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    भारतीय संविधान को संताली भाषा के ओलचिकी में दिगंबर बाबू ने किया अनुवाद

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 20 Nov 2020 07:00 AM (IST)

    पद्मश्री प्रोफेसर दिगंबर हांसदा का जनजातीय और उनकी भाषा के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

    भारतीय संविधान को संताली भाषा के ओलचिकी में दिगंबर बाबू ने किया अनुवाद

    जासं, जमशेदपुर : पद्मश्री प्रोफेसर दिगंबर हांसदा का जनजातीय और उनकी भाषा के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे केंद्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान संस्थान व साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे। इन्होंने कई पाठ्य पुस्तकों का देवनागरी से संताली में अनुवाद किया था। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिएसंताली भाषा का कोर्स बनाया। उन्होंने भारतीय संविधान का संताली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद किया था। प्रोफेसर हांसदा कोल्हान विश्वविद्यालय के सिडिकेट सदस्य भी रहे। वर्ष 2017 में दिगंबर हांसदा आईआईएम बोधगया की प्रबंध समिति के सदस्य बनाए गए थे। प्रो. हांसदा ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संताली भाषा) के सदस्य रहे हैं। सेंट्रल इंस्टीच्यूट आफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर, ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संथाली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जाहेरथान कमेटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे। जिला साक्षरता समिति पूर्वी सिंहभूम एवं संताली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी नई दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य रह चुके हैं। दिगंबर हांसदा ने आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी काम किया। जिला प्रशासन की ओर से उपायुक्त सूरज कुमार तथा एसएसपी एम तमिल वणन ने करणडीह स्थित प्रोफेसर हांसदा के घर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। जिला प्रशासन की ओर से जानकारी दी गई उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा। दस बजे करणडीह स्थित सरजोम टोला से शव यात्रा निकलेगी। ग्यारह बजे बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट पहुंचेगी। वहां झारखंड सरकार के प्रतिनिधि रूप में परिवहन मंत्री चंपई सोरेन उपस्थित रहेंगे।

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    सेवानिवृत्ति के बाद भी लेते रहे कक्षाएं :

    स्कूल, कालेजों की पुस्तको में संताली भाषा को जुड़वाने का श्रेय प्रोफेसर दिगंबर को ही जाता है। प्रो. हांसदा लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कालेज करनडीह के प्राचार्य भी रहे। सेवानिवृत्ति के बाद वे लगातार अपनी स्वेच्छा से कक्षाएं लेते रहे। इन्हीं के कारण कोल्हान विश्वविद्यालय में ट्राइबल लैंग्वेज विभाग स्थापित हो पाया। वे कोल्हान विवि के एकमात्र शिक्षक हैं, जिन्हें पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ।