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    Jamshedpur News : पीठ में लोहे का हूक फंसा कर बांस के सहारे 50 फीट ऊपर लटक कर की प्रक्रिमा, इसके बाद क्या हुआ जानें

    By Jitendra SinghEdited By:
    Updated: Sun, 15 May 2022 08:16 PM (IST)

    Chadak Puja celebrated in Jamshedpur ः गांव में किसी तरह की विपदा नहीं आए इसलिए ग्रामीण पीठ में लोहे का हूक फंसाकर लटकते हैं। उनका मानना है इससे हुआ घाव बिना दवाई के सात दिन में ठीक हो जाता है।

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    Chadak Puja celebrated in Jamshedpur ः लोहे का हूक फंसाकर पचास फीट ऊपर लटका ग्रामीण।

    चांडिल(जमशेदपुर)। चौका थाना क्षेत्र के नक्शल प्रभावित गांव हेंसाकोचा में आज भी पौराणिक मान्यताओं का पालन किया जाता है। रविवार को आस्था का पर्व चड़क मनाया गया। इसमें लोग लकड़ी से पचास फीट ऊपर लटक गए। क्या चींज के सहारे लटके यह जानकार आप भी दंग रह जाएंगे। दरअसल ग्रामीण लोहे के हूक को अपने शरीर में घुसाकर उस लोहे को लकड़ी फंसा दिए थे और उसी के सहारे पचास फीट ऊपर लटके थे, और लकड़ी को घुमाया जा रहा था। आप अंदाजा लगा सकते है कि इससे कितनी दर्द होती होगी। लेकिन ग्रामीण ऐसा इसलिए करते क्योंकि उनका मानना इससे गांव में किसी तरह की आपदा नहीं आती है।

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    पीठ पर बना घाव एक सप्ताह में हो जाता है ठीक

    इस रस्म निभाने में लोगों की जान भी जा सकती थी। इस रस्म को भक्ता टांगान के नाम से जाना जाता है। जो अपने शरीर में लोहे घुसाते हुए उसे भक्ता कहते हैं। भक्ता उपवास कर शनिवार की रात को शिव पुजन कर रविवार को लोहे का हूक भोंकवाकर आसमान पर लकड़ी के सहारे झुलते और लकड़ी को घुमाया भी जाता है। प्राचीन काल से चली आ रही इस तरह की रिवाज आज भी हेंसाकोचा के ग्रामीणों ने अनोखा अंदाज मे भक्ति का परिचय देते हैं। ग्रामीणों ने बताया इससे पीठ में हुआ घाव बिना दवाई एक सप्ताह में ठीक हो जाता है। ग्रामीणों ने कहा- ऐसा करने से गांव मे किसी तरह का आपदा व संकट नहीं आती। इससे सभी तरह के बीमारी व परेशानी से लोग मुक्त हो जाते हैं।

    भोक्तागणों के परिजन रहते उपवास में

    आस-पास गांव के सैकड़ों लोग आस्था के इस पर्व को देखने के लिए पहुंचे थे। सबसे पहले भोक्ताजनों को पास के तालाब ले जाया गया तथा वहां पर शिव भक्तों के इच्छानुसार पिठ, बॉह, पैर, जीभ, गर्दन, आदि शरीर के अंगो में किल घुसाया जाता है। उसके पश्चात पूजा अर्चना करने के बाद उसे एक एक करके खम्भे के ऊपर चढ़ाया गया। फिर उसे भक्तगणों के द्वारा उसे खम्भे में बांधकर उसे परिक्रमा करवाया जाता है। खम्भे के पास जमीन में भोक्तागणों के परिवार के महिला सदस्य उपवास करके खड़ी रहती है।