पापा को छोटा भीम समझ बेटा सो जाता पेट पर, मां की उड़ी नींद
लाकडाउन के बाद अब बचे घंटों खेल रहे वीडियो गेम हिसक हो रहे समाज के लिए चिता का विषय

अमित तिवारी, जमशेदपुर :
बच्चों के बीच छोटा भीम कार्टून काफी प्रसिद्ध है। अधिकांश बच्चे इस कार्टून को देखना पसंद करते हैं, लेकिन अब इसका दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहा है। शहर में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। पीड़ित के माता-पिता सदर अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. दीपक गिरी से सलाह ले रहे हैं। दरअसल, सोनारी निवासी एक पिता के पेट पर अक्सर उनके बेटा रात में उठता और भीम-भीम कहते हुए सो जाता है। इससे अब समस्या यह हो गई है कि पापा का खाना पचता नहीं और सुबह में पेट खराब हो जाता। वहीं, बच्चे की हरकत से मां भी परेशान हो गई है। उनकी नींद भी उड़ी हुई है। इसे देखते बच्चे की काउंसलिग की जा रही है। दरअसल, लाकडाउन के बाद स्कूल क्लास व ट्यूशन के नाम पर बच्चों को भरपूर मोबाइल व लैपटॉप मिलने लगा है। जो पहले कुछ सीमित समय के लिए मिलता था। अब भरपूर मोबाइल व इंटरनेट मिलने से बच्चे पढ़ाई के अलावा अधिकांश समय तरह-तरह के गेम खेल रहे हैं, जिसका असर उनके दिमाग पर पड़ रहा है।
बच्चों की सोच प्रभावित कर रहा वीडियो गेम : डा. दीपक गिरी ने बताया कि छोटे बच्चों का मन एक कागज की तरह होता है। वह जो भी देखते हैं, वैसा ही करने लगते हैं। ज्यादातर गेम हिसा से भरपूर हैं, जिसे खेलने के बाद बच्चों के दिमाग में वे सब बातें चलने लगती है। वीडियो गेम बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डाला है। उनकी पूरी सोच प्रभावित होने लगी है और बच्चे अनजाने में ही हिसा और अपराध को सामान्य मानने लगते हैं।
दिमाग से लेकर आंख तक हो रही खराब : कंप्यूटर व मोबाइल की लत बच्चों को अपने शिकंजा में ले लिया है। इसका असर न सिर्फ दिमाग पर पड़ रहा है बल्कि आंखों पर भी पड़ रहा है। घंटों देर तक इंटरनेट मीडिया पर समय गुजारने से आंखों की रोशनी भी गायब हो रही है। वहीं, बच्चे जब गेम खेलते हैं तो उनका बैठने का तरीका भी सही नहीं होता, जिससे गर्दन और पीठ में दर्द की शिकायत होने लगी है। बच्चों में नींद की समस्या भी बढ़ने लगी है, जो चिता का विषय है।
बच्चे अनलिमिटेड समय इंटरनेट मीडिया पर दे रहें हैं, जो उनके सेहत के लिए ठीक नहीं है। बच्चों में हिसा की प्रवृति बढ़ रही है। इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जो चिता का विषय है। बच्चों को ज्यादा समय तक वीडियो गेम खेलने से रोका जाना चाहिए।
- डॉ. दीपक गिरी, मनोचिकित्सक, सदर अस्पताल।
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