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    भयंकर संक्रमण के दौर में भी गौशाला कर्मियों को छू नहीं पाया कोरोना, ये है खास वजह

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Tue, 01 Jun 2021 03:44 PM (IST)

    महानगर हो या शहर या फिर सुदूरवर्ती गांव कोरोना वायरस के संक्रमण से शायद ही कोई इलाका बचा हुआ हो। लेकिन ऐसे वक्त में भी चाकुलिया का ध्यान फाउंडेशन गौशाला कोरोना वायरस से अछूता है। तकरीबन 300 कर्मियों को वायरस छू तक नहीं पाया है।

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    गाय को गले लगाती महिला चाकुलिया गौशाला कर्मी।

    पंकज मिश्रा, चाकुलिया। मानवीय त्रासदी का ऐसा दौर जिसमें अदृश्य वायरस कोरोना अनगिनत जिंदगियां लील चुका है और यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। महानगर हो या शहर, या फिर सुदूरवर्ती गांव, कोरोना वायरस के संक्रमण से शायद ही कोई इलाका बचा हुआ हो। लेकिन ऐसे वक्त में भी चाकुलिया का ध्यान फाउंडेशन गौशाला कोरोना वायरस से अछूता है।

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    भयंकर संक्रमण के दौर में भी गौशाला में काम करने वाले तकरीबन 300 कर्मियों को वायरस छू तक नहीं पाया है। विदित हो कि चाकुलिया एरोड्रम परिसर में ध्यान फाउंडेशन संस्था द्वारा संचालित गौशाला में सीमा सुरक्षा बल द्वारा तस्करों से छुड़ाए गए करीब 9000 गोवंश रखे गए हैं। इनकी देखभाल के लिए यहां 250 से अधिक मजदूर एवं दर्जनों नियमित कर्मचारी बहाल हैं। यहां काम करने वाले महिला एवं पुरुष कर्मी आसपास के गांवों से आवागमन करते हैं। गौशाला के संचालन का दायित्व संभाल रही ध्यान फाउंडेशन कार्यकर्ता एवं पेशे से चिकित्सक डॉ शालिनी मिश्रा ने बताया कि अभी तक गौशाला का कोई भी स्टाफ कोरोना संक्रमित नहीं हुआ है।

    परिवार में संक्रमण के बाद भी महफूज

    ध्यान फाउंडेशन गौशाला में गोवंश आहार तैयार करते मजदूर।

    उन्होंने बताया कि यहां काम करने वाले श्रमिक आसपास के गांवों से प्रतिदिन पैदल या साइकिल लेकर आते हैं। दिन भर गोवंश के बीच रहकर उन्हें खाना देने, नहलाने धुलाने, गोबर व गोमूत्र की सफाई करने एवं बीमार पशुओं की सेवा करने जैसे काम करते हैं। गौशाला के अलग-अलग वार्डों में दिन भर सामूहिक रूप से काम करने के बाद शाम में घर लौट जाते हैं। किसी भी गौशाला कर्मी ने कोरोना काल में स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी अब तक नहीं बताई है। गौशाला से जुड़े कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके परिवार में संक्रमण फैला पर उन पर कोई असर नहीं हुआ।

     गाय का सानिध्य बढ़ाता है रोग प्रतिरोधक क्षमता

    गौशाला की संचालिका डॉ शालिनी मिश्रा का मानना है कि गोवंश के सानिध्य से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। यही कारण है कि विदेशों में भी अब लोग गायों को गले लगाने यानी काऊ हगिंग थेरेपी पर अमल कर रहे हैं। भारतीय मूल की देशी गाय की पीठ पर एक सूर्यकेतु नाड़ी होता है। माना जाता है कि इसमें सूर्य की उर्जा संग्रहित होती है। इसके स्पर्श से रक्तचाप, मधुमेह, थायराइड एवं कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है। प्राचीन काल से ही भारतीय परंपरा एवं संस्कृति में गोवंश का महत्व बताया गया है। इसके गोबर, गोमूत्र, दूध, दही एवं घी यानी पंचगव्य से बनने वाली औषधि रोगों के निवारण में सहायक मानी जाती हैं।

    संक्रमण नहीं होना शोध का विषय: डॉ मिश्रा

    गौशाला में काम करने वाले सैकड़ों कर्मियों में कोरोना संक्रमण नहीं खेलने के बाबत पूछने पर दारीसाई कृषि विज्ञान केंद्र के पशु चिकित्सक डॉ रविंद्र मोहन मिश्रा ने कहा कि यह वाकई शोध का विषय हो सकता है। इस बात का परीक्षण किया जा सकता है कि गौशाला में कार्यरत कर्मियों व अन्य लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में क्या फर्क है। गौशाला कर्मियों के रक्त में स्थित इम्युनोप्रोटीन व अन्य चीजों की जांच से स्थिति साफ हो सकती है। हालांकि डॉ मिश्रा ने भी माना कि आदि काल से ही गोबर और गोमूत्र को संक्रमण रोधी माना जाता है। हो सकता है इनमें एंटीवायरल गुण भी हो, जिसका फायदा गौशाला कर्मियों को मिला हो।

    गोमूत्र में है औषधीय गुण, हो चुका है पेटेंट

    ध्यान फाउंडेशन से जुड़े वैज्ञानिक डॉ वेद प्रकाश मिश्रा ने बताया कि यह बात वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित हो चुकी है कि गोमूत्र में कई प्रकार के औषधीय गुण हैं। अमेरिका में इसके पेटेंट को भी मंजूरी मिल चुकी है, जिसका पेटेंट नंबर 6896907 और 6410059 है। इसमें गोमूत्र को एक एंटी बायोटिक एंटी फंगल एवं एंटी कैंसर एजेंट के तौर पर पेटेंट किया गया है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि गोमूत्र में कोई विषैला तत्व नहीं होता बल्कि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है। यही कारण है कि अमेरिका में लोग काउ कडलिंग थेरेपी को अपना रहे हैं। गाय के समीप रहने से इंसान का मन मस्तिष्क प्रसन्न रहता है, जिससे इम्युनिटी बढ़ती है। गौशाला में काम करने वाले लोगों पर भी यही बात लागू होती है।

     

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