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    8 अगस्त 1942 को हुआ था ‘भारत छोड़ो आंदोलन’, अब इसी दिन शुरू होगा ‘भारत जोड़ो आंदोलन’, जानिए

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Fri, 06 Aug 2021 10:59 AM (IST)

    Bharat Jodo Andolan आजादी के लिए 8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ हुआ था लेकिन अब इसी दिन से ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत होने जा रही है। 8 अगस्त को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया जाएगा।

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    जमशेदपुर से भारतीय जन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मचंद्र पोद्दार दिल्ली पहुंच गए हैं।

    जमशेदपुर, जासं। आजादी के लिए 8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ हुआ था, लेकिन अब इसी दिन से ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत होने जा रही है। 8 अगस्त को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया जाएगा। इसमें शामिल होने के लिए जमशेदपुर से भारतीय जन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मचंद्र पोद्दार दिल्ली पहुंच गए हैं।

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    इस संबंध में धर्मचंद्र पोद्दार ने बताया कि संपूर्ण स्वराज्य की दिशा में ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ एक कदम होगा। अब विदेशी नहीं स्वदेशी कानून चाहिए। भारतीय जन महासभा के अनेक लोग इस अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम में भाग लेंगे। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय के नेतृत्व में एक जन, एक राष्ट्र, एक कानून बनवाने के उद्देश्य से ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ होगा। इतने वर्षाें बाद भी भारत में विदेशी कानून चल रहे हैं, यह सभी को अखरता है। इसके बावजूद कोई इसके लिए आंदोलन की कौन कहे, पुरजोर तरीके से आवाज तक नहीं उठाता।  ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाए गए 222 काले कानून को जो भारत के संविधान में अभी भी शामिल हैं, उन्हें समाप्त कराना ही ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ का उद्देश्य है। इस आंदोलन में अधिकाधिक संख्या में भाग लेने की अपील अखिल भारतीय संत समिति व गंगा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने की है।

    अंग्रेजों ने भारत के लोगों में फूट व विद्वेष डालने के लिए बनाए थे कानून

    अंग्रेजों ने भारत में आइपीसी के तहत जितनी धाराएं बनाईं, उसमें नियम-कानून को इस तरह से लागू किया, जिससे भारतीय लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा व नफरत की भावना पनपे। आपस में लोग एक-दूसरे को घृणा की नजर से देखें। शासक या अधिकारी को दुश्मन की तरह देखें। भारतीय कानून मानवीय संवेदना पर आधारित होने चाहिए। बहुत बड़े अपराध में ही लोगों को कैद की सजा मिलनी चाहिए। आदिवासी समाज में कैदखाना का कोई स्थान नहीं है। उनके यहां सजा के तौर पर समाज से दूर रखने या बहिष्कृत करने की परंपरा है। हालांकि बदलते समय के साथ इसमें भी विकृति आ गई। कुछ लोग स्वार्थवश भी इसका उपयोग करने लगे। यह अलग बात है, लेकिन जेल या सेल से यह सजा ज्यादा प्रभावी थी।

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