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    जमशेदपुर में पहली बार केज कल्चर तकनीक से मछली पालन शुरू, जानिए क्या है इसके फायदे

    Updated: Mon, 28 Jul 2025 08:27 PM (IST)

    गम्हरिया के सीतारामपुर जलाशय में धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत केज कल्चर तकनीक से मछली पालन शुरू किया गया है। इस योजना में 8 लाभुकों को 32 केज यूनिट दिए गए हैं जिसका उद्देश्य जनजातीय समुदाय को सशक्त बनाना है। इससे मछली उत्पादन में वृद्धि होगी और स्थानीय लोगों की आजीविका में सुधार आएगा। इस पहल से जल संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित होगा।

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    सीतारामपुर डैम में मछली का जीरा डालने पहुंचे मत्स्य पालक। (जागरण)

    संवाद सहयोगी, गम्हरिया। जिले के गम्हरिया अंचल में लगभग 70 हेक्टेयर जल क्षेत्र में फैले सीतारामपुर जलाशय में वित्तीय वर्ष 2024-25 में 'धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान योजना' के अंतर्गत पहली बार वैज्ञानिक केज कल्चर तकनीक से मछली पालन की शुरुआत की गई है।

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    इस योजना के तहत कुल 8 लाभुकों को 32 केज यूनिट उपलब्ध कराए गए हैं। यह योजना विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के आजीविका सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।

    इस योजना का मुख्य उद्देश्य मछली उत्पादन और उत्पादकता में गुणात्मक वृद्धि करना है, जिसके लिए तकनीकी मार्गदर्शन, आधारभूत संरचना का विकास और मात्स्यिकी प्रबंधन को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया गया है।

    योजना के अंतर्गत प्रत्येक इकाई की कुल लागत का 90 प्रतिशत भाग अनुदान स्वरूप (60% केंद्रांश 30% राज्यांश) तथा शेष 10 प्रतिशत लाभुक अंशदान स्वरूप वहन करते हैं। यह योजना लाभुक आधारित एवं समुदाय सहभागिता पर आधारित है।

    नाव से डैम के पानी मे जीरा डालते मत्स्य पालक।

    सीतारामपुर जलाशय में कार्यरत सीतारामपुर मत्स्यजीवी सहयोग समिति के माध्यम से इस योजना को कार्यान्वित किया गया है। जलाशय में निर्मित फ्लोटिंग केज यूनिट विशेष तकनीक से तैयार किए गए हैं, जिसमें प्रत्येक यूनिट में चार घेरे होते हैं।

    प्रत्येक घेरा 7x5x5 मीटर माप का होता है, जो जीआई पाइप और मजबूत जाल से बना होता है। यह संरचना इतनी सुदृढ़ होती है कि कछुआ या अन्य जलीय जीव इसे काट नहीं सकते हैं।

    केजों में वैज्ञानिक पद्धति से चयनित अंगुलिकाएं डाली जाती हैं और उन्हें प्रतिदिन संतुलित आहार दिया जाता है। मछलियों के स्वस्थ्य विकास के लिए पानी की गुणवत्ता की नियमित निगरानी की जाती है।

    पूर्व से संचालित गतिविधियां

    सीतारामपुर जलाशय में पूर्व से रिवराइन फिश फार्मिंग, मछली-सह बत्तख पालन, गिल नेट के माध्यम से शिकारमाही, परंपरागत नाव योजना तथा जलाशय में निर्मित छाड़न जैसे कई प्रयास किए जाते रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिक केज कल्चर तकनीक के आने से उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

    जलाशय में मत्स्य अंगुलिकाओं के बेहतर संचयन एवं जलाशय में उनके विलय से मछली उत्पादन में 8 से 10 गुना तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

    संवर्धन एवं विपणन व्यवस्था

    मछली उत्पादनों के विपणन को आसान एवं सुलभ बनाने के लिए समिति को झास्कोफिश के सहयोग से कार्यालय शेड एवं आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं।

    बर्तन में रखा मछली का जीरा। (जागरण)

    इसके अतिरिक्त 90 प्रतिशत अनुदान पर समिति को 2 दुपहिया वाहन एवं 2 तीनपहिया वाहन, आइस बॉक्स की सुविधा के साथ उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि मछलियों के परिवहन एवं बिक्री में किसी प्रकार की कठिनाई न हो।

    परिणाम एवं प्रभाव

    इस योजना के सफल क्रियान्वयन से स्थानीय जनजातीय परिवारों को एक स्थायी और सम्मानजनक आजीविका का साधन प्राप्त हुआ है। मछली उत्पादन में गुणात्मक वृद्धि ने उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    यह पहल उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रही है। सीतारामपुर जलाशय में पहली बार केज पद्धति से प्रारंभ किया गया मछली पालन न केवल मछली उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि जनजातीय समुदाय को आजीविका के स्थायी साधन के रूप में सशक्त भी कर रहा है।

    यह योजना जल संसाधनों के सतत एवं वैज्ञानिक उपयोग, तकनीकी समावेशन और समुदाय आधारित विकास का एक अनुकरणीय उदाहरण है। इसके माध्यम से भविष्य में न केवल मत्स्य उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि जल पर्यटन के नए अवसर भी सृजित होंगे।

    गौरतलब है कि यह जलाशय खरकई नदी की सहायक नदियों पर निर्मित है, जिसका निर्माण कार्य वर्ष 1960 में सिंचाई विभाग द्वारा प्रारंभ किया गया था और वर्ष 1963 से जल संग्रहण का कार्य आरंभ हुआ।

    जलाशय निर्माण के उपरांत इसके जलग्रहण क्षेत्र से लगे लगभग 10 गांवों के 1300 परिवारों का विस्थापन हुआ। विस्थापित परिवार मुख्य रूप से खेती पर निर्भर थे जो जलाशय के कारण अपनी आजीविका से वंचित हो गए।

    वर्ष 2007 से इन परिवारों को आजीविकोपार्जन हेतु मत्स्य पालन से जोड़ा गया। शुरुआत में केवल परंपरागत शिकारमाही की जाती थी तथा जलाशय में भारतीय मेजर कार्प और ग्रास कार्प जैसी मछलियों के अंगुलिकाओं का संचयन किया जाता था।

    वैज्ञानिक केज कल्चर तकनीक से मछली पालन की शुरुआत किए जाने से स्थानीय मत्स्य पालकों के आय में वृद्धि होने के साथ साथ उनका जीवनस्तर में भी सुधार होगा।