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    Arthritis Remedy: प्राकृतिक उपचार से गठिया या आर्थराइटिस हो जाएगा छू मंतर, बता रहीं आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Thu, 08 Jul 2021 08:42 AM (IST)

    गठिया को अंग्रेजी में आर्थराइटिस और संस्कृत में संधिवात कहा जाता है। मुख्यरूप से घुटने पैर कंधे और हाथ इससे प्रभावित होते हैं। एलोपैथ में सर्जरी से इसका इलाज किया जाता है लेकिन आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा में इसका सरल उपचार है।

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    आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा में गठिया क सरल उपचार है।

    जमशेदपुर, जासं। गठिया को अंग्रेजी में आर्थराइटिस और संस्कृत में संधिवात कहा जाता है। यह एक वात रोग है और इसका प्रभाव हड्डियों के जोड़ों पर पड़ता है। मुख्य रूप से घुटने, पैर, कंधे और हाथ इससे प्रभावित होते हैं। एलोपैथ में सर्जरी से इसका इलाज किया जाता है, लेकिन आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा में इसका सरल उपचार है।

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    गठिया के कई कारण हो सकते हैं, जैसे- व्यायाम की कमी, पैदल न चलना, सीढ़ियों के बजाय लिफ़्ट का अधिक उपयोग करना, आराम तलब जीवन शैली, असंतुलित खानपान, बढ़ता हुआ वज़न, दर्दनाशक दवाओं का अत्यधिक सेवन, अन्य रोगों की तेज दवाओं का सेवन आदि। इनमें से एक या अधिक कारण मिलकर शरीर में गठिया उत्पन्न कर देते हैं, जिससे पीड़ित व्यक्ति को बहुत कष्ट होता है। गठिया का सबसे पहला प्रभाव प्राय: घुटनों पर पड़ता है, क्योंकि शरीर का पूरा बोझ घुटनों पर ही आता है। शहर की आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बताती हैं कि गठिया का सरल प्राकृतिक उपचार है, जिसका सही-सही पालन करके कोई भी व्यक्ति पर्याप्त लाभ उठा सकता है।

    उपचार

    •  प्रातः छह बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नींबू का रस मिलाकर पीएं। फिर पांच मिनट बाद शौच जाएं।
    •  शौच के बाद 2-3 मिनट तक पेडू को खूब ठंडे पानी से पोंछें, फिर टहलने जाएं। अपनी सामान्य चाल से डेढ़-दो किमी ज्यादा गति से टहलें।

     टहलने के बाद नीचे दी गयी क्रिया करें

  • पवन मुक्तासन
  • भुजंगासन
  • रीढ़ के व्यायाम : क्वीन और किंग एक्सरसाइज़
  • नेत्र, मुख और ग्रीवा व्यायाम
  • उंगली, कलाई, कोहनी और कंधों के व्यायाम
  • घुटनों के विशेष व्यायाम (कुर्सी पर बैठकर)
  • पैरों के विशेष सूक्ष्म व्यायाम
  • भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रतिदिन पांच चक्र
  • कपालभाति प्राणायाम 300 बार
  • अनुलोम-विलोम प्राणायाम पांच मिनट
  • भ्रामरी तीन बार
  • उद्गीत (ओंकार ध्वनि) तीन बार
  •  तितली व्यायाम एक मिनट
  • व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी के साथ निगल लें या चबाएं।
  • सप्ताह में दो-तीन बार प्रात:काल 8 से 9 बजे के बीच हलके कपड़े पहनकर या तेल मालिश करके कम से कम आधा घंटा धूप सेंकें।
  • दोपहर बाद गठिया के स्थान पर गर्म पानी में भीगी तौलिया से कम से कम 20 मिनट तक नित्य सिकाई करें।
  • यदि समय हो और रोग अधिक बढ़ गया हो तो ये सभी या इनमें से कुछ क्रिया शाम को भी की जा सकती हैं। गठिया के पीड़ितों को कठिन व्यायाम नहीं करने चाहिए।
  • क्या भोजन करना है, क्या नहीं, ध्यान रखें

    • नाश्ता सुबह आठ बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का दूध या छाछ। साथ में रात को भिगोए हुए पां मुनक्का, 10 किशमिश और 20 मूंगफली के दाने खूब चबा-चबाकर खाएं।
    • दोपहर भोजन 1.30 बजे : रोटी, हरी सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
    • दोपहर बाद 4 बजे : किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या एक पाव मौसमी फल (आम न लें)
    • रात्रि भोजन 7.30 बजे : दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खाएं।
    • रात्रि 10-10.30 बजे : सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।

      परहेज

    • चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, चाकलेट, आइसक्रीम, मिठाई, फास्ट फूड, मैदा, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तंबाकू बिल्कुल नहीं।
    • फ्रिज का पानी न पीएं। सादा या गुनगुना पानी ही पीएं।
    •  मिर्च-मसाले, खटाई तथा नमक कम से कम लें। अच्छा हो कि सेंधा नमक का उपयोग करें।
    • दिन भर में साढ़े तीन या चार लीटर सादा पानी पीएं यानी हर एक़ या सवा घंटे पर एक गिलास।
    • सभी तरह की ठंडी चीज़ों से बचें।

    विशेष सावधानी, जो बरतनी होगी

    •  सभी तरह की दवा बिल्कुल बंद रहेगी।
    • जो दवा आप इस समय ले रहे हैं उन्हें धीरे-धीरे कम करते हुए निम्न प्रकार बंद करें-
    • दो सप्ताह बाद : दवा तीन चौथाई कर दें।
    • उसके दो सप्ताह बाद : दवा आधी कर दें।
    • उसके दो सप्ताह बाद : दवा चौथाई कर दें।
    • उसके दो सप्ताह बाद दवायें बिल्कुल बंद कर दें।
    • नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। गीली तौलिया या हाथ से रगड़कर नहाएं।