़े इसी से साफ किए जाते थे। अंग्रेजों ने इसे वाश-नट का नाम दिया।

    रेह डालकर गर्म पानी में उबाले जाते थे कपड़े

    एक खास तरह की मिट्टी, जिसे रेह कहा जाता है, का बहुतायत से कपड़ा धोने में इस्तेमाल किया जाता था। आम घरों के अलावा धोबी हाल तक इसी रेह का इस्तेमाल करते थे। बाद में इसका स्थान सोडा या सस्ते डिटर्जेंट ने ले लिया। आज भी धोबी इस रेह का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि यह काफी सस्ता होता है। सफेद रंग का यह खास पाउडर ग्रामीण क्षेत्र की बंजर जमीन, नदी या तालाब के किनारे मिलता था। यह अब भी कहीं-कहीं मिलता है, लेकिन इसका उपयोग अब नहीं के बराबर हो गया है। इस सफेद रंग के पाउडर में सोडियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट के अलावा सोडियम हाइपोक्लोराइट भी पाया जाता है, जो कपड़े को साफ करने के साथ कीटाणुमुक्त भी करता है।

    सफेद या लाल मिट्टी से भी नहाते थे आम भारतीय

    ग्रामीण क्षेत्र में कुछ वर्ष पहले तक और कहीं-कहीं आज भी महिला-पुरुष बंजर जमीन या नदी-तालाब से हल्की सफेद या लाल मिट्टी का इस्तेमाल नहाने, बाल धोने और कपड़ा साफ करने में इस्तेमाल करते थे। भुरभुरे और मुलायम किस्म की इस मिट्टी से शैम्पू की तरह बाल मुलायम हो जाते हैं। आज भी यह मिट्टी बाजार में पैकेट या बोरे में बिकती है। कुछ लोग इसे मुलतानी मिट्टी के नाम से भी जानते हैं। इस मिट्टी का उपयोग स्नान करने और बाल धोने के लिए खूब किया जाता है।