Elephantiasisः क्या आपको पता है कि हाथी पांव या फील पांव की बीमारी कैसे होती है, इसे प्राकृतिक उपचार से ठीक भी किया जा सकता है
फाइलेरिया रोग एक कृमिवाली बीमारी है। यह कृमि लसीका तंत्र की नलियों में होती है और उन्हें बंद कर देती है। यह फाइलेरिया बैंक्रॉफ्टी नामक विशेष प्रकार की कृमि द्वारा होता है। इसका प्रसार क्यूलेक्स नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है।

जमशेदपुर, जासं। इस रोग में व्यक्ति के पैरों में इतनी सूजन आ जाती है कि उसका पैर हाथी के पैर के समान मोटा हो जाता है, इसलिए इस रोग को हाथी पांव भी कहते हैं। यह रोग मनुष्य के अंडकोष और हाथ-पैरों में अधिक होता है। फाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव या फील पांव भी कहते हैं, में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। कभी पीड़ित व्यक्ति के हाथ, अंडकोष, स्तन या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं।
शहर की प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बताती हैं कि फाइलेरिया रोग एक कृमिवाली बीमारी है। यह कृमि लसीका तंत्र की नलियों में होती है और उन्हें बंद कर देती है। यह फाइलेरिया बैंक्रॉफ्टी नामक विशेष प्रकार की कृमि द्वारा होता है। इसका प्रसार क्यूलेक्स नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है। इस कृमि का स्थायी स्थान लसीका वाहिनियां हैं, परंतु ये निश्चित समय पर, विशेषकर रात्रि में रक्त में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों में फैलते हैं। कभी कभी ये ज्वर तथा नसों में सूजन उत्पन्न कर देते हैं। यह सूजन घटती बढ़ती रहती है, परंतु जब ये कृमि लसीका तंत्र की नलियों के अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है। लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने पर कोई भी औषधि अवरुद्ध लसीकामार्ग को नही खोल सकती। कुछ रोगियों में ऑपरेशन द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है।
फील पांव होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
- इस रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को दो दिन तक फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए और आठ दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए। इसके साथ-साथ प्रतिदिन रोगी व्यक्ति को गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए, ताकि उसका पेट साफ हो सके। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर आधे घंटे तक गीली मिट्टी की गर्म पट्टी लगानी चाहिए और सूजन आए हुए पैर को आधे घंटे तक ऊपर उठाकर रखना चाहिए। इसके बाद पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए। यह क्रिया दिन में दो बार करनी चाहिए और रात को सोते समय रोगी को अपनी कमर पर मिट्टी की गीली पट्टी बांधनी चाहिए तथा दिन में दो बार कटिस्नान करना चाहिए। इससे यह रोग ठीक हो जाता है।
- हरे रंग और पीले रंग की बोतलों के सूर्यतप्त जल को बराबर मात्रा में मिलाकर 25 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में छह बार पीने से हाथीपांव रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- लौंग : लौंग फाइलेरिया के उपचार के लिए बहुत प्रभावी घरेलू नुस्खा है। लौंग में मौजूद एंजाइम परजीवी के पनपते ही उसे खत्म कर देते हैं और बहुत ही प्रभावी तरीके से परजीवी को रक्त से नष्ट कर देते हैं। रोगी लौंग से तैयार चाय का सेवन कर सकते हैं।
- भोजन : फाइलेरिया के इलाज के लिए अपने रोज के खाने में कुछ आहार जैसे लहसुन, अनानास, मीठे आलू, शकरकंदी, गाजर और खुबानी आदि शामिल करें। इनमें विटामिन ए होता है और बैक्टरीरिया को मारने के लिए विशेष गुण भी होते हैं।
- आंवला : आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें एन्थेलमिंथिंक भी होता है जो घाव को जल्दी भरने में बेहद लाभप्रद है। आंवला रोज खाने से इंफेक्शन दूर रहता है।
- अश्वगंधा : अश्वगंधा शिलाजीत का मुख्य हिस्सा है, जिसके आयुर्वेद में बहुत से उपयोग हैं। अश्वगंधा को फाइलेरिया के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
- अदरक : फाइलेरिया से निजात के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ का रोज गरम पानी से सेवन करें। इसके सेवन से शरीर में मौजूद परजीवी नष्ट होते हैं और मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।
- सेंधा नमक : शंखपुष्पी और सौंठ के पाउडर में सेंधा नमक या रॉक साल्ट मिलाकर एक-एक चुटकी रोज दो बार गरम पानी के साथ लें।
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