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स्‍टील सिटी जमशेदपुर के इन कलाकारों ने बॉलीवुड में बनाया एक नया मुकाम

जमशेदपुर के एक सितारे ने तो बंबइया (मुंबई) फिल्मों में तब धमाकेदार इंट्री मारी थी, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं करता था। 1960-70 के दशक में खलनायक मनमोहन बॉलीवुड में छा गए थे।

By Edited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 01:54 AM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 04:44 PM (IST)
स्‍टील सिटी जमशेदपुर के इन कलाकारों ने बॉलीवुड में बनाया एक नया मुकाम
स्‍टील सिटी जमशेदपुर के इन कलाकारों ने बॉलीवुड में बनाया एक नया मुकाम

जमशेदपुर [वीरेंद्र ओझा]। बॉलीवुड में आज देश के कई छोटे शहरों से बड़े-बड़े सितारे अपनी चमक बिखेर रहे हैं, जिसमें अपनी लौहनगरी भी शामिल है। यहां के एक सितारे ने तो बंबइया (मुंबई) फिल्मों में तब धमाकेदार इंट्री मारी थी, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं करता था। 1960-70 के दशक में खलनायक मनमोहन बॉलीवुड में छा गए थे। शहीद, गुमनाम, हमजोली, आराधना आदि सुपरहिट फिल्मों से मनमोहन ने न केवल खलनायकी का सिक्का जमाया, बल्कि कुछ खास सीन के लिए निर्माता-निर्देशकों की पहली पसंद बन चुके थे।

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मनमोहन ने दिलाई थी विनोद खन्‍ना को बॉलीवुड में एंट्री 
मुंबई में उनके करीबी दोस्तों में धर्मेंद्र, जीतेंद्र, संजीव कुमार, राजेश खन्ना व सुजीत कुमार थे। विनोद खन्ना को उन्होंने ही फिल्मों में इंट्री दिलाई थी। लौहनगरी में जन्मे व पले-बढ़े मनमोहन ने अंतिम सांस भी यहीं ली। लीवर सिरोसिस बीमारी से ग्रस्त होने के बाद मृत्यु से दो साल पहले उन्होंने मुंबई को अलविदा कह दिया था। महीनों टीएमएच में भर्ती रहे। उनका अंतिम संस्कार बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट पर हुआ। मनमोहन को शुरू से ही फिल्मों में काम करने का शौक था। यह अवसर उन्हें 1950 में मिला। साकची आमबगान मैदान में उस वक्त के मशहूर हास्य कलाकार मारुति, मुकरी व टुनटुन का कार्यक्रम होना था। टिस्को होटल (चमरिया गेस्ट हाउस) में ठहरे इन कलाकारों की मनमोहन ने इतनी आवभगत की कि उनके दिल में जगह बना ली। दूसरे दिन वे उन्हें अपनी कार से लेकर मुंबई चले गए।

शहीद में बने थे चंद्रशेखर मनमोहन 
मुंबई में इन्हें संगीतकार शंकर-जयकिशन के जयकिशन ने केवल कश्यप से मिलाया, जो उन दिनों 'शहीद' बना रहे थे। मनमोहन ने शहीद में चंद्रशेखर आजाद का किरदार निभाकर दर्शकों के साथ-साथ निर्माता-निर्देशकों के दिल में जगह बना ली। मनमोहन ने 'शहीद' में पैसा भी लगाया। इसके बाद एनएन सिप्पी की फिल्म 'गुमनाम' मिली तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। मनमोहन की लगभग 71 फिल्में प्रदर्शित हुई, जिसमें रेलवे प्लेटफार्म, आग, उपकार, औलाद, हीरा पन्ना, जुगनू, लोफर, अनहोनी, रोटी कपड़ा और मकान, आंधी, कोतवाल साब, हत्यारा, सरकारी मेहमान आदि प्रमुख थीं। मनोज कुमार की लगभग हर फिल्म में अभिनय करने वाले मनमोहन की अंतिम फिल्म 'क्रांति' रही। हालांकि, उनका निधन इस फिल्म के रिलीज होने से कई साल पहले अगस्त 1979 में हो गया। आज बॉलीवुड में मनमोहन के इकलौते पुत्र नितिन मनमोहन बतौर निर्माता अपने पिता की यादों को संजोए हुए हैं। कांट्रैक्टर्स एरिया बिष्टुपुर में उनका पुश्तैनी मकान है, जिसमें उनके भाइयों का परिवार रहता है। 

फिल्म निर्देशक अभिषेक को शुरू से थी फिल्म बनाने की ललक 
'शरारत' से हुआ फिल्मी करियर का आगाज फिल्म 'इश्किया' से सफल निर्देशक के रूप में पहचान बनाने वाले अभिषेक चौबे को बचपन से ही फिल्म बनाने की ललक थी। पिता आनंद मोहन चौबे व माता शीला चौबे बताते हैं कि बचपन से ही सोनू (घरेलू नाम) फिल्में देखता था, तो कहता था कि एक दिन वह इससे भी बढि़या फिल्म बनाएगा। इसी क्रम में जब उसने दिल्ली के हिंदू कालेज से अंग्रेजी आनर्स के साथ डिग्री हासिल कर ली, तो भविष्य के बारे में विचार-विमर्श कर रहा था। कभी वह आईएएस-आईपीएस की बात सोच रहा था, तो पिता के समान बैंक अधिकारी की बात। बाप-बेटे के बीच विचार-मंथन चल रहा था, उसी समय पिता ने कहा-तुम तो फिल्में बनाने की बात कह रहे थे? इस पर अभिषेक ने चहकते हुए कहा-तो आप इसकी अनुमति दे रहे हैं? उनके हां कहते हुए अभिषेक ने निर्णय सुना दिया कि अब वह फिल्म निर्देशक बनकर ही रहेगा।

इसके बाद उसने मुंबई के सेंट जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन में दाखिला लिया और एक वर्ष का फिल्म एंड टेलीविजन प्रोडक्शन में डिप्लोमा भी कर लिया। यह 1999 की बात है। पढ़ाई पूरी होने से पहले ही निर्देशक गुरुदेव भल्ला ने इन्हें अपनी पहली फिल्म 'शरारत' में एसोसिएट डायरेक्टर के रूप में ले लिया। हालांकि अभिषेक बच्चन अभिनीत यह फिल्म अच्छा कारोबार नहीं कर सकी, लेकिन इससे फिल्म निर्देशक के रूप में अभिषेक के फिल्मी करियर का आगाज हो गया था। उसी दौरान फिल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज जब 'मकड़ी' की योजना बना रहे थे, तो वे भी किसी अच्छे एसोसिएट डायरेक्टर की तलाश में थे। इसी क्रम में उन्हें किसी ने अभिषेक का नाम सुझाया। फिल्म सुपरहिट रही, तो फिल्म फेयर समेत कई अवार्ड भी मिले। फिर क्या था विशाल ने अभिषेक को अपने लिए लकी मान लिया। 2001 में मकड़ी रिलीज हुई, तो इसके बाद विशाल ने 2004 में 'मकबूल' में भी अभिषेक को बतौर एसोसिएट डायरेक्टर रखा। 2004 में जब 'ब्लू अम्ब्रेला' बनाई, तो उसमें अभिषेक को एसोसिएट डायरेक्टर के साथ स्क्रिप्ट राइटर की जिम्मेदारी भी दी।

इसमें भी जब विशाल उसके काम से संतुष्ट हुए, तो 2006 में 'ओंकारा' में भी अभिषेक को यही दोनों जिम्मेदारी दी। यह फिल्म भी हिट रही, तो 2009 में विशाल ने 'कमीने' में अभिषेक को सिर्फ पटकथा लिखने की जिम्मेदारी सौंपी। इसे विशाल की सहृदयता कहें या भरोसा, क्योंकि जब 2010 में जब 'इश्किया' बनाने की बात हुई तो विशाल ने अभिषेक को इस फिल्म का स्वतंत्र निर्देशन करने की छूट दी और खुद निर्माता बनने का फैसला किया। यह फिल्म सुपरहिट हुई। इसके बाद अभिषेक ने 'डेढ़ इश्किया' भी बनाई। अभिषेक का जन्म 30 मार्च 1978 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के छोटे से कस्बे नियांवा में हुआ। फिलहाल अभिषेक के माता-पिता मानगो के आशियाना एनक्लेव स्थित आवास में रहते हैं।

इम्तियाज को बचपन में ही हो गई थी फिल्मों से दोस्ती
फिल्म 'सोचा न था', 'जब वी मेट', 'लव आजकल', 'रॉकस्टार', 'हाइवे', 'तमाशा', जैसी बेहतरीन व हिट फिल्मों से बॉलीवुड में स्थापित होने वाले निर्देशक इम्तियाज अली को बचपन में ही फिल्मों से दोस्ती हो गई थी। सोनारी के सत्यम एनक्लेव स्थित आवास पर पिता मंसूर अली बताते हैं कि दरअसल, शुरुआती दौर में वे लोग करीम टाकीज परिसर में ही रहते थे। लिहाजा, इम्तियाज को जब जी में आता, हॉल में चला जाता। वैसे भी छत या बालकनी से शो के समय दर्शकों की भीड़ देखना उसे अच्छा लगता था। 70 के दशक में सिनेमाहॉल का क्रेज भी परवान था। जब जनाब बड़े हुए तो स्कूल, फिर कालेज में ड्रामा-नाटक करते। अभिनय का बहुत शौक था। मंसूर बताते हैं कि शायद उन दिनों का उसके दिमाग पर असर हुआ। हां, उसकी परवरिश भी नाना के घर हुई, उसके नाना हमीद हसन नामी वकील थे।

वे अच्छे लेखक भी थे, शायद इसीलिए इम्तियाज का झुकाव साहित्य की ओर भी गया। उड़ीसा सरकार की जल परियोजनाओं के सलाहकार मंसूर अली बताते हैं कि इम्तियाज का जन्म 16 जून 1971 को जमशेदपुर के टाटा मेन अस्पताल में हुआ, लेकिन उसकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई रांची के सेंट मेरीज, फिर जमशेदपुर के लोयला, पटना के सेंट माइकल और फिर जमशेदपुर के डीबीएमएस में हुई। डीबीएमएस से ही उसने प्लस टू किया। उन दिनों वे एक इरिगेशन प्रोजेक्ट की कंपनी में नौकरी करते थे, लिहाजा तबादले की वजह से इन जगहों पर रहे। इम्तियाज के फिल्म निर्देशक बनने तक के सफर में दिल्ली का हिंदू कालेज अहम पड़ाव रहा। पिता बताते हैं कि उनकी इच्छा थी कि वह बेटे को डाक्टर बनाएं, लेकिन उसे लिटरेचर का शौक था। दाखिले के समय उसने मुझे इस कदर बेबस कर दिया कि मैंने बात मान ली और अंग्रेजी आनर्स में दाखिला करा दिया।

वहां उसके लोकल गार्जियन एआर किदवई थे, जो बिहार के राज्यपाल और यूपीएससी के चेयरमैन भी रहे। मुझे एक दिन उनका फोन आया कि आपका बेटा तो क्लास ही नहीं करता। मैं चौंका, अफसोस भी हुआ और चिंता भी। लेकिन जब प्रिंसिपल से बात की, तो शक दूर हुआ और दिल को तसल्ली मिली। दरअसल वह उनकी अनुमति से ही ड्रामा-नाटक में ज्यादा मशगूल हो गया था। उसने दिल्ली में भी हबीब तनवीर का ग्रुप ज्वाइन कर लिया था। हिंदू कालेज में भी ड्रामेटिक सोसाइटी को जिंदा किया और नाटक करने लगे। वहां से छुट्टियों में जमशेदपुर आते, तो यहां भी ड्रामा-नाटक करते। लेकिन अंत उससे भी ज्यादा चौंकाने वाला था, इम्तियाज ने इंग्लिश आनर्स में दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया।

टीवी सीरियल से हुई शुरुआत 
स्नातक के बाद 1991-92 में इम्तियाज ने मुंबई के सेंट जेवियर कालेज ऑफ मास कम्यूनिकेशन में दाखिला लिया। वहां फिल्म एंड टीवी प्रोडक्शन में डिप्लोमा करने के बाद जी टीवी में छोटी सी नौकरी की। इसी दौरान क्रेस्ट कम्यूनिकेशन में टीवी सीरियल के सब एडिटर व स्टोरी राइटर बने जिसमें पुरुषक्षेत्र, इम्तिहान, एक्सजोन, स्टार बेस्ट सेलर्स, नैना आदि धारावाहिक में पटकथा लेखन व निर्देशन किया। इसके बाद स्वतंत्र रूप से लेखन-निर्देशन करने लगे। इसी क्रम में 2003 में 'सोचा न था' मिली, जिसमें सनी देओल व धर्मेद्र ने अभय देओल को लांच किया। हालांकि कई दूसरी वजहों से यह फिल्म नहीं चली, लेकिन उम्मीद के विपरीत इस फिल्म ने घाटे का सौदा नहीं किया। यही नहीं, इसी फिल्म से सफल निर्देशक की मुहर भी लग गई। इसके बाद 'जब वी मेट' और 'लव आजकल' ने तो कामयाबी के झंडे ही गाड़ दिए। इम्तियाज के दो छोटे भाई भी फिल्म निर्देशक बनने की राह पर हैं। मंझले आरिफ अली व सबसे छोटे साजिद अली भी निर्देशन के क्षेत्र में कामयाबी की ओर बढ़ रहे हैं। साजिद ने लंदन से मास कॉम में डायरेक्शन का कोर्स किया है।

पा‌र्श्वगायिका : शिल्पा राव
टेल्को के घोड़ाबांधा निवासी शिल्पा राव का जन्म 11 अप्रैल 1984 को जमशेदपुर (झारखंड) में हुआ। पिता एस. वेंकट राव (एमटेक, मेकेनिकल) टाटा मोटर्स में डिजाइन इंजीनियर थे, लिहाजा शुरू से टेल्को कालोनी में ही रहे। शिल्पा ने दसवीं तक की पढ़ाई लिटिल फ्लावर स्कूल टेल्को और प्लस टू लोयोला से किया। स्कूल में इनका नाम अपेक्षा है, जबकि शिल्पा पुकार का नाम। आगे की पढ़ाई मुंबई में की, जहां से मैथेमेटिक्स में बीएससी आनर्स, फिर बंबई विश्वविद्यालय से मैथ में पीजी की। इनके पिता भी संगीत में रुचि रखते थे, उन्होंने म्यूजिक में एमए भी किया है। इसलिए शुरुआत में संगीत गुरु पिता ही रहे। इस बीच टेल्को में होने वाले संगम कला ग्रुप की प्रतियोगिता से जुड़ी, तो दिल्ली के फाइनल राउंड तक पहुंच गई। हौसला बुलंद हुआ, तो करियर बनाने के लिए हम मुंबई गए। पिताजी ने जाने-माने गायक हरिहरन से संपर्क किया, ताकि उनकी शागिर्द बन सकें।

शुरू में वे हिचकिचाए, लेकिन बाद में जब उन्होंने मुझसे कुछ गाने सुने तो सिखाने के लिए तैयार हो गए। फिर क्या था, चार-पांच साल तक हरिहरन से सीखा। इसी बीच हरिहरन के गुरु गुलाम मुस्तफा खान से भी शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखती रही। 1997 में मुझे कई 'एड जिंगल्स' में गाने का अवसर मिला, उससे मुझे ख्याति तो ज्यादा नहीं मिली, लेकिन रिकार्डिग टेक्निक के बारे में काफी कुछ सीखा। सइयां रे. से मिला ब्रेक जब शिल्पा फिल्मों में गाने लायक हो गई, तो संयोगवश 2006 में फिल्म 'सलामे इश्क' में शंकर महादेवन के साथ 'सइयां रे सइयां रे..' गाने का मौका मिला। यह गाना काफी लोकप्रिय भी हुआ और बॉलीवुड में इनकी आवाज को पसंद किया गया। इसके बाद फिल्म 'अनवर' में 'तोसे नैना लागे रे..', 'ट्रेन' में 'वो अजनबी..', इसके बाद 'आमिर', 'देव डी', फिर बिग बी अमिताभ बच्चन की फिल्म 'पा' के टाइटल सांग 'उड़ी-उड़ी..' से मैं शिखर पर पहुंच गई।

आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन सच है कि जब यह गाना रिकार्ड कर चुकी थी, तब तक शिल्पा को नहीं पता था कि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन लीड रोल कर रहे हैं। फिल्म रिलीज होने से कुछ दिन पहले मालूम हुआ, तो इनकी खुशी का ठिकाना न रहा। इसके बाद 'लफंगे-परिंदे' में 'नैन प¨रदे..' और प्रियंका चोपड़ा-रणबीर कपूर की ताजातरीन फिल्म 'अनजाना-अनजानी' में 'टाइटल सांग' के अलावा 'आई फील गुड..' गाया। फिलहाल निर्देशक सुधीर मिश्रा की फिल्म 'ये साली जिंदगी' रिलीज होने वाली है, जिसमें मैंने दो सोलो गाने टाइटल सांग 'ये साली जिंदगी..' और 'दिल दर बदर..' के अलावा राशिद अली के साथ ड्यूट गाया है। राशिद मशहूर सितारवादक निशाद खान के पुत्र हैं। इंडिया गेट पर 'वैष्णव जन तो..' फिल्मी गानों से इन्हें ख्याति तो मिली ही, लेकिन सबसे ज्यादा तब मिली, जब इंडिया गेट पर गांधीजी का प्रिय भजन 'वैष्णव जन तेने कहिए रे..' गाया।

मुंबई हादसे की बरसी पर 29 नवंबर 2009 को आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन शाहरुख खान कर रहे थे, जबकि इस मौके पर राहुल गांधी, तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम, दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के अलावा गीतकार जावेद अख्तर, कविता कृष्णमूर्ति समेत कई फिल्मी व राजनीतिक हस्तियां मौजूद थीं। कविता कृष्णमूर्ति ने इन्हें 'ढोल यारा ढोल..' के लिए बधाई भी दी। शिल्पा ने हिंदी फिल्मों में तो खूब गाने गाए, तेलुगू और तमिल फिल्मों में भी गाए। शंकर एहसान लॉय के संगीत निर्देशन में तेलुगू फिल्म 'कुंचम इष्टम-कुंचम कष्टम' (2009) में एक गाना गाने का मौका मिला। इसके लिए मुझे रेडियो मिर्ची से 2010 में दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ पाश्‌र्र्वगायिका का अवार्ड मिला। इसके बाद संगीत निर्देशक इलिया राजा के बेटे युवान शंकर के संगीत निर्देशन में बनी एक तमिल फिल्म में एक गाना गाने का मौका मिला। हालांकि इन्हें तमिल पढ़ना नहीं आता, इसलिए गानों के बोल हिंदी में लिखकर दिए गए थे। इनकी माता आर. श्यामला 2010 में झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड से सेवानिवृत्त हुई थीं। वह बिष्टुपुर स्थित विद्युत महाप्रबंधक कार्यालय में सहायक पद पर थी।

संगीत निर्देशक : मणिशंकर
अस्सी के दशक तक बॉलीवुड में जो फिल्में बनती थीं, उसके हर पहलू में गहराई और गंभीरता दिखती थी। आज ना तो सुपर हिट फिल्म लोगों को याद रहती है, ना सुपरहिट गाने। इसकी मुख्य वजह है नई पीढ़ी। इंग्लिश मीडियम से पढ़कर निकले युवाओं को टारगेट करके फिल्में बन रही हैं, जो हॉलीवुड की नकल जैसी होती हैं। चूंकि नई पीढ़ी को गूढ़ ¨हदी समझने में परेशानी होती है, इसलिए गानों के बोल भी ¨हगलिश हो गए हैं। यदि पढ़कर कोई ना समझाए तो गानों के बोल भी समझ में नहीं आते। हालांकि आज भी वही गाने हिट होते हैं जिसके शब्द अच्छे हों और संगीत की धुन व कंपोजिशन बढि़या हो। ये बातें शहर में जन्मे व पले-बढ़े मणिशंकर ने कहीं। बॉलीवुड में लंबे समय से संघर्षरत संगीत निर्देशक मणिशंकर ने वैसे तो आशुतोष राणा अभिनीत 'शबनम मौसी' व 'मिस अनारा' में भी संगीत दिया था, लेकिन इसके बाद 'ऑशम-मौसम' रिलीज हुई, जिसमें नए कलाकारों के साथ आशुतोष राणा, विजय राज (कौवा बिरयानी फेम) व मुकेश तिवारी ने अभिनय किया है।

इनके गानों को सोनू निगम व लुटेरे फेम सोनाली ठाकुर ने आवाज दी है। दूसरी फिल्म 'सबक' है जिसमें मुख्य भूमिका विनय पाठक ने निभाई है, जबकि सुखविंदर सिंह, केके व सोनाली ठाकुर ने इसके गाने गाए हैं। साकची के तिरना रोड स्थित आवास पर मणिशंकर तिवारी ने बताया कि इसके अलावा उन्होंने तीन भोजपुरी फिल्म 'शादी-ब्याह', 'निहत्था' और 'सावन की कजरी' में संगीत निर्देशन किया है, जबकि महुआ चैनल पर प्रसारित निर्देशक अश्रि्वनी धीर के धारावाहिक 'मिस्टर जुगाड़ू लाल' के पूरे 84 एपिसोड में भी संगीत दिया था।

अभिनेता-निर्देशक : प्रभात भट्टाचार्य
चाईबासा के मूल निवासी प्रभात भट्टाचार्य अब तक धारावाहिकों में अपने अभिनय से पहचाने जाते थे, लेकिन अब वे बतौर निर्देशक जाने जाएंगे। प्रभात फीचर फिल्म 'कानू' बना रहे हैं, जिसमें अनुपम खेर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म लगभग पूरी हो चुकी है। इसकी शूटिंग जमशेदपुर के एनएच-33, दलमा, घाटशिला के अलावा रांची व इसके आसपास भी हुई। फिल्म में मुख्य भूमिका 'कानू डे' की भूमिका खुद निभा रहे हैं, जबकि अनुपम खेर दूसरे मुख्य कलाकार होंगे। इसमें मुख्य अभिनेत्री सुजाना मुखर्जी ('फिल्म बदमाशिया' फेम) के अलावा स्मिता जयकर भी हैं।

गौरांगो फिल्मक्राफ्ट एकेडमी द्वारा निर्मित यह फिल्म घाटशिला फुटबाल क्लब पर आधारित है, जिसके वे कैप्टन बने हैं। प्रभात का बचपन चाईबासा के टुंगरी मोहल्ला में बीता। 17 वर्ष की उम्र में मुंबई चले गए, जहां करीब 20 साल से रह रहे हैं। उन्होंने कई धारावाहिकों में अभिनय किया, जिसमें 'कहानी घर-घर की', 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी', 'देवों के देव महादेव' व 'पवित्र रिश्ता' प्रमुख रही। प्रभात ने वर्ष 2003 में कीनन स्टेडियम में 'अनु मलिक नाइट' का आयोजन कराया था, जिसमें संगीतकार-गायक अनु मलिक के अलावा कश्मीरा शाह व श्वेता प्रसाद समेत बॉलीवुड के कई कलाकारों ने प्रस्तुति दी थी।

अभिनेत्री : तनुश्री दत्ता
'फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स-2004' से ग्लैमर की क्षितिज पर पहुंचीं तनुश्री दत्ता आज बॉलीवुड में पहचान बना चुकी हैं। झारखंड सरकार ने तनुश्री के सम्मान में 2005 में पोस्टकार्ड व डाक टिकट निकाला था। तनुश्री, जो अपने परिवार और सहेलियों के बीच चुमकी के नाम से पुकारी जाती हैं, का जन्म 19 मार्च 1984 को टीएमएच में हुआ था। तनु की स्कूली शिक्षा भी कदमा स्थित डीबीएमएस इंग्लिश हाईस्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से स्नातक किया। इसी दौरान तनुश्री को पुणे में आयोजित फैशन शो में भाग लेने का मौका मिला, तो हौसला बढ़ता गया। फेमिना मिस इंडिया-2004 में भी भाग लेने का मौका भी पुणे में पढ़ाई के दौरान ही मिला। ग्लैमर की दुनिया में तनुश्री का मार्ग इस उपलब्धि के साथ प्रशस्त हो गया। 2005 में उन्हें बॉलीवुड की दो फिल्मों में एक साथ अभिनय करने का मौका मिला।

पहली साइन की हुई फिल्म 'चाकलेट' थी जिसमें हीरो अनिल कपूर थे, जबकि दूसरी फिल्म 'आशिक बनाया आपने' में चर्चित हीरो इमरान हाशमी की हीरोइन बनीं। यह अलग बात है कि चाकलेट बाद में रिलीज हुई। दोनों फिल्मों की बॉलीवुड और उनके प्रशंसकों में चर्चा का विषय बन गई। इसके बाद तनुश्री ने 2006 में '36 चाइना टाउन' और 'भागमभाग' किया, तो 2007 में 'रिस्क', 'गुड ब्वाय बैड ब्वाय', 'रकीब', 'ढोल' व 'स्पीड' रही। 2008 में 'सास बहू और सेंसेक्स', 2009 में 'रामा : दे सेवियर' व 'अपार्टमेंट' और 2010 में तमिल फिल्म 'थीरडा विलयत्तु पिल्लई' और ¨हदी की 'रोक्क' में मुख्य भूमिका निभाई। उनके पिता तपन दत्ता जमशेदपुर में ही जीवन बीमा निगम के विकास अधिकारी थे, जो स्वैच्छिक अवकाश लेकर अपनी बेटी व पत्‍‌नी के साथ मुंबई में रह रहे हैं।

कोरियोग्राफर : यश रेड्डी
'राउडी राठौर', 'एबीसीडी', 'आर.. राजकुमार' व 'जय हो' के बाद शहर के यश रेड्डी ने फिल्म 'एक्शन जैक्शन' में कोरियोग्राफी का हुनर दिखाया है। यश ने फिल्म के टाइटल सांग में स्वतंत्र रूप से नृत्य निर्देशन किया है, तो बाकी गानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गोलमुरी के नामदा बस्ती निवासी यश की पढ़ाई- लिखाई शहर के टिनप्लेट आंध्रा स्कूल व जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज से हुई। शुरुआती दौर में शहर के 'बुगी-वुगी' जैसे कार्यक्रम में अपना जलवा दिखाने वाले यश 2005 में प्रभु देवा के शागिर्द बने थे।

अभिनेत्री (दिवंगत) : प्रत्युषा बनर्जी
बालिका वधू से घर-घर में छा गई थी प्रत्युषा तनुश्री दत्ता के बाद लौहनगरी से मुंबई में पहचान बनाने वाली प्रत्युषा बनर्जी को फिल्मों में तो बड़ा ब्रेक नहीं मिला, लेकिन वह धारावाहिक 'बालिका वधू' में आनंदी बनकर घर-घर में छा गई थी। 10 अगस्त 1991 को शहर में जन्मी प्रत्युषा रियलिटी शो 'झलक दिखला जा' सीजन-5 व 'बिग बॉस' के सीजन-7 की प्रतिभागी भी रही थीं। इसके अलावा उन्होंने 'ससुराल सिमर का', 'हम हैं ना', 'कॉमेडी क्लासेज', 'आहट' व 'सावधान इंडिया' में भी अभिनय का जलवा दिखाया था। मुंबई में स्थापित होने के बाद सोनारी के आशियाना गार्डेन निवासी इनके पिता शकर बनर्जी व मां सौम्या बनर्जी भी पुत्री के साथ मुंबई में रहने लगे। महज 24 वर्ष की उम्र में एक अप्रैल 2016 को मुंबई में प्रत्युषा की अस्वाभाविक मौत हो गई। शहर में इनके फैन प्रतिवर्ष प्रत्युषा की बरसी मनाते हैं।

प्रियंका चोपड़ा
बॉलीवुड से हॉलीवुड तक अभिनय का परचम फहराने वाली बॉलीवुड की चुनिंदा अभिनेत्रियों में प्रियंका चोपड़ा का नाम आता है। प्रियंका का जन्म 18 जुलाई 1982 जमशेदपुर के टीएमएच (टाटा मुख्य अस्पताल) में हुआ था। हालांकि उनके माता-पिता बरेली में रहते थे, लेकिन प्रियंका शैशवास्था में करीब चार वर्ष तक जमशेदपुर में रहीं। उनके नाना डॉ. एमके अखौरी ना केवल टीएमएच के सर्जन थे, बल्कि मजदूर नेता के रूप में भी लोकप्रिय हुए। वर्ष 2000 में मिस व‌र्ल्ड बनने के बाद प्रियंका का फिल्मी सफर शुरू हुआ। उन्होंने फिल्म 'क्रिश' और 'डॉन' में अभिनीत भूमिकाओं के साथ हिंदी सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में खुद को स्थापित किया था। उनकी बहन परिणीति चोपड़ा ने भी बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में खुद का स्थापित किया।

अभिनेत्री : इशिता दत्ता
अभिनेत्री तनुश्री दत्ता की छोटी बहन इशिता दत्ता ने भी खुद को बॉलीवुड में स्थापित कर लिया है। उनकी सबसे हिट फिल्म 'दृश्यम' रही, जिसमें अजय देवगन की बेटी का किरदार निभाया। 28 अगस्त 1990 को जमशेदपुर में जन्मी इशिता मॉडल व एंकर के रूप में भी पहचान रखती हैं। इशिता पहले निर्देशक बनना चाहती थीं, जिसके लिए उन्होंने निर्देशन का कोर्स भी किया था। लेकिन बाद में अभिनय को कॅरियर बनाया। इशिता ने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत 2012 में तेलुगू फिल्म 'चाणक्युडु' से की थी। संयोगवश इशिता की फिल्म 'दृश्यम' इस बार 'जागरण फिल्म फेस्टिवल' में दिखाई जा रही है। इससे पहले इशिता ने कन्नड़ फिल्म 'येलिदु मंसाली' और 'राजा राजेंद्र' के साथ ¨हदी धारावाहिक 'एक घर बनाऊंगा' में भी अभिनय किया।

अभिनेता सह मिमिक्री आर्टिस्ट : सौरभ चक्रवर्ती
कार्टून जगत में सौरभ ने जमाया सिक्का मिमिक्री आर्टिस्ट के रूप में बॉलीवुड में पहचान बनाने गए सौरभ चक्रवर्ती आज कार्टून जगत में सिक्का जमा चुके हैं। कई फिल्मों-धारावाहिक में अभिनय का जलवा दिखा चुके बाराद्वारी निवासी सौरभ की आज छह कार्टून फिल्में टीवी पर प्रसारित हो रही हैं जिसमें उन्होंने एक साथ 40-50 कैरेक्टर को अलग-अलग आवाज दी है। यही नहीं, कामिक्स की दुनिया के हिट कैरेक्टर 'मोटू-पतलू' पर कार्टून सीरियल बनाकर नई उपलब्धि हासिल की है। मशहूर फिल्मकार केतन मेहता द्वारा प्रस्तुत यह सीरियल निक चैनल पर प्रसारित हो रहा है। इसकी परिकल्पना से लेकर सारे पहलू उन्होंने बनाए, तो चिंगम और जॉन नामक दो नए कैरेक्टर भी जोड़े।

इसके अलावा उनकी आवाज में डब की गई जो कार्टून सीरियल टीवी पर प्रसारित हुए, उसमें ओगी, पकड़म-पकड़ाई, शॉन द शिप, चेज कामेटी, कीमॉन, जिग एंड शार्को आदि हैं। उनकी पहली कार्टून फिल्म 'ओगी' थी, जिसे उन्होंने 2009 में आवाज दी। फ्रांस के इस सीरियल में कोई आवाज नहीं थी। इसके अलावा उनकी फिल्म 'मैक्सिमम' रिलीज हुई थी, तो सब टीवी के धारावाहिक 'एफआइआर' में वे खलनायक बने। उनकी मंशा आने वाले दिनों में डबिंग आर्टिस्टों का राष्ट्रीय स्तर पर टैलेंट हंट कराने की है। डिज्नी के 'पोकीमैन' में 40 आवाज दी। हॉलीवुड के कार्टून शो 'रियो' और 'द माफ्स' की भी सौरभ ने डबिंग की है। सौरभ अपना गॉडफादर जॉनी लीवर को मानते हैं, जिन्होंने शुरू से अब तक उनकी मदद की। सौरभ ने खुद को कार्टून चैनलों के प्रति समर्पित कर दिया है।


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