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प्राचीन मंदिर देवल के नाम पर पड़ा देवलटांड़ गांव का नाम

दिलीप कुमार, जमशेदपुर : सरायकेला-खरसावां जिले के ईचागढ प्रखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Mar 2018 07:14 PM (IST)Updated: Fri, 16 Mar 2018 07:14 PM (IST)
प्राचीन मंदिर देवल के नाम पर पड़ा देवलटांड़ गांव का नाम

दिलीप कुमार, जमशेदपुर : सरायकेला-खरसावां जिले के ईचागढ प्रखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है देवलटाड़ गांव। गांव में स्थित है प्राचीन कालीन मंदिर, जिसे ग्रामीण देवल कहते हैं। देवल के ऊपर सोने का कलश स्थापित है। मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया यह जानकारी किसी के पास नहीं है। गांव के बड़े बुजुर्ग भी मंदिर निर्माण की सही जानकारी देने में असमर्थ हैं। प्राचीन मंदिर देवल के कारण ही गांव का नाम देवलटांड पड़ा। देवलटांड़ ईचागढ प्रखंड का सबसे शिक्षित और नौकरीपेशा वाले लोगों का गांव है। देवलटांड सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। एनएच 33 से मात्र ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवलटांड जाने के लिए लोगों को आठ किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

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हजारों साल पुरानी है आदिनाथ जी की मूर्ति

मंदिर के अंदर जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर आदिनाथ की छह फीट की आदमकद मूर्ति स्थापित है। बताया जाता है कि काले रंग के पत्थर से निर्मित मूर्ति करीब दो हजार वर्ष पुरानी है। बड़े मूर्ति के साथ मंदिर के अंदर आदिनाथ जी की ही तीन अन्य छोटी-छोटी मूर्तियां भी हैं। मूर्ति के साथ उनका प्रतीक चिन्ह बैल भी है। बाद में श्रद्धालुओं ने मंदिर में संगमरमर निर्मित जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पारसनाथ जी का मूर्ति स्थापित की। मंदिर के चौखट पर प्राचीनकालीन हस्तकर्म की अद्भुत करीगरी का नजारा देखने को मिलता है। मंदिर का द्वितीय जीर्णोद्धार विक्रम संवत 2028 में कराया गया था, जो मंदिर में अंकित है। दिन पर दिन जर्जर होते मंदिर का तृतीय जीर्णोद्धार वर्ष 2014 में कराया गया। गाव के निकट ही दिघी नामक स्थान पर एक पुरातत्विक शिला है। शिला पर एक मुर्ति उल्टे अवस्था में है। अनेक वर्षो से मुर्ति और पत्थर उसी अवस्था में है। सरकार या किसी संगठन ने कभी भी इन प्राचीन धरोहरों के संरक्षण पर रुचि नहीं दिखाई है।

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सिमटता जा रहा मंदिर क्षेत्र

देवल अब करीब तीन-चार डिसमील क्षेत्र में सिमटकर रह गया है। बताया जाता है कि पहले देवल विशाल भू-भाग पर फैला था। मुख्य मंदिर से करीब आधा किलोमीटर दूर मंदिर का द्वार था। ग्रामीण बताते हैं कि अब भी कई प्राचीन शिला मुख्य द्वार के पास मिलते हैं। मंदिर के सीधे दूर तक कोई मकान नहीं है। बताया जाता है कि मंदिर के सीधे अगर कोई मकान बनाता है तो वह गिर जाता है। मकान बनाकर रहने वाले का अनिष्ट होता है।


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