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    एक साल में दो अधीक्षक बदले, दवा खरीद प्रक्रिया पर संदेह गहराया, 80% मरीज बाहर से दवा खरीदने को मजबूर

    Updated: Mon, 01 Dec 2025 11:12 PM (IST)

    एक साल में दो अधीक्षक बदलने से दवा खरीद प्रक्रिया संदिग्ध हो गई है। अस्पताल में दवाओं की कमी के कारण 80% मरीजों को बाहर से दवा खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इस स्थिति ने अस्पताल की दवा आपूर्ति प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कालेज अस्पताल में दवाओं की कमी रोज नई समस्या बनती जा रही है। हालत यह है कि अस्पताल आने वाले करीब 80 प्रतिशत मरीजों को अपनी दवाएं निजी मेडिकल दुकानों से खरीदनी पड़ रही हैं। 
     
    प्रतिमाह लगभग 35 हजार मरीज अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन दवा स्टोर महीनों से लगभग खाली पड़ा है। अस्पताल के बाहर आधा दर्जन से अधिक मेडिकल दुकानों पर रोज बड़ी भीड़ देखी जा रही है। 
     
    मरीजों ने कहा कि अस्पताल में दवा उपलब्ध न होने की स्थिति में उन्हें मजबूरन महंगी दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। वहीं चौंकाने वाली बात यह है कि अस्पताल परिसर में अब तक न जन औषधि केंद्र खुला है और न ही अमृत फार्मेसी, जबकि इन केंद्रों पर 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती दवाएं उपलब्ध होती हैं।  
     

    टेंडर रद होने से उलझा पूरा मामला  

    दवा खरीद में संकट की शुरुआत दिसंबर 2024 में हुई। तत्कालीन अधीक्षक डा. रविंद्र कुमार ने लगभग 800 तरह की दवाओं के लिए बड़ा टेंडर निकाला था, जो लगभग अंतिम चरण में पहुंच चुका था। 
     
    इसी दौरान उन्हें पद से हटा दिया गया और नई अधीक्षक डा. शिखा रानी ने पदभार संभाला। उन्होंने आते ही पूरा टेंडर रद्द कर दिया। उनका कहना था कि दवा खरीद ई-औषधि (डीवीडीएमएस) पोर्टल के माध्यम से ही होनी चाहिए। 
     
    लेकिन टेंडर रद्द होने के बाद न तो नई प्रक्रिया शुरू हो सकी और न ही पुराना स्टॉक भर पाया। नतीजा—अस्पताल का दवा स्टोर पूरी तरह खाली हो गया। टेंडर रद्द होने के कुछ दिनों बाद ही डा. शिखा रानी को भी पद से हटा दिया गया। 
     
    एक साल में दो अधीक्षकों का बदलना, और उसी अवधि में दवा खरीद का ठप पड़ जाना, कर्मचारी और मरीज दोनों के बीच कई सवाल खड़े कर रहा है।
     
    अस्पताल कर्मियों का कहना है कि अगर पुराना टेंडर गलत था तो महीनों तक उसे रोका क्यों गया? अगर सही था, तो अचानक रद क्यों किया गया? यह भी कहना है कि नई प्रक्रिया शुरू क्यों नहीं हुई? इन सवालों के स्पष्ट जवाब अभी तक किसी भी स्तर पर सामने नहीं आए हैं।
     
    दवाएं नहीं मिलने के कारण रोज हजारों मरीज परेशान हो रहे हैं। कई गरीब परिवारों के लिए बाहर की दवाएं खरीदना मुश्किल हो रहा है। अस्पताल प्रशासन की उदासीनता और दवा खरीद प्रक्रिया में लगातार देरी, मरीजों के लिए बड़ा संकट बन गई है।
     

    कौन-कौन सी दवाएं खत्म?  

    • सर्दी, खांसी, एलर्जी और चर्म रोग की अधिकतर दवाएं
    • सभी प्रमुख एंटीबायोटिक पूरी तरह खत्म
    • कान, नाक, गला और नेत्र रोगों की ड्रॉप उपलब्ध नहीं
    • मानसिक रोगों की प्रमुख दवाएं स्टॉक से बाहर
    • पेट दर्द, गैस और एसिडिटी की दवाएं भी नहीं
    • पिछले छह माह से विटामिन–सी, मल्टीविटामिन और विटामिन–ई का स्टॉक जीरो

    टेंडर का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। कुछ दवाओं का आर्डर भी दिया गया है। उम्मीद है कि 10-15 दिनों में सभी दवाएं उपलब्ध हो जाएंगी।

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    डॉ. आरके मंधान, अधीक्षक, एमजीएम

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    ठंड में एलर्जी बढ़ी है। दवा मांगी तो कहा स्टाक नहीं, बाहर से खरीद लीजिए।

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    शुभांकर सिंह, जादुगोड़ा

    कमर दर्द के लिए दिखाया था, लेकिन कोई भी दवा नहीं मिली।

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    मंगली सिंह, पोटका

    आंख में खुजली थी, ड्राप लेने गए तो बोला दवा खत्म है।

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    कमला देवी, कदमा