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    Ant sauce : चींटी की चटनी के हैं बड़े-बड़े गुण, ठंड से मिलती राहत; भूख में होता इजाफा

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Thu, 10 Dec 2020 01:42 PM (IST)

    Ant sauce.जाड़े के मौसम में आम घरों में टमाटर व हरी धनिया की चटनी खाई जाती है लेकिन आदिवासी परिवार की थाली में लाल चींटी की चटनी आ जाती है। इसे लेकर ग्रामीण इलाकों में खासा उत्साह रहता है क्योंकि यह चींटी इसी मौसम में मिलती है।

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    चटनी बनाने के लिए जमा की गई लाल चींटी। जागरण

    जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। जाड़े के मौसम में आम घरों में टमाटर व हरी धनिया की चटनी खाई जाती है, लेकिन आदिवासी परिवार की थाली में लाल चींटी की चटनी आ जाती है। इसे लेकर ग्रामीण इलाकों में खासा उत्साह रहता है, क्योंकि यह चींटी इसी मौसम में मिलती है। 

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    खासकर साल व करंज के पेड़ पर लाल चित्ती चींटी चिड़ियों की तरह खाली स्थान पर घर बना लेते हैं। युवा-बच्चे इसे ठीक घोसले की तरह उतारते हैं। फिर इसे किसी बड़े बर्तन में झाड़कर अलग किया जाता है। घर की महिलाएं इस चींटी को नमक, हरी या लाल मिर्च, अदरक व लहसुन के साथ सिल पर पीसती हैं। ऐसा ही नजारा जमशेदपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर चाकुलिया प्रखंड के मटकुरवा गांव में देखने को मिला। यहां पेड़ से चींटी उतारने और तैयार चटनी खाने के लिए बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक उत्साहित दिखे।

     चींटी की चटनी खाने से नहीं लगती है भूख

     पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड स्थित मटकुरवा गांव में चींटी की चटनी खाता एक आदिवासी परिवार। 

    ग्रामीणों का कहना है कि ठंड के दिनों में इस चटनी खाने से ठंड नहीं लगती। यह भूख भी बढ़ाती है। जिसे भूख नहीं लगती, उसके लिए यह दवा के समान है। गांव के रूपचंद्र मार्डी बताते हैं कि हम आदिवासी समाज के लोग ठंड के मौसम का इंतजार करते हैं। जैसे ही ठंड की शुरुआत होती है, ये चींटी पेड़ों पर अपना घर बनाना शुरू कर देती है। इसमें टार्टरिक एसिड होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। खासकर ठंड से होने वाली बीमारियों के बचाव में यह काफी कारगर है। इसे पूर्वज भी खाते थे, जिससे यह परंपरा सी बन गई है। इस चटनी को कुरकू भी कहा जाता है। 

    बाजार-हाट में भी बिकती चींटी

    लाल चींटी की यह चटनी पूर्वी सिंहभूम जिले के ग्रामीण हाट-बाजार में भी बिकती है। जमशेदपुर के बिरसानगर, बारीडीह और सरायकेला-खरसावां जिला स्थित गम्हरिया, कांड्रा, चांडिल आदि के बाजार में भी आदिवासी पत्ते के दोने में यह चींटी बेचते हैं। पांच-दस रुपये में एक दोना चींटी बिकती है। लेकिन इसे आदिवासी परिवार के अलावा वही लोग खरीदते या खाते हैं, जो इसका महत्व समझते हैं। यह मौसमी सब्जी की तरह भोजन का हिस्सा होता है, क्योंकि यह सिर्फ ठंड के मौसम में ही मिलती है।

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