Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jharkhand News: कभी डायन कही जाती थी छुटनी महतो, मिला राष्ट्रपति से पद्मश्री सम्मान, जानिए क्या कहा छुटनी ने

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Wed, 10 Nov 2021 10:49 AM (IST)

    Padma Shri award पद्मश्री सम्मान पर छुटनी ने कहा कि ‘हम इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ूंगी। भारत सरकार ने हमको इस योग्य समझा यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए सख्त कानून बनाना होगा।

    Hero Image
    राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।

    जासं, जमशेदपुर/सरायकेला। कभी डायन के नाम पर जिस छुटनी महतो को भयंकर प्रताड़ना सहनी पड़ी थी, उसे नई दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री उपस्थित थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पद्मश्री सम्मान पर छुटनी ने कहा कि ‘हम इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ूंगी। भारत सरकार ने हमको इस योग्य समझा, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है, लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए सख्त कानून बनाना होगा। नीचे के अधिकारी लोग को भी शिकायत मिलने के बाद तुरंत कार्रवाई करना होगा। छुटनी ने अपनी भाषा में कहा कि मेरे जैसा औरत को प्रधानमंत्री ने इतना बड़ा सम्मान के लिए चुन लिया, इससे पता चलता है कि ‘मुदी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) का नजर चुंटी (चींटी) पर भी रहता है’।

    कोरोना की वजह से नहीं मिल सका था पुरस्कार

    ज्ञात हो कि इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 62 वर्षीय छुटनी महतो को पद्मश्री सम्मान मिलने की घोषणा हुई थी। कोरोना की वजह से  उसे यह पुरस्कार नहीं मिल सका था। पुरस्कार ग्रहण करने के लिए छुटनी सोमवार को रांची से फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली पहुंच चुकी थीं। छुटनी के साथ उनके पुत्र अतुल कुमार महतो (पारा शिक्षक), बहू अंजना महतो व आठ वर्ष की पोती भी दिल्ली गई थी। सरायकेला-खरसावां जिला स्थित गम्हरिया के बीरबांस गांव निवासी छुटनी महतो सरायकेला-खरसावां, पश्चिमी सिंहभूम व पूर्वी सिंहभूम में डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाती हैं। छुटनी के संघर्ष को गति देने वाले जमशेदपुर के समाजसेवी प्रेमचंद ने छुटनी महतो का पुनर्वास कराया था। फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के बैनर तले काम करना शुरू किया।

    कौन हैं छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी

    छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया के बीरबांस गांव की निवासी हैं। जब वह 12 वर्ष की उम्र में गम्हरिया थाना के ही महताडीह गांव में धनंजय महतो से ब्याही गई थीं। उन्हें तीन बच्चे हुए। दो सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी भजोहरि की बेटी बीमार हो गई थीं। लोगों को शक हुआ कि छुटनी ने ही कोई टोना-टोटका कर दिया है। इसके बाद गांव में पंचायत हुई, जिसमें छुटनी को डायन करार दिया गया। लोगों ने घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की। छुटनी महतो की सुंदरता अभिशाप बन गई थी। अगले दिन फिर पंचायत हुई, पांच सितंबर तक कुछ ना कुछ गांव में होता रहा। पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगाया। किसी तरह जुगाड़ कर 500 रुपये जुर्माना भी भरा, लेकिन गांव वालों का गुस्सा कम नहीं हुआ। गांववालों ने ओझा-गुणी को बुलाया, जिसने छुटनी को शौच पिलाने की कोशिश की। ग्रामीणों में अंधविश्वास था कि मानव मल पीने से डायन का असर समाप्त हो जाता है। छुटनी ने जब इसका विरोध किया तो उसके शरीर पर मल फेंक दिया गया।

    बच्चों समेत निकाल दिया था गांव से

    बच्चों समेत गांव से निकाल दिया गया। पेड़ के नीचे रात बिताई। वह विधायक चंपई सोरेन से भी मिलीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। छुटनी ने आदित्यपुर थाना में रिपोर्ट दर्ज करा दी। कुछ लोग गिरफ्तार हुए, लेकिन छूट गए। इसके बाद छुटनी की जिंदगी और भी नारकीय हो गई। अंत में वह ससुराल छोड़कर मायके बीरबांस में रहने लगीं। मायके में भी लोग उसे देखते ही डायन कहकर घर का दरवाजा बंद करने लगे। ऐसे में भाइयों ने साथ दिया। पति भी पहुंचे। इनकी मदद से वह मायके में ही घर बनाकर रहने लगीं। यहीं रहकर छुटनी ने 1995 से डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई शुरू की, जिसमें अब तक 200 से अधिक महिलाओं को प्रताड़ना से बचाकर पुनर्वास कराने में सफल रही हैं। आज भी छुटनी बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती हैं।