आप भी तो 'पासवर्ड थकान' के शिकार नहीं? जमशेदपुर में तीन मरीज मिले, डिजिटल युग में नया खतरा
डिजिटल युग में लगातार बदलते और दर्जनों पासवर्ड याद रखने की मजबूरी अब एक नया मानसिक संकट बन गई है जिसे पासवर्ड थकान कहा जा रहा है। जमशेदपुर में ऐसे तीन मामले सामने आए हैं जिनमें रिटायर्ड शिक्षिका बैंक कर्मचारी और सॉफ्टवेयर इंजीनियर शामिल हैं। यह थकान घबराहट बेचैनी और सिरदर्द का कारण बन रही है। विशेषज्ञ इससे बचने के लिए निम्न विकल्पों का उपयोग करने की सलाह देते हैं।

अमित तिवारी, जमशेदपुर। डिजिटल युग में जहां सब कुछ आसान हो रहा है, वहीं अब एक नया संकट सामने आया है। रोज-रोज बदलते और दर्जनों पासवर्ड याद रखने की मजबूरी अब मानसिक बोझ बनती जा रही है। मनोचिकित्सक इसे ‘पासवर्ड थकान’ कह रहे हैं।
जमशेदपुर में पहली बार इस तरह के तीन मरीज मिले हैं, जिनमें से एक रिटायर्ड शिक्षिका भी शामिल हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह ट्रेंड यूं ही चलता रहा तो आने वाले 5–7 वर्षों में पासवर्ड थकान एक सामान्य मानसिक बीमारी की तरह फैल सकती है।
खासकर आइटी, बैंकिंग और कारपोरेट क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों पर इसका प्रभाव अधिक होगा।
बढती डिजिटल निर्भरता बड़ी समस्या
एक रिपोर्ट के अनुसार, औसतन एक कर्मचारी साल में करीब 11 घंटे सिर्फ पासवर्ड डालने और रीसेट करने में गंवाता है। कंपनियों को इससे करोड़ों का नुकसान होता है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि शहर में अब तक तीन मामले दर्ज हो चुके हैं, लेकिन यह संख्या आगे और बढ़ सकती है।
तीन केस स्टडी, मरीजों की परेशानी
- पहला मामला कदमा का है। 62 वर्षीय रिटायर्ड शिक्षिका एटीएम, मोबाइल और आधार पासवर्ड याद न रख पाने से परेशान हैं। उन्होंने बताया कि पासवर्ड भूलने पर घबराहट, बेचैनी और पूरे शरीर से पसीना आने लगता है।
- दूसरा मामला टेल्को का है। यहां 43 वर्षीय एक निजी बैंक कर्मचारी पासवर्ड भूलने पर अक्सर दफ्तर में सहकर्मियों पर चिड़चिड़े हो जाते हैं। कई बार आफिस का काम रुक जाता है।
- तीसरा मामला धतकीडीह का है। 28 वर्षीय साफ्टवेयर इंजीनियर ने बताया कि उसे दिनभर में 15–20 लागिन याद रखने पड़ते हैं। भूल जाने पर नींद उड़ जाती है और सिरदर्द शुरू हो जाता है।
क्यों बढ़ रही है यह बीमारी?
डिजिटल लेन-देन, नेट बैंकिंग, सोशल मीडिया और कंपनी के कामकाज-हर जगह पासवर्ड की जरूरत होती है। हर पासवर्ड के अलग नियम, कैपिटल लेटर, नंबर और चिन्ह लगाने की मजबूरी दिमाग पर बोझ डाल रही है।
क्या होता है ‘पासवर्ड थकान’?
यह मानसिक थकान और तनाव है, जो लगातार पासवर्ड याद रखने और बदलने की मजबूरी से पैदा होती है। मरीज घबराहट, बेचैनी, सिरदर्द, नींद न आना और ध्यान भटकने जैसी समस्याओं से जूझते हैं।
इसके लक्षण क्या है?
- पासवर्ड भूलने पर अचानक घबराहट और बेचैनी
- सिरदर्द, नींद की कमी और लगातार थकान
- काम के दौरान चिड़चिड़ापन और ध्यान न लगना
- बार-बार पासवर्ड बदलने पर मानसिक तनाव
कैसे करें बचाव
- पासवर्ड मैनेजर का इस्तेमाल करें : यह सभी पासवर्ड सुरक्षित रखता है और सिर्फ एक मास्टर पासवर्ड याद रखना होता है।
- सिंगल साइन-आन अपनाएं : एक ही लागिन से कई अकाउंट्स तक पहुंच मिलेगी।
- आसान लेकिन सुरक्षित पासवर्ड बनाएं : कठिन शब्दों की जगह यादगार वाक्य का इस्तेमाल करें।
- बार-बार बदलाव से बचें : जरूरत पड़ने पर ही पासवर्ड बदलें।
- तकनीकी विकल्प अपनाएं : जहां संभव हो, बायोमेट्रिक (फिंगरप्रिंट, फेस आईडी) या मोबाइल आथेंटिकेशन इस्तेमाल करें।
पासवर्ड थकान नई किस्म का मानसिक तनाव है। मरीजों में यह समस्या बढ़ती जा रही है क्योंकि उनका दिमाग हर समय दर्जनों पासवर्ड याद रखने की कोशिश में उलझा रहता है। जरूरी है कि तकनीक को इंसानों के अनुकूल बनाया जाए और पासवर्डलेस सिस्टम को बढ़ावा दिया जाए।
-डॉ. दीपक गिरी, मनोचिकित्सक, सदर अस्पताल।
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